नोट फॉर वोट मामले के टेप को न दिखाने को लेकर राजदीप सरदेसाई के बारे में उन दिनों आम पत्रकार के नाते अतुल चौरसिया ने जो कुछ लिखा था, उसे पढ़ने के बाद पत्रकार आलोक नंदन ने अब अपना संस्मरण लिखा और भड़ास4मीडिया को भेजा। हालांकि अतुल के लिखे के बाद गंगा में काफी पानी बह चुका है। अपने साहसी पत्रकारीय व्यक्तित्व को फिर साबित करते हुए राजदीप ने नोट फॉर वोट के टेप को प्रसारित कर सभी सवालों-संदेहों पर विराम लगा दिया। लेकिन आलोक की अपनी कहिन है। खुद का भोगा है। आंखों से देखा है। वे पूरी विनम्रता के साथ कहना चाहते हैं। उनके कहे का स्वागत होना चाहिए, हम भले सहमत-असहमत हों। आलोक इन दिनों मुंबई में हैं। मीडिया हाउसों वाली पत्रकारिता छोड़ चुके हैं पर कलम की अलख जगाए हैं। अपनी आजादी जी रहे हैं। -संपादक, भड़ास4मीडिया
उन दिनों अजीत शाही चैनल7 (अब आईबीएन7) की कमान संभाले हुए थे। हाउस के अंदर खबर तेजी से फैल रही थी कि चैनल7 को राजदीप सरदेसाई द्वारा टेकओवर किया जा रहा है। इस फुसफुसाहट से तंग आकर एक दिन अजीत शाही ने सभी लोगों को न्यूज रूम के अंदर बुलाया और सबकी हवा टाइट करते हुए कहा कि, ‘खबरदार जो किसी ने अफवाह फैलाई। अफवाह फैलाने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। चैनल7 नहीं बिकेगा।’
गांधीवाद का दम भरने वाले अजीत शाही के इस रूप को देखकर उस दिन मैं थोड़ा सा चौंका था। मुझे अच्छी तरह याद है कि एक दिन चैनल7 के मैदान में रात को दारू पार्टी के दौरान अजीत शाही मैदान से सिगरेट की टोटियां चुन-चुन कर डस्टबिन में डाल रहे थे। तब सिगरेट पीने पर मुझे पहली बार शर्म आई थी।
अजीत शाही की सार्वजनिक धमकी के बाद फुसफुसाहट तो बंद नहीं हुई, लेकिन लोग इस मामले में बात करने से कतराने लगे। पांच दिन के बाद ही सार्वजनिक तौर पर यह घोषणा की गई कि चैनल7 बिक गया है। अब यह आईबीएन7 होगा।
तब आज तक से सात लोग बुलाए गए थे। इनमें आशुतोष और प्रबल प्रताप सिंह भी शामिल थे। आशुतोष और उनकी टीम ने सफाई अभियान शुरू किया। स्थिति को भांपते हुए अजीत शाही ने यहां से जाने में ही अपनी भलाई समझी।
एसाइनमेंट डेस्क के इंचार्ज मिस्टर टंडन थे। आशुतोष ने उन्हें न्यूजरूम में उनके जूनियर्स के सामने फटकारा। वो भी चलते बने। इसके साथ ही कई रिपोर्टरों की गर्दन नापी गई। उन लड़कियों को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया जो अब तक टंडन जी के राज में बेफिक्र जी रहीं थीं।
सफाई अभियान तीन महीने तक चलता रहा। इस बीच राजदीप सरदेसाई चैनल में आते-जाते रहे। नई टीम ने 9 बजे के शो में एक नये कार्यक्रम की शुरुआत की। इस कार्यक्रम के अंत में राजदीप नजर आते थे और राजधर्म की शिक्षा देते थे। वो पत्रकार कम और उपदेशक ज्यादा नजर आते थे। उनकी बात सुनकर ऐसा लगता था कि कोई धर्मगुरु प्रवचन कर रहा है। मैंने अपने मन की बात एक सीनियर को बताई तो उन्होंने जोरदार तरीके से हड़काया और कहा कि, अपना मुंह बंद करके काम करते रहो। दूसरों की तरफ देखने की जरूरत नहीं।
मुझे उसी समय एहसास हो गया था कि राजदीप सरदेसाई अब पत्रकारिता से उपर उठकर धर्म गुरु के राह पर चलने लगे हैं।
अतुल ने भड़ास4मीडिया पर राजदीप के संबंध में जिन फैक्ट्स को अपने लेख के जरिए सामने लाया है, उसे देखकर यही लगता है कि राजदीप में बदलाव आ चुका है। हालांकि इस बदलाव के मायने मैंने बहुत पहले ही महसूस कर लिए थे। अब लगता है कि अचेतन रूप से पत्रकारिता को बाय-बाय मैंने राजदीप के बदले हुए रूप को ही देखकर किया था।
राजदीप मेरे हीरो थे। अपने हीरो में परिवर्तन को देखकर मैं पत्रकारिता की राह पर आगे नहीं चल सका।