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‘एक रिपोर्टिंग में लूट रहा, दूसरा विज्ञापन में’

बिहार की पत्रकारिता में ज्यादातर पत्रकारों का मकसद सिर्फ पैसा कमाना है। हां, ये लोग बातें जरूर लंबी-लंबी करेंगे। लोगों को शिक्षा जरूर देते मिल जाएंगे। इसलिए तो इनका चरित्र दोहरा माना जाता है। यहां बड़े अखबारों की जितनी भी यूनिटें हैं, सबका यही हाल है। जितना लूट सको, लूट लो। अब मैं एक उदाहरण देता हूं। मुजफ्फरपुर में एक बड़े अखबार में पैसा कमाने का इक नायाब फंडा है।

<p align="justify">बिहार की पत्रकारिता में ज्यादातर पत्रकारों का मकसद सिर्फ पैसा कमाना है। हां, ये लोग बातें जरूर लंबी-लंबी करेंगे। लोगों को शिक्षा जरूर देते मिल जाएंगे। इसलिए तो इनका चरित्र दोहरा माना जाता है। यहां बड़े अखबारों की जितनी भी यूनिटें हैं, सबका यही हाल है। जितना लूट सको, लूट लो। अब मैं एक उदाहरण देता हूं। मुजफ्फरपुर में एक बड़े अखबार में पैसा कमाने का इक नायाब फंडा है। </p>

बिहार की पत्रकारिता में ज्यादातर पत्रकारों का मकसद सिर्फ पैसा कमाना है। हां, ये लोग बातें जरूर लंबी-लंबी करेंगे। लोगों को शिक्षा जरूर देते मिल जाएंगे। इसलिए तो इनका चरित्र दोहरा माना जाता है। यहां बड़े अखबारों की जितनी भी यूनिटें हैं, सबका यही हाल है। जितना लूट सको, लूट लो। अब मैं एक उदाहरण देता हूं। मुजफ्फरपुर में एक बड़े अखबार में पैसा कमाने का इक नायाब फंडा है।

यहां दो लोगों की जोड़ी काफी हिट है। एक रिपोर्टिंग में लूट रहा तो दूसरा विज्ञापन में। किसी से भी पूछेंगे तो बता देगा। इन लोगों ने ऐसा जाल बिछा रखा है कि कहीं से भी निकलना आपके लिए मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन होगा। डिस्प्यूट की खबर, ब्लैकमनी की खबर… कोई भी खबर.. अपने तरीके से छपवा लो। सिर्फ कीमत अलग होगी। इनका गैंग भी बहुत तगड़ा है। कहीं न कहीं आप फंस ही जाएंगे। अगर आप विज्ञापन देना चाहते हैं तो आपको कहा जाएगा कि मैं उसकी खबर उतने ही पैसे में बना कर छपवा दूं तो आपको कोई दिक्कत तो नहीं।

अब आप भी सोचेंगे कि विज्ञापन कोई देखेगा नहीं, खबर छपेगी तो काफी लोग पढ़ेंगे। आप तैयार हो जाएंगे और यह जोड़ी अपनी जेब भर लेगी और आपका काम भी चका-चक हो जाएगा। भाड़ में जाए अखबार का राजस्व। ये भाई लोग इतनी बारीकी से काम करते हैं कि यूनिट मैनेजर सात जनम में भी नहीं समझ पाएंगे और अगर समझ भी जाएं या कोई कहे भी तो इस जोड़ी ने इंप्रेशन ऐसा बना रखा है कि विश्वास ही नहीं हो सकता क्योंकि अंदर और बाहर उनके आका लोग जो बैठे हैं। कोई क्या बिगाड़ लेगा?

इन लोगों की कितनी सैलरी होगी? कभी किसी ने सोचा है? कीमती लिबास, कीमती मोबाइल, कीमती गाड़ी, आलीशान घर, घर में ऐशो-आराम की सारी वस्तुएं…. अचानक क्या मिल गया इन्हें? कहां से हो गया सब? क्या रातोंरात कुबेर का धन मिल गया? खैर, टाइम-टाइम की बात है। ये तो एक बानगी भर थी भाई लोगों की। इलेक्शन में कितने लाख रुपये कमाएं, पता नहीं। क्या-क्या और लिखें…. किनके बारे में लिखें…. सारे हमाम में नंगे हैं। ज्यादातर बड़े अखबारों का पूरा सिस्टम ही बिगड़ा हुआ है। पूछ उन्हीं की है जो कमाई करवा सकता है और खुद कमा सकता है, चाहे जिस भी तरीके से…..।

-बिहार के मुजफ्फरपुर जिले से आई एक पत्रकार की चिट्ठी का संपादित अंश

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0 Comments

  1. कुमार विनोद

    April 3, 2010 at 1:39 am

    भैया जी ये तो पता नहीं था, गए हुए बहुत दिन हो गए, अभी पिछले दिन रवीश कुमार का पोस्ट पढा था. (चाहें तो आप भी पढ़ लें) पढ़ा था, उनकी लच्छीदार भाषा में लगा था पटना के पत्रकार ‘मिशन’ को कंधे पर उठाए थे, आपकी बात तो ठीक उल्टी है(पढ़ने में सीधी सच्ची जरुर है) खैर मेरा क्या, मैं तो खुद को पत्रकार मानता ही नहीं, सो खबर खरीदने बेचने की बहस से दूर हूं, जिन्होंने बीड़ा उठाया है वो जाने…

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