जयपुर के पिंकसिटी प्रेस क्लब की ओर से ‘DARE TO SUCCEED‘ कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम खास तौर पर उन लोगों के लिए तैयार किया गया था जिन्होंने समाज में खास मुकाम हासिल किया। इसमें शरीक होने के लिए दिल्ली से पुण्य प्रसून बाजपेयी और यशवंत सिंह को आमंत्रित किया गया। कार्यक्रम की खासियत यह रही कि सभी तरफ से बात दिल से निकली और दिल तक पहुंची। दो घंटे तक चले कार्यक्रम में वक्ताओं ने खुलकर अपनी बात कही। निजी जीवन से लेकर पत्रकारिता, सामाजिक दृष्टिकोण आदि क्षेत्रों पर अपने विचारों का खुलासा किया। जयपुर के पत्रकारों ने भी अतिथियों से कई तरह के सवाल किए।
जी न्यूज के एडिटर पुण्य प्रसून बाजपेयी ने कहा कि राजधानियों, सत्ता केंद्रों के इर्द-गिर्द रहने वाले पत्रकार सुख भोगने की ओर बढ़ते जाते हैं। सवाल यह है कि आपके अंदर वह तड़प बचेगी या नहीं, जो आम आदमी के सरोकारों से जुड़ी है। आपके अंदर यह तड़प उन क्षेत्रों में जाने-देखने से पैदा होगी जहां जीवन जी पाना मुश्किल है। उनका कहना था कि हम जिस जगह काम कर रहे हैं, वहीं के कैनवास में बंधकर काम नहीं करना चाहिए। हमारी नजर व्यापकता पर होनी चाहिए। दृष्टिकोण समग्र होना चाहिए।
इलेक्ट्रानिक मीडिया के बारे में बाजपेयी का कहना था कि इलेक्ट्रानिक मीडिया में एक पत्रकार की ईमानदारी महत्वपूर्ण है। कैमरा जो तस्वीर लेगा, सिर्फ वो ही सच नहीं है। वह केवल घटना भर है। एक रिपोर्टर के पत्रकारीय शब्द ही उस तस्वीर के सच को सामने रखते हैं। आदिवासी क्षेत्रों की विकास नीतियों से असहमत बाजपेयी ने 1984 के सिख और 2001 के गुजरात दंगों का वीभत्स रूप सामने रखा। उनका मानना था कि आदिवासी क्षेत्रों में तो 1984 और 2001 हर दिन दोहराया जाता है। नीतियां बनाने और लागू करने में आदिवासी वहीं का वहीं रह जाता है। इस कवायद में जितनी राशि खर्च होती है, सिर्फ वही आदिवासियों में बांट दी जाए तो वे निहाल हो जाएं।
कार्यक्रम में बाजपेयी ने नागपुर में ‘लोकमत’ अखबार से अपने पत्रकारीय जीवन की शुरुआत का जिक्र करते हुए बताया कि वे भोपाल, मुंबई होते हुए दिल्ली पहुंचे। उन्होंने आतंकवादियों से मुलाकात और पाक अधिकृत कश्मीर में की गई रिपोर्टिंग का भी जिक्र किया।
कार्यक्रम में भड़ास4मीडिया डॉट कॉम के एडिटर यशवंत सिंह ने अपने बेबाक अंदाज में मीडिया हाउसों पर निशाना साधा। उन्होंने दैत्याकार होते जा रहे मीडिया हाउसों को संगठित माफिया बताते हुए कहा कि देश और समाज में हाशिए पर खदेड़ दिए गए लोगों के खिलाफ राजधानी में जो गुट बन रहा है, मीडिया अब उसी गुट हिस्सा बनता जा रहा है। मीडिया में प्रमुख पदों पर बैठे ज्यादातर लोग लाइजनिंग करते हैं, पत्रकारिता नहीं करते।
यशवंत सिंह ने प्रभाष जोशी के उस कथन को दोहराया कि पैसे लेकर खबर छापने वाले अखबारों को मीडिया के नाम पर मिलने वाली सुविधाओं को खत्म कर सिर्फ प्रिंटिंग प्रेस चलाने का लाइसेंस दिया जाना चाहिए। अब सरोकार की पत्रकारिता मुख्य धारा की मीडिया के एजेंडे में नहीं है। इनका सबसे बड़ा एजेंडा बन गया है किसी भी तरह पैसा कमाना और मुनाफा बढ़ाना। जब एक मीडिया हाउस पर हमला होता है तो पूरे देश में अभिव्यक्ति की आजादी पर हमले का शोर उठता है पर जब सैकड़ों कलमकारों को नौकरी से निकाला जाता है, उनके साथ बुरा सलूक किया जाता है तो इस पर कोई नहीं बोलता। कार्यक्रम में यशवंत ने उन कलमकर्मियों के दर्द को उकेरा जो आखिरी आदमी के बीच रह कर लिखते हुए उन्हीं का हिस्सा नजर आता है। उन्होंने अपने पत्रकारीय जीवन संघर्ष का उल्लेख किया।
पिंकसिटी प्रेस क्लब के महासचिव किशोर शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापित किया और क्लब के अध्यक्ष वीरेन्द्र सिंह राठौड ने बाजपेयी और यशवंत का स्वागत किया।