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केवल 100 रुपये, बस!

[caption id="attachment_14971" align="alignleft"]गोविंद गोयलगोविंद गोयल[/caption]बात पांच-चार साल पुरानी होगी। नगर के बहुत बड़े सेठ के यहां से शादी का कार्ड आया। कार्ड आया तो जाना ही था। चला गया। लिफाफा ना देने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता था। दूसरे दिन बड़े भाई साहब ने घर पर कार्ड देखा और बोले, शादी में गया था? क्या दिया? मैंने बताया, इकतीस रुपये दिए। उन्होंने कहा, इतने बड़े सेठ को केवल इकतीस रुपये! मैंने उनसे कहा, भाई साहब मैंने उनकी हैसियत के हिसाब से नहीं, अपनी हैसियत के अनुसार दिए हैं।  उनकी हैसियत से तो जो भी देता, कम ही पड़ते। यह सच्ची बात नोएडा में हुई, उस प्रेस कांफ्रेंस की भूमिका में, जिसमें प्रेस नोट के लिफाफे में सौ-सौ रुपए दिए गए पत्रकारों को। मेरे हिसाब से तो आयोजकों ने अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत से सौ-सौ रुपये दिए। अगर उन्होंने पत्रकारों की हैसियत के अनुसार दिए तो यह बहुत ही चिंता का विषय है। चिंता इसलिए कि जहां मीडिया की तोपें रहतीं हैं, वहां प्रेस कांफ्रेंस में केवल सौ-सौ रुपये!

गोविंद गोयल

गोविंद गोयलबात पांच-चार साल पुरानी होगी। नगर के बहुत बड़े सेठ के यहां से शादी का कार्ड आया। कार्ड आया तो जाना ही था। चला गया। लिफाफा ना देने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता था। दूसरे दिन बड़े भाई साहब ने घर पर कार्ड देखा और बोले, शादी में गया था? क्या दिया? मैंने बताया, इकतीस रुपये दिए। उन्होंने कहा, इतने बड़े सेठ को केवल इकतीस रुपये! मैंने उनसे कहा, भाई साहब मैंने उनकी हैसियत के हिसाब से नहीं, अपनी हैसियत के अनुसार दिए हैं।  उनकी हैसियत से तो जो भी देता, कम ही पड़ते। यह सच्ची बात नोएडा में हुई, उस प्रेस कांफ्रेंस की भूमिका में, जिसमें प्रेस नोट के लिफाफे में सौ-सौ रुपए दिए गए पत्रकारों को। मेरे हिसाब से तो आयोजकों ने अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत से सौ-सौ रुपये दिए। अगर उन्होंने पत्रकारों की हैसियत के अनुसार दिए तो यह बहुत ही चिंता का विषय है। चिंता इसलिए कि जहां मीडिया की तोपें रहतीं हैं, वहां प्रेस कांफ्रेंस में केवल सौ-सौ रुपये!

यह तो बड़े ही अफ़सोस की बात है। इतनी मंदी तो नहीं है कि केवल सौ-सौ रुपये में काम चलाया जाए। एक टीवी चैनल पर मैंने खुद देखा। लिफाफे में सौ का नोट था। अगर नोएडा जैसे महानगर में प्रेस कांफ्रेंस का यह स्तर है तो हमारे शहर में क्या होगा? हे भगवान ! किसी लीडर ने यह खबर ना देखी हो, वरना यहां तो फिर पांच-पांच, दस-दस ही लिफाफे में आएंगें। ऐसे में तो जीना मुश्किल हो जाएगा। चैनल इस बात का खुलासा नहीं किया गया कि पत्रकार क्यों भड़के? केवल और केवल सौ रुपये देख कर या रुपये देख कर।

वैसे जब चुनाव में खुल्लम-खुल्ला रुपये लेकर खबरें छापी और छपवाई गई तो उसके बाद यही तो होना था। सब नेता जानते हैं कि खबर तो मालिक के जरिए ही छपनी-छापनी है। प्रेस कांफ्रेंस में आने वाले तो बस कर्मचारी भर हैं। इसलिए जो उनको दे दिया वह उन पर अलग से मेहरबानी ही तो है। इसमें इतना लफड़ा करने की क्या बात है। जिसने लेना है ले, जिसे नही लेना, ना ले 🙂


लेखक गोविंद गोयल राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले के वरिष्ठ पत्रकार हैं और कई वर्षों से प्रिंट व टीवी मीडिया माध्यमों में सक्रिय हैं। अपने दमदार लेखन के जरिए हिंदी ब्लागिंग में खास पहचान बनाने वाले गोविंद के ब्लाग का नाम नारदमुनि है और वे दुनिया के सबसे बड़े हिंदी कम्युनिटी ब्लाग भड़ास ब्लाग के भी रेगुलर लेखक हैं। यह पोस्ट भड़ास ब्लाग से लेकर साभार प्रकाशित किया जा रहा है। गोविंद गोयल से संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है।

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