फिर से लांच हुए साप्ताहिक अखबार ‘चौथी दुनिया’ के 12 से 18 अप्रैल के अंक पेज नंबर चार पर ‘पत्रकार दुनिया’ कालम में इस बार व्यालोक की विशेष रिपोर्ट चुनाव ”सर्वेक्षण का धोखा : जनता को मूर्ख बना रहा है 20 सालों से मीडिया” विवाद पैदा करने वाली है। इसमें एक जगह लिखा गया है- ‘इस सूची में सबसे पहला नाम एनडीटीवी के चेयरमैन प्रणय राय का आता है, जिन्होंने जनता को मूर्ख बनाने की इस प्रथा की शुरुआत की। 1989 में उन्होंने तथाकथित तौर पर 70,000 लोगों का का सर्वे किया था। अब इस बात पर शुब्हा कैसे न हो कि जब आज के आधुनिक युग में भी भाई लोग महज कुछ हजार लोगों का सर्वे कर कोई भी फैसला कर देते हैं, तो उस जमाने में प्रणय दा ने कैसे 70,000 लोगों का सर्वे किया होगा, यह भी अचरज की बात है। हमारे नेताओं की तरह ही ये चुनाव सर्वेक्षण वाले भी निहायत गैरजिम्मेदार और नाकारा हैं। जैसे हमारे नेताओं से कोई यह नहीं पूछता है कि अचानक पांच सालों में उनकी संपत्ति कैसे तीन-चार गुनी हो जाती है, कैसे वे लखपति से करोड़पति बन जाते हैं (कम से कम सांसद या विधायक के तौर पर मिलनेवाले वेतन से तो उनकी इतनी आमदनी नहीं ही हो सकती), उसी तरह के चुनाव पंडितों और धुरंधरों से कोई यह नहीं पूछता कि आखिर एक के बाद एक गलत सर्वेक्षण देने के बाद भी ये निहायत बेशर्मी के साथ अगले चुनाव के नतीजे बाताने क्यों सज-संवर कर अपने स्टूडियो में बैठ जाते हैं…”
इस रिपोर्ट की शुरुआत कुछ यूं है-
”प्रजातंत्र की एक खासियत है। इसमें सबके लिए जगह है। आप नेता हैं, आंदोलनकारी हैं, विचारक हैं, आर्टिस्ट हैं, सच के लिए लड़नेवाले समाजसेवी हैं या फिर झूठ बोल कर लोगों को झांसा देने मे माहिर हैं, राजनीतिक दलों को चुनाव में हर जगह के लोगों की जरूरत पड़ती है। चुनाव के वक्त कुछ ऐसे लोगों को भी काम मिल जाता है, जो आंकड़े दिखाकर साइंटिफिक रिसर्च के नाम पर झूठ प्रचारित करने में बेमिसाल हैं।
डॉ प्रणय रॉय बड़े नाम हैं। बड़े पत्रकार हैं। उनके मोबाइल फोन में प्रधानमंत्री से लेकर गृहमंत्री तक के नंबर फीड हैं। वह टीआरपी की इस दौर में भी तथाकथित तौर पर अपने आदर्शवाद का किला बचाए हुए हैं। वह कभी-कभार ही अपने चैनल पर दिखते हैं, लेकिन जब दिखते हैं, तो कमाल के दिखते हैं। यह कमाल आज का नहीं है, यह तो पूरे दो दशक पुराना कमाल है। यह कमाल उन्होंने 1989 से शुरू किया था। तब वह पूरे ताम-झाम और लाव-लश्कर के साथ चुनावपूर्ण विश्ल्षण करने निकले थे। तब का उनका विश्लेषण अर्धसत्य निकला। उन्होंने कांग्रेस की जीत का दावा किया था और कांग्रेस को सबसे अधिक सीटें भी मिली थीं, लेकिन सरकार राष्ट्रीय मोर्चा की बनी थी और कांग्रेस ने उसे बाहर से समर्थन दिया था। लेकिन मीडिया के प्रचार की ताकत देखिए, उन्हें देश का सबसे बड़ा चुनाव विश्लेषक घोषित कर दिया। प्रणय रॉय आज तक उसी की कमाई खा रहे हैं। अब उनसे यह तो कोई पूछता नहीं कि उसके बाद उनका एक भी सर्वेक्षण सही क्यों नहीं निकला। या फिर कोई यह भी नहीं पूछता कि भइए, तुमने तो जो भी भविष्यवाणी की, वह तो सारा गलत हो गया, इसके बावजूद आप भी लगातार नई-नई गणनाएं क्यों करते जा रहे हो? साथ ही पूरी बेशर्मी से आप अब भी सीना ठोंक कर क्यों हरेक चुनाव के समय नई सरकार बनाने की भविष्यवाणी करने में लग जाते हैं…”