नैनीताल में इन दिनों एक पत्रकार महोदय खासे चर्चा में हैं. वे स्थानीय नगर पालिका में सफाई हवलदार हुआ करते हैं पर बीते कुछ दिनों से उन्हें पत्रकारिता का शौक चर्राया है. वे जहां-तहां फोटो खींचते और खबरें नोट करते दिखाई पड़ जाते हैं. इनका नाम है धर्मेश कुमार.
धर्मेश कुमार के पत्रकार बनने की भी एक कहानी है. एक हैं सुरेश कांडपाल. वे रुद्रपुर से प्रकाशित सांध्यकालीन हिंदी दैनिक ‘उत्तरांचल दर्पण’ में पत्रकार हैं. साथ ही ‘अमर उजाला’ में विज्ञापन का काम देखते हैं. सुरेश कांडपाल एक साथ दो-दो अखबारों को साध रहे थे. अमर उजाला ने उन पर दबाव डाला कि किसी एक जगह काम करिए. सुरेश कांडपाल ने अमर उजाला की नौकरी को प्रीफर किया. उत्तरांचल दर्पण छोड़ दिया. पर उन्होंने उत्तरांचल दर्पण में अपने जगह पर अपने एक खास आदमी को रखवा दिया. यह खास आदमी कोई और नहीं बल्कि पालिका के सफाई हवलदार धर्मेश कुमार हैं.
धर्मेश के पार्ट टाइम पत्रकार बन जाने से नगर पालिका के अध्यक्ष और कर्मचारी खुश हैं कि उनका आदमी भी मीडिया में चला गया और उनकी अच्छी-अच्छी खबरें छपने लगी है. धर्मेश कुमार शहर की साफ-सफाई करने-कराने के साथ-साथ अब पार्ट टाइम पत्रकारिता भी कर रहे हैं. पत्रकारों में वे फिलहाल कौतुक और चर्चा के विषय हैं. उपरोक्त तस्वीर में गोल घेरे वाले धर्मेश कुमार एक अधिकारी को ज्ञापन देने गए लोगों की तस्वीर खींचते नजर आ रहे हैं.
-नैनीताल के एक पत्रकार के पत्र पर आधारित
DEVESH KALYANI
January 19, 2010 at 3:22 pm
अच्छी खबर पर सामंती समझ की गंदगी
बंधुवर,
लगता है खबर लिखते वक्त सामंती संस्कारों की गंदगी विशेषण और टिप्पणियों की शक्ल में प्रकाशित की गई है। क्या सफाईकर्मी होना ऐसा गुनाह है जिसे माफी मुमकिन नहीं, क्या किसी को अपना वर्ग और कार्य की स्थितियां बदलने का हक नहीं है। क्या मीडिया में काम करने के अवसरों पर तथाकथित ऊंचे काम करने वालों की रिजर्वेशन या कहें कि बपौती है, अगर ऐसा नहीं हो तो प्रियवर अच्छा होगा कि यह खबर आप फिर प्रकाशित करें, लेकिन यह आपके संपादकीय कौशल से ऐसी निखरे कि इसमें से सामंती संस्कारों समझ और पूर्वाग्रह को संपादित कर सीधी खबर पेश की जाए। अगर ऐसा हो पाए तो हमारी ओर से भी आपकी जय-जय वरना ये तो साफ हो ही जाएगा कि यह जनाब संपादक भी इसी बीमारी से जकड़े हुए हैं और उन्हें भी इलाज की जरूरत है।