ढेर सारे दावों-वादों-कवायदों और अच्छी-खासी टीम की भर्ती के बाद आधारशिला ग्रुप की हिंदी-अंग्रेजी पत्रिकाएं ‘बाई-लाइन’ नाम से बाजार की तरफ रवाना कर दी गई हैं. ये कल से 20 रुपये देकर स्टैंड से खरीदी जा सकती हैं. कंपनी के चेयरमैन राजीव चतुर्वेदी की तरफ से जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है- ‘लो हम आ गए हवा के ताजे झोंके की तरह… शनिवार की सुबह बाई-लाईन हिंदी व By-Line English स्टैंड पर होगा. कवर स्टोरी के रूप में हमने एक ख्याति प्राप्त समाचारकर्मी की अंतरराष्ट्रीय स्तर की एक ऐसी खबर दी है कि जिसका सीधा सरोकार राष्ट्रीय सुरक्षा से है. इसके अतिरिक्त वह बहुत कुछ है कि जो अब बाजारू मीडिया में प्राय: पाया नहीं जाता. इसके बाद और उसके बाद, हम इसी शैली में हर सप्ताह पुनरावृत्ति करेंगे क्योंकि हम ‘विकल्प नहीं संकल्प’ की बात करते हैं. आपका स्नेह भी हमारी सामर्थ्य है.’
बाई-लाइन की लांचिंग के साथ ही इस मैग्जीन से जुड़े लोगों की छंटनी की चर्चाएं भी शुरू होने लगी हैं. सूत्रों का कहना है कि शीर्ष स्तर से लेकर नीचे के स्तर के कई लोग कुछ महीनों में निकाले जा सकते हैं. वजह ये कि एक तो जरूरत से ज्यादा स्टाफ रखा गया है. मैग्जीन के कुछ वर्षों में मुनाफे में आने की कल्पना करना बेमानी है. ऐसे में भारी-भरकम स्टाफ को लंबे समय तक ढोया नहीं जा सकता.
दूसरे, शीर्ष पदों पर कई संपादक लेवल के लोगों की भर्तियां कर ली गई हैं. कोई अंग्रेजी अखबार के एडिटर रहे हैं तो कोई अंग्रेजी-हिंदी अखबारों के एडिटर रहने के बाद आए हैं तो कोई हिंदी अखबार और चैनल से आए हैं. इन तीन-चार वरिष्ठों में से किन्हीं दो के ही रहने की संभावना जताई जा रही है. अच्छे खासे पैकेज पर आए इन संपादकों ने मैग्जीन के नाम पर शुरू में ही लंबा-चौड़ा खर्चा करा दिया है. जरूरत से ज्यादा बड़ी टीम इकट्ठी कर ली है. देखना है कि ये लोग कंटेंट के बल पर मैग्जीन को वाकई आज के बेहद मुश्किल और जटिल मीडिया मार्केट में स्थापित कर पाते हैं या नहीं.
सिर्फ एक चीज सकारात्मक है, वह है इस मैग्जीन के मालिक राजीव चतुर्वेदी का बैकग्राउंड मीडिया से जुड़े होना. कई तरह के मिलों-उद्योगों के संचालन से इकट्ठा हुए पैसे के बल पर कब तक मैग्जीन को बाजार में लाते रहेंगे, यह राजीव के विल पावर पर डिपेंड करता है. यह जरूर है कि न्यूनतम रिसोर्स के जरिए मैक्सिमम आउटपुट का बिजनेस फंडा राजीव ने नहीं लागू किया, जिससे उन्हें भविष्य में मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं. छंटनी की जो चर्चाएं शुरू हुई हैं, वो संभवतः इसी बुनियाद पर आधारित हैं.
अगर आप कल बाई-लाइन को खरीद कर पढ़ते हैं तो अपनी राय से हमें भी अवगत कराएं. मैग्जीन के बारे में अपनी राय हम तक [email protected] या फिर [email protected] के जरिए पहुंचा सकते हैं.
रचित पंकज
January 15, 2010 at 3:07 pm
जिस तरह के मेढक बाइलाइन में इकट्ठे हुए हैं, उन को बटोर को रखना बडे अचरज का काम है। मालिक से ले कर संपादक तक सब बाइलाइन के बहाने मूंगफली खाने आए हैं। मारपीट कर ६ महीने भी शायद ही चल पाए यह बाइलाइन, मेरा ऐलान है यह। अव्वल तो राजीव चतुर्वेदी का अतीत ही कभी स्थाई चित्त का नहीं रहा है। दूसरे उनमें घमंड बहुत है। ट्रांस्पोर्ट के नाम पर औने पौने जो उन्होंने तीन तिकडम कर के कमाया है, सब गंवा देंगे अपने घमंड में। जो लोग आए हैं वो लोग तो लखनऊ रहने के विकल्प में आए हैं। कोई कैरिअर बनाने नहीं। एक संपदक जी तो इसमें ऐसे है जो हर जगह डिफेंस का अलाव जला कर बैठ जाते हैं, जब तक ताप पाते हैं तापते हैं नही निकल पडते हैं दूसरा अलाव जलाने। भाई डिफेंस हैं सो जलावनी मिलती रहती है। तिस पर निशीथ राय के यहां से जा कर भी वह मकान के बहाने फिर पेंग मार चुके हैं अभी से। मतलब एक बारात विदा हुई नहीं, दूसरी डोली भी तैयार है ! और जो बडे संपादक हैं वह तो कितनों को पढा कर जीवन बरबाद कर चुके हैं। ज़िंदगी अंग्रेजी में गुज़ार कर हिंदी में भी छाता तान चुके हैं। कहीं छांह नहीं मिली। अब साप्ताहिक बेचने आए हैं। बडे-बडे लोग पाठकों को तमाम उपहारी घूस दे कर भी दैनिक नहीं बेच पा रहे यह लोग साप्ताहिक बेचने निकले हैं। घर में दाना नहीं तडके नहाने वाली बात याद आ रही है। खैर खुदा खैर करे कि बाइलाइन चले गो कि आसार कोहरे में रास्ता भूलने के ही हैं। तो भी राजीव चतुर्वेदी का घमंड और गालियां जब तक काबू मे रहेंगी तब तक तो लखनऊ के सारे कल्पवासी जमे रहेंगे। आगे तो कहा न कि खुदा खैर करे और कि बाइलाइन चले। वैसे भी अखबारों में जो रिपोर्टर सिर्फ़ बाइलाइन छपवाने के स्वार्थ में डूबते उतराते हैं वह अखबार चले चाहे भाड में जाए उन्हें इससे सरोकार होता भी नहीं। उन्को तो बस सजनी हमहूं राजकुमार!
vivek kumar
January 15, 2010 at 1:22 pm
congrates for launching. dekhte hain, kitne paani mei hai ye patrika…
Subhashish Roy
January 15, 2010 at 2:18 pm
I am eagerly witing for the magazine at Jharkhand. The cover looks better, both the look and Cover Story heading. Pl convey my compliments to Mr.Rajiv Chaturvedi.
KALAMWALA-GUNDA
January 15, 2010 at 3:37 pm
BADHAI DETE H HUM DIL SE OR DUA KARETE H APNE RAB SE KI WO AASMAN KI BULNDIYA DE IS KO……….
pallav
January 15, 2010 at 3:54 pm
kaise milegi?
aseesh vashisht
January 15, 2010 at 4:06 pm
Rajiv jicongrates for launching BY-LINE Best wishes to all team members of BY-LINE.
kumar adarsh
January 15, 2010 at 4:39 pm
congrats to byline group for launch
Ashok Priyadarshi
January 16, 2010 at 6:10 am
chaliye ab Rs. 20 ki ek aur magazine aa gai…
dekhte hain mukabla kitna jordar hota hai..
amar sinha
January 16, 2010 at 12:11 pm
By Line ko hamari shubhkamnayein, Jub b koi akhbaar ya patrika bazaar me aati hai to subse pehla response negetive hi hota hai, lekin agar Team ne Imaandaari aur Mehnat se kaam kiya aur Management b thik raha to nischit roop se Magazine safal hogi. Cover page aur cover Story ka first impression kaafi achcha hai.
amar sinha
January 16, 2010 at 12:20 pm
shubhkamna
naga-arju
January 16, 2010 at 7:26 pm
Nange jab ekhatte hote hain to pahale ek mandli banate hain yahi haal hain bhai is byline ka, sab mauj marane aaye hain khuch din to maar hi lanege baad main bhagavan bhala kare in becharo ka. Jo khud theek nahi hain vo kaya bye -line denge, bhukhe hain ye mahan mahashay. Lootne aaye hain BITE-BITE LOOTANGE MEANS BY-LINE
vimal ibn7
January 17, 2010 at 4:55 am
congrats to byline group for launch
SANJAY SINGH
January 17, 2010 at 8:06 am
DEAR RACHIT PANKAJ KI AAP LIKHTE LAJAWAAB HAI.AAPKI BAATON ME WAKAI DUM HAI.
सुमंत
January 17, 2010 at 1:03 pm
राजीव भाई बधाई हो।
Rajesh Pal Singh
January 19, 2010 at 6:19 am
I read your Magazin. Marvelous!!!!. Your’s write-up is very good. Best of luck.
Rajesh Pal Singh
Rajesh Pal Singh
January 19, 2010 at 6:26 am
Dear Rajiv Ji.
Congratulation. Mujhe Intzaar tha is patrika ka. Aap Ka lekh padha. Mai Pahle Bhi Aap ka lekh padhata tha.
Jo bhat aap ke lekh me hai oh kisi our mai nahi.
Yah Patrika bahut Aage tak jayegi.
Rajesh Pal Singh
parmod
January 21, 2010 at 9:00 am
Akhileshwar Dwivedi ji Badhai ho.
parmod
January 21, 2010 at 9:02 am
Akhileshwar Dwivedi ji aap ke lika news padha aur bhaut acha laga aise hi likhte rahiey. aap ke haat main to jadu hain.
brajesh
January 26, 2010 at 9:17 am
Dear prabhat Ji.
Congratulation. Mujhe Intzaar tha is patrika ka.
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brajesh , r.sahara , patna
shakti
January 29, 2010 at 4:58 pm
excellent byline team kutte to bhaukate hi rahate hai. keep it continue