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अब ‘हिन्दुस्तान’ भी बैक-फ़ुट पर?

[caption id="attachment_14693" align="alignnone"]दैनिक हिंदुस्तानदैनिक हिंदुस्तान के चंदौली-मुगलसराय और वाराणसी नगर संस्करण का प्रथम पेज (15 अप्रैल 2009)[/caption]दैनिक हिंदुस्तान के कल यानि 15 अप्रैल, 2009 के चन्दौली-मुगलसराय तथा वाराणसी नगर संस्करण के प्रथम पृष्ट का लेआउट रोजाना की ही तरह था। उपर तीन कालम में फोटो। लीड, सेकेंड लीड, सिंगल कालम, डबल कालम और तीन कालम खबरें, बाटम न्यूज। लेकिन अंतर बस इतना था कि इन सभी खबरों और तस्वीरों के केंद्र में थे माननीय तुलसी। ये तुलसी एक प्रत्याशी हैं। इन्हीं को समर्पित इस प्रथम पेज की कुछ हेडिंग इस प्रकार हैं- केवल वादा नहीं, कर्म करने में करते हैं विश्वास : तुलसी (लीड न्यूज), जाति-धर्म नहीं, सिर्फ विकास के लिए लड़ना है : तुलसी (सेकेंड लीड न्यूज), पूर्वांचल राज्य बनाकर विकास कराएंगे तुलसी (तीन कालम न्यूज), किसानों की खुशहाली को सर्वोच्च प्राथमिकता (बाटम न्यूज)। चुनावी सभा को संबोधित करते तुलसी की तीन कालम की टाप पोजीशन पर तस्वीर आप देख ही रहे हैं। इसके ठीक एक दिन बाद यानि आज 16 अप्रैल, 2009 को पहले पेज पर पहले कालम में छोटा सा एक स्पष्टीकरण छपा है, मुख्य संपादक के हवाले से।

यह स्पष्टीकरण इस प्रकार है-

दैनिक हिंदुस्तान

दैनिक हिंदुस्तानदैनिक हिंदुस्तान के कल यानि 15 अप्रैल, 2009 के चन्दौली-मुगलसराय तथा वाराणसी नगर संस्करण के प्रथम पृष्ट का लेआउट रोजाना की ही तरह था। उपर तीन कालम में फोटो। लीड, सेकेंड लीड, सिंगल कालम, डबल कालम और तीन कालम खबरें, बाटम न्यूज। लेकिन अंतर बस इतना था कि इन सभी खबरों और तस्वीरों के केंद्र में थे माननीय तुलसी। ये तुलसी एक प्रत्याशी हैं। इन्हीं को समर्पित इस प्रथम पेज की कुछ हेडिंग इस प्रकार हैं- केवल वादा नहीं, कर्म करने में करते हैं विश्वास : तुलसी (लीड न्यूज), जाति-धर्म नहीं, सिर्फ विकास के लिए लड़ना है : तुलसी (सेकेंड लीड न्यूज), पूर्वांचल राज्य बनाकर विकास कराएंगे तुलसी (तीन कालम न्यूज), किसानों की खुशहाली को सर्वोच्च प्राथमिकता (बाटम न्यूज)। चुनावी सभा को संबोधित करते तुलसी की तीन कालम की टाप पोजीशन पर तस्वीर आप देख ही रहे हैं। इसके ठीक एक दिन बाद यानि आज 16 अप्रैल, 2009 को पहले पेज पर पहले कालम में छोटा सा एक स्पष्टीकरण छपा है, मुख्य संपादक के हवाले से।

यह स्पष्टीकरण इस प्रकार है-

स्पष्टीकरण”हिन्दुस्तान के चंदौली-मुगलसराय एवं वाराणसी नगर संस्करण में बुधवार, 15 अप्रैल 2009 को प्रकाशित पहला पृष्ठ वास्तव में एक राजनीतिक दल के प्रत्याशी का चुनावी विज्ञापन है। उसमें प्रकाशित सामग्री का हिन्दुस्तान के सम्पादकीय विचारों से किसी प्रकार का तादात्म्य नहीं है।”

सवाल उठता है कि जिस दिन पहले पेज पर यह विज्ञापन प्रकाशित हुआ, उस दिन उस पेज पर स्पष्टीकरण क्यों नहीं छाप दिया गया ताकि पाठक खबर और विज्ञापन के बीच कनफ्यूज न करें। एक दिन बाद आज जब वोट डाले जाने हैं, तब प्रथम पेज पर छोटा सा स्पष्टीकरण देने से क्या जिन पाठको के दिमाग में इस विज्ञापन के खबर होने की धारणा बन चुकी होगी, उन्हें बदला जा सकेगा?

बीएचयू के पूर्व छात्र नेता, सामाजिक-राजनीति कार्यकर्ता और वरिष्ठ हिंदी ब्लागर अफलातून देसाई अपने ब्लाग पर इस प्रकरण के बारे में कुछ यूं लिखते हैं- ”…परसों शाम पहले चरण का प्रचार थमने के बाद १५ अप्रैल का जो हिन्दुस्तान आया उसके मुखपृष्ट पर प्रतिदिन की तरह दो टूक (पहले पन्ने पर छपने वाली सम्पादकीय टिप्पणी), सूर्योदय-सूर्यास्त का समय तथा तापमान, ‘हिन्दुस्तान की आवाज’ (अखबार द्वारा कराये गये जनमत संग्रह का परिणाम तथा ‘आज का सवाल’) एवं राजेन्द्र धोड़पकर का नियमित कार्टून स्तम्भ -’औकात’ छापे गये थे । इन नियमित तथा नियमित प्रथम पृष्ट होने का अहसास दिलाने वाले उपर्युक्त तमाम तत्वों के अलावा खबरों और चित्रों में जो कुछ छपा था आप खुद देख सकते हैं। आज मतदान का दिन है। अपने बूथ पर शीघ्र पहुंचने वाला मैं छठा मतदाता था । मतदान के बाद इत्मीनान से आज १६ अप्रैल, २००९ का हिन्दुस्तान देखा जिसमें  ‘मुख्य सम्पादक’ ने एक ‘माइक्रो’ नाप का स्पष्टीकरण छापा है। इसे भी आप चित्रों में देखें। सभी चित्रों को देखने के लिए चित्र पर खटका मारें। अलबम खुल जाने के बाद हर चित्र पर खटका मार कर बड़े आकार में देख सकते हैं।”

अफलातूनसाथ ही आगे अफलातून ये भी जानकारी देते हैं- ‘‘वाराणसी लोक सभा क्षेत्र से भाजपा उम्मीदवार मुरलीमनोहर जोशी ने शुरुआत में इन अखबारों का प्रचार-पैकेज खरीदने से इनकार किया था लेकिन अन्तिम दौर में उन्होंने भी ’पैकेज” ग्रहण कर लिया। बहरहाल, दीवाल-लेखन और बैनर लेखन जैसे पारम्परिक प्रचार करने वाले मेहनतकशों को इस प्रक्रिया के बाहर ढकेलने के बाद कथित निर्वाचन-सुधारों के तहत न सिर्फ़ बड़े अखबारों की तिजोरी भरी जा रही है, अखबारों की निष्पक्षता खत्म की जा रही है, भारी खर्च न कर पाने वाले प्रत्याशियों की खबरें ऐलानियां नहीं छप रही हैं तथा आम मतदाता- पाठक निष्पक्ष खबरें पाने से वंचित किया जा रहा है तथा इस प्रकार लोकतंत्र को बीमार और कमजोर करने में मीडिया का लोभी हिस्सा अपना घिनौना रोल अदा कर रहा है।”

अफलातून के ब्लाग पर जाकर ओरीजनल पोस्ट पढ़ने और सभी तस्वीरें देखने के लिए क्लिक करें- 

अब ‘हिन्दुस्तान’ भी बैक-फ़ुट पर?

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