‘चौथी दुनिया’ और इसके संपादक के खिलाफ विशेषाधिकार हनन नोटिस : राज्यसभा सांसदों को ‘शक्तिहीन’, ‘निर्वीर्य’ और ‘नपुंसक’ लिखना महंगा पड़ा : साप्ताहिक अखबार ‘चौथी दुनिया’ और इसके संपादक संतोष भारतीय पर राज्यसभा सदस्यों की निगाह टेढ़ी हो गई है. चार सांसदों ने इनके खिलाफ राज्यसभा में विशेषाधिकार हनन का नोटिस दे दिया है. नोटिस देने वाले सांसदों और उनकी पार्टी के नाम हैं- अली अनवर (जद-यू), अजीज़ पाशा (सीपीआई), राजनीति प्रसाद (आरजेडी) और साबिर अली (लोकजनशक्ति पार्टी). इन सांसदों ने यह नोटिस उप-राष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति हामिद अली अंसारी को दी है. नोटिस को संज्ञान लेते हुए उप-राष्ट्रपति ने इन सासंदों को विश्वास दिलाया है कि ‘चौथी दुनिया’ और इसके संपादक के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाएगी.
ज्ञात हो कि ‘चौथी दुनिया’ के 7-13 दिसंबर 2009 के अंक में इस हिंदी साप्ताहिक के प्रधान संपादक संतोष भारतीय ने जो कवर स्टोरी लिखी है, उसका शीर्षक है- ‘रंगनाथ कमीशन : रिपोर्ट पेश न होना राज्यसभा का अपमान‘. इसे पढ़ने के बाद राज्यसभा के सासंदों को लगा कि ‘चौथी दुनिया’ और इसके संपादक ने राज्यसभा और उसके सदस्यों का घोर अपमान किया है.
इस स्टोरी से आहत चार सांसदों ने उपराष्ट्रपति से लिखित रूप से अनुरोध किया है कि ‘चौथी दुनिया’ साप्ताहिक अखबार और इसके संपादक पर विशेषाधिकार हनन का मामला चलाया जाए ताकि अपमानजनक और आपराधिक कृत्य करने के बदले में उन्हें प्रताड़ित किया जा सके. इन सांसदों ने यह भी चेतावनी दी है कि अगर कार्रवाई नहीं की गई तो वे अखबार में छपे लेख के खिलाफ राज्यसभा में रोष प्रकट करेंगे.
‘चौथी दुनिया’ में प्रकाशित संतोष भारतीय की रिपोर्ट के कुछ वो अंश जिसे पढ़कर राज्यसभा सांसद भड़क उठे हैं….
…..रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट को सदन में न रखवा पाने वाले राज्यसभा के सदस्य क्या शक्तिहीन और निर्वीर्य हो गए हैं? क्या राज्यसभा जनता के कमज़ोर वर्गों के लोकतांत्रिक अधिकारों का संरक्षण करने में असफल रहने के कारण अपनी सार्थकता खोती जा रही है?……
….राज्यसभा के सभापति ने लोकसभा में रखी गई लिब्रहान कमीशन की तर्ज पर रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट रखने का निर्देश नहीं दिया, अगर उस दिन वे निर्देश दे देते तो कमीशन द्वारा पहचाने गए क्रिश्चियन समाज और मुस्लिम समाज के दलितों के लिए आरक्षण का फायदा उठाने का दरवाजा खुल जाता. देश का ईसाई और मुस्लिम समाज तथा इनके सबसे कमजोर दलित वर्ग के लोग अभी कितने खून के आंसू गिराएंगे, कहा नहीं जा सकता और इसकी जिम्मेदारी राज्यसभा के सभापति की होगी….
…..क्या हुआ राज्यसभा के सर्वशक्तिमान सांसदों की ताकत का, लगभग हर दल के सांसद चाहते थे कि यह रिपोर्ट सदन के पटल पर रखी जाए, पर वे न सरकार को तैयार कर सके और न ही चेयर पर दबाव डाल सके. क्या राज्यसभा, जिस पर लोकतंत्र को संभालने की जिम्मेवारी है, जिसे उच्च सदन कहा जाता है, शक्तिहीनों और निर्वीर्य लोगों के बैठने का एक क्लब भर रह गया है. क्या राज्यसभा से जनता को अपना भरोसा खत्म कर लेना चाहिए….
…..महामहिम सभापति राज्यसभा जी, राज्यसभा सदस्यों को कमजोर और नपुंसक मत बनाइए, इनकी मागों पर ध्यान दीजिए और रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट को सदन के पटल पर पेश कराइए. क्योंकि जब तक रिपोर्ट पेश नहीं होगी, सरकार बताएगी नहीं कि वह इस पर क्या कार्रवाई करने जा रही है. जिस मांग के समर्थन में सारे दलों के अध्यक्ष, मुख्यमंत्री, दलों के घोषणापत्र हों, उस मांग को अनदेखा कर, आप उस विचारधारा का अपमान कर रहे हैं जिसने आपको राज्यसभा के सभापति पद तक पहुंचाया है….