क्या ‘बूढ़े’ बसा पाएंगे ‘नई’ दुनिया? शीर्षक से शुरू की गई बहस में ढेर सारे पत्रकार शरीक हुए हैं। कुछ ने पक्ष में बोला है तो कुछ ने विपक्ष में। शुरुआत ज्ञानेंद्र भारती त्रिपाठी की टिप्पणी से। -संपादक, भड़ास4मीडिया
नई दुनिया में पत्रकारों के चयन के संबंध में की गई टिप्पणी उचित नहीं है। कोई भी पत्रकार न तो रिजेक्टेड होता है और न ही बूढ़ा। वरिष्ठ पत्रकार शालीनता का शब्द है। रही क्षमता और योग्यता की बात तो नई पीढ़ी के काफी पत्रकार भी बहुत योग्य और ऊर्जावान नहीं हैं। सभी अनुभवी पत्रकार भले ही बेहतर काम करने में सक्षम न हों, पर ज्यादातर का काम ठीक ही होता है। गलतियों की गुंजाइश कम होती है।
ऐसा कई अध्ययनों से साबित भी हो चुका है। 30 की उम्र तक तो लोग पत्रकारिता में आते ही हैं। कायदे से तो 35 के बाद ही काम की समझ हो पाती है। 40 में पत्रकार परिपक्व होकर बेहतर काम कर पाता है। हाल ही में कई बीपीओ व विदेशों में हुए अध्ययन में यह बात सामने आई कि 40 के बाद व्यक्ति काफी जिम्मेदारी से काम करता है। अगर 40 के बाद रिजेक्ट कर दिया जाए तो 35 वाला भी तो कुछ समय में ही 40 क्रास करेगा तब वह कहां जाएगा?
जीवन में वही सफलता ठीक है जो ईमानदारी और धर्म के रास्ते से मिली हो। सबसे बड़ी बात, जिसने बड़ों का सम्मान करना नहीं सीखा, वह सफल होकर भी विफल ही है। इसीलिए किसी के लिए अपशब्द का इस्तेमाल सर्वदा गलत है।
रही पत्रकारों के चयन की बात तो सभी मीडिया संस्थाओं में कम ज्यादा इसी तरह चयन हो रहा है। कायदे में चयन में हर व्यक्ति को मौका मिलना चाहिए। अनुभव के आधार पर कुछ टेस्ट का प्रावधान किया जा सकता है। लेकिन यह तभी सार्थक होगा, जब इसमें ईमानदारी बरती जाए।
नई दुनिया में गए सभी लोग योग्य हैं। वैसे भी योग्यता का कोई मापदंड नहीं है। लोगों को अयोग्य बताने वाले ही कहीं न कहीं से अयोग्य होते हैं। तभी ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं।
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