यशवंत भाई, बी4एम पर ही लगातार प्रभाषजी को पढ़ रहा हूं। मीडिया में भ्रष्टाचार पर उनकी चिंता से अवगत होते रहे हैं। लेकिन नक्कारखाने में तूती की आवाज सुनने वाले कौन हैं? आज कौन अखबार और पत्रकार ईमानदार हैं? बिहार में दस टकिया पत्रकार होते हैं। उन्हें हर प्रकाशित खबर पर 10 रुपये मिलते हैं, चाहे खबर तलाशने में सौ-दो सौ रुपये खर्च हो गए हों।
मुख्यालय में कार्यरत पत्रकारों को ही वेतन मिलता है, बाकी पत्रकार बेगार ही करते हैं। उनसे ईमानदारी की उम्मीद क्यों करते हैं? सभी अखबारों का यही हाल है। खैर।
अब बी4एम के माध्यम से प्रभाष जी से कुछ सवाल पूछना चाहते हैं। 12 जून को पटना में उनका एक व्याख्यान भी है। उसका विषय है- लोकतंत्र का ढहता चौथा खंभा। आयोजन गांधी संग्रहालय कर रहा है। हम चाहते हैं कि इन सवालों का जवाब भी प्रभाष जी उस कार्यक्रम में दें। हालांकि इस सवाल का प्रकाशन मेरे नाम से नहीं करें। बस इतना लिख सकते हैं कि पटना में कार्यरत एक पत्रकार ने पूछा है जो आपको उस कार्यक्रम में भी सुनने जाएगा।
धन्यवाद
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प्रभाष जोशी जी से पांच सवाल
इन दिनों वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी जी पैसा लेकर खबर छापने के मामले पर देश भर में अभियान चलाए हुए हैं। उनको व्यापक समर्थन भी मिल रहा है। उनके इस अभियान का औचित्य मुझे अब तक समझ में नहीं आया है। इस संबंध में हम श्री जोशी जी से पांच सवाल पूछना चाहते हैं ताकि उनके इस अभियान के प्रति मेरी अवधारणा भी स्पष्ट हो जाए-
- जो पूंजीपति मीडिया बाजार में अरबों रुपये लगा रहा है, क्या वह जनहित के लिए लगा रहा है?
- जब एक पत्रकार महीना पूरा होने के बाद तनख्वाह की उम्मीद करता है तो एक मालिक बाजार में लगी पूंजी से अधिकतम मुनाफा का उम्मीद क्यों न करे?
- जब संपादक की नियुक्ति ही कर्मचारियों का खून चूसने के लिए होती है तो पत्रकार से ईमानदार बने रहने की उम्मीद क्यों की जाती है?
- एक पत्रकार मीडिया मालिक का नौकर होता है। फिर नौकर का पहला और अंतिम लक्ष्य मालिक का हित साधना होता है। वैसे में आपके इस अभियान को कितने पत्रकारों का खुला समर्थन मिल रहा है?
- आप पत्रकारिता से सती सावित्री बने रहने की उम्मीद क्यों करते हैं, जिससे जुड़ा हर आदमी हर कीमत पर बाजार से अधिकाधिक मुनाफा चाहता है?