प्रभाषजी अगर आप बसंत गुप्त में स्पोर्ट एडीटर की प्रतिभा देख रहे थे तो उनकी इस नादानी पर उन्हें माफ भी कर सकते थे : रामनाथ गोयनका ने जनसत्ता अपनी सेवा के लिए निकाला था : प्रभाष जोशी जनसत्ता के संस्थापक संपादक नहीं हैं, हकीकत यह है कि जनसत्ता पचास के दशक में भी हिंदी में निकल चुका था : जनसत्ता में दबदबा दो जगह के लोगों का ज्यादा था, एक मध्य प्रदेश के लोगों का जो प्रभाष जोशी का गृह प्रदेश था, दूसरे, कानपुर का जहां प्रभाष जोशी की ससुराल थी : वही प्रभाष जोशी अब अपने संपादकीय सहयोगियों के साथ लोकतांत्रिक नहीं रह गया था : और क्षमा करें, कहते हुए तकलीफ भी होती है कि अपने आदरणीय प्रभाष जोशी जी भी इस हिप्पोक्रेसी के शिकार थे :
मुझे जाने क्यों कई बार लगा कि इस महाभारत में प्रभाष जोशी विदुर की भूमिका में आ गए हैं : पूछना चाहता हूं उनसे कि हे प्रभाष जोशी, देश में क्या और समस्याएं कम थीं आप को मारने के लिए जो आप क्रिकेट जैसे टुच्चे खेल की हार की ग़म में निसार हो गए, अगर यह सच है तो! : आलोक तोमर की प्रभाष जोशी के प्रति निष्ठा की किसी से तुलना करनी ही पड़ जाए तो मैं हनुमान से करना चाहूंगा : मुझे लगता है कि कुछ-कुछ प्रभाष जोशी भी रामनाथ गोयनका के प्रति आलोक तोमर की तरह ही निष्ठावान थे : एक्सप्रेस बिल्डिंग के एक्सटेंशन मसले पर प्रभाष जी ने राजीव गांधी से निगोशिएट किया, यह भी छुपा नहीं है : गरज यह कि गोयनका के चेतक थे ही थे जोशी जी, इतना कि उन के ख़िलाफ वह एक शब्द भी नहीं सुन सकते थे :