हाल ही में भड़ास4मीडिया पर मीडिया से जुड़े एक छात्र ने मीडिया में नौकरी को लेकर अपनी परेशानी व्यक्त की थी। यह तो एक बानगी है। हकीकत तो यह है कि इन दिनों मीडिया में ही सबसे ज्यादा शोषण हो रहा है। मीडिया में नौकरी के लिए इक्के-दुक्के ही आवेदन कहीं पर देखने को मिलते हैं वरना पूरा-पूरा अखबार और चैनल बिना किसी विज्ञापन के ही लॉन्च हो जाते हैं। ऐसे में जिनका मीडिया में कोई बैकग्राउंड नहीं होता, उन्हें सिर्फ मानसिक तनाव मिलता है। अगर किसी तरह उन्हें नौकरी मिल भी जाती है तो इतने कम रुपये मिलते हैं कि इस कारण वो हरदम तनाव में रहते हैं।
इन दिनों हर मीडिया ग्रुप आर्थिक मंदी का रोना रो रहा है और पत्रकारों की तनख्वाह काटने से लेकर उसकी नौकरी लेने पर तुला है। अच्छी नौकरी और काम करने वाले पत्रकार अभी भी उस मौके के इंतजार में हैं जिससे वो अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा सकें। मीडिया दूसरों की आवाज को तो जोर-शोर से उठाने की बात करता है लेकिन अपने सहयोगियों के लिए कुछ भी कर पाने में सक्षम क्यों नहीं है?
लखनऊ से स्मिता श्रीवास्तव (बीओटू न्यूज)
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