”…महोदय, मैं आपके न्यूज पोर्टल का नियमित पाठक हूं लेकिन इस खबर को पढ़कर मुझे काफी ठेस लगी है, क्योंकि ऐसे तथ्यहीन समाचारों के प्रकाशन से आपकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लग गया है। इस बीच पता चला है कि आरोप लगाने वाले भाजपा प्रत्याशी राम इकबाल सिंह आपके रिश्तेदार हैं। तो क्या अब रिश्तेदारों की बदौलत ही पत्रकारिता की दुकान चलाने का इरादा है?….” पढ़िए पूरा पत्र…
सेवा में,
संपादक
भड़ास4मीडिया डॉट काम
महोदय,
आपके न्यूज पोर्टल पर प्रकाशित समाचार ‘पैसे लेकर चुनावी खबर छापने में जागरण फंसा’ पढ़ा। खबर के तथ्यों को पढ़ने से ऐसा लगा कि पूरे मामले की तहकीकात किए बिना, एकतरफा समाचार प्रकाशित कर दिया गया है। वास्तविकता को जाने बिना या दूसरे पक्ष का वर्जन लिए बिना समाचार अधूरा ही नहीं, पत्रकारिता के नियमों के विरूद्ध भी लगा। कुछ तथ्यों पर गौर करें… जैसे राम इकबाल सिंह ने 24 मार्च को नामांकन किया तो इनकी फोटो सहित समाचार दैनिक जागरण के प्रथम पृष्ठ पर 25 मार्च के अंक में प्रकाशित हुआ था। इसी तरह इनकी पार्टी के स्टार प्रचारकों कलराज मिश्र, योगी आदित्यनाथ, राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह व प्रदेश अध्यक्ष डा. रमापति राम त्रिपाठी के समाचार प्रमुखता से दैनिक जागरण समाचार पत्र के स्थानीय पृष्ठों पर क्रमशः 4 अप्रैल, 7 अप्रैल, 11 अप्रैल, व 14 अप्रैल को प्रकाशित किए गए हैं।
महोदय, मैं आपके न्यूज पोर्टल का नियमित पाठक हूं लेकिन इस खबर को पढ़कर मुझे काफी ठेस लगी है, क्योंकि ऐसे तथ्यहीन समाचारों के प्रकाशन से आपकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लग गया है। इस बीच पता चला है कि आरोप लगाने वाले भाजपा प्रत्याशी राम इकबाल सिंह आपके रिश्तेदार हैं। तो क्या अब रिश्तेदारों की बदौलत ही पत्रकारिता की दुकान चलाने का इरादा है?
वेद मिश्र
कोषाध्यक्ष, मऊ जर्नलिस्ट प्रेस क्लब, मऊ
दिनांक- 14.04.09
भाई वेद जी
सादर प्रणाम
आपका पत्र मिला। पहले तो आपको अपने दिल की बात साफ-साफ लिखकर भेजने के लिए बधाई।
मित्र, अगर कोई प्रत्याशी किसी अखबार के खिलाफ लिखित कंप्लेन प्रेस काउंसिल में करता है तो वह हमारे लिए खबर है और इस खबर पर किसी से वर्जन लेने की कोई जरूरत नहीं है। वर्जन हम तब लेते जब हम खुद किसी अखबार पर आरोप लगाते। कुछ उसी तरह, जैसे आप एक पत्रकार के नाते किसी थाने में लिखी गई रिपोर्ट के आधार पर खबर छाप देते हैं। ऐसे मामलों में वर्जन लेने की परंपरा नहीं रही है। मैं इस तकनीकी औपचारिकताओं से अलग कुछ बातें कहना चाह रहा हूं। आप भी ये मानते होंगे कि मीडिया को खबरों का सौदा नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करके हम दरअसल न सिर्फ मीडिया को कलंकित करते हैं बल्कि पाठकों के साथ छल करते हैं। इस चुनाव में प्रभात खबर और अमर उजाला जैसे अखबारों ने पहले ही ऐलान कर दिया कि वे चुनावी एडवरटोरियल नहीं प्रकाशित करेंगे। लेकिन कई बड़े अखबार खुल्लमखुल्ला चुनावी एडवरटोरियल प्रकाशित कर रहे हैं। एक अखबार ने लखनऊ में एक प्रत्याशी का पूरा एक पेज इंटरव्यू प्रकाशित किया है। इसमें कहीं नहीं लिखा गया है कि ये विज्ञापन है। इंटरव्यू भी सिर्फ तारीफ और प्रशंसा के पुल ही बांधे गए हैं।
इसी तरह पूर्वी उत्तर प्रदेश में कई अखबार प्रत्याशियों से पैसे लेकर जमकर खबरें छाप रहे हैं। आज से पहले तो किसी प्रत्याशी को किसी अखबार के खिलाफ प्रेस काउंसिल नहीं जाना पड़ा। प्रतिक्रिया तभी होती है जब कहीं कोई क्रिया हो रही होती है- विज्ञान का यह सिंपल सिद्धांत हर जगह काम करता है। प्रत्याशियों को इसलिए प्रेस काउंसिल जाना पड़ रहा है क्योंकि उन्हें पैसे देकर खबर छपवाने के लिए खुले आफर अखबारों की ओर से आ चुके हैं या आ रहे हैं। जो इससे इनकार कर रहा है वह भुगत रहा है, चुनावी कवरेज से बायकाट के रूप में। अब जबकि पानी सिर के उपर जा चुका है और कई अखबार प्रत्याशियों को ब्लैकमेल तक करने लगे हैं, पैसे देकर खबर छपवाने के लिए और पैसे न देने पर खबर न छापने के लिए, तो यह जरूरी हो जाता है कि अगर कोई पीड़ित प्रत्याशी इस नीच धंधे के खिलाफ आवाज उठाता है तो उसकी बात को सबके सामने लाया जाए। आप जो कह रहे हैं, हो सकता है वो भी सही हो कि दैनिक जागरण राम इकबाल सिंह को कवर कर रहा है। लेकिन हम लोग जज नहीं है कि फैसला सुना देंगे कि राम इकबाल सही हैं या दैनिक जागरण सही है। हमारा काम मीडिया से जुड़ी सूचनाओं, खबरों को सामने लाना है। प्रेस काउंसिल में शिकायत दर्ज कराने का मतलब होता है कि मीडिया से संबंधित व्यक्ति को तकलीफ है और वह न्याय पाना चाहता है। अब यह प्रेस काउंसिल का काम है कि वह जांच कर फैसला करे कि क्या गलत है और क्या सही।
रही बात राम इकबाल सिंह के मेरे रिश्तेदार होने के तो अभी तक न तो उनसे मेरी मुलाकात है और न ही मेरी कोई उनसे बात हुई है, कुछ उसी तरह जैसे आपसे बिना बात किए ही आपकी बात को यहां रख रहा हूं। हां, अगर आपने बताया है कि वे मेरे रिश्तेदार हैं तो मैं जरूर पता करूंगा कि राम इकबाल जी मेरे रिश्ते में क्या लगते हैं। एक चीज जरूर है, वे भी नाम के आगे सिंह लिखते हैं और मैं भी सिंह लिखता हूं तो हो सकता है कि ये समानता आपके दिमाग में हम दोनों के रिश्तेदार होने का आधार तैयार कर रही हो, फिर भी अगर जातिवादी और रिश्तेदार बनकर अगर कोई नेक काम करने की मजबूरी हो तो उसे जरूर करना चाहिए।
एक बार फिर मैं आपको अपनी बात कहने के साहस के लिए बधाई दूंगा। आप पत्रकारिता की गरिमा के लिए जरूर सक्रिय होंगे और साथ में मऊ जर्नलिस्ट प्रेस क्लब को सक्रिय करेंगे, जिसके आप पदाधिकारी हैं, ये मैं उम्मीद करता हूं। दरअसल, जो काम प्रेस क्लबों और प्रेस संगठनों को करना चाहिए, दुर्भाग्य से वो काम भड़ास4मीडिया जैसे संसाधनहीन पोर्टल अचेतन रूप में कर रहे हैं। कहीं न कहीं सवाल के घेरे में आप भी हैं क्योंकि प्रेस क्लब के पदाधिकारी होने के बावजूद आपके जिले में एक बड़े अखबार पर पैसे लेकर खबर छापने के आरोप लग रहे हैं और आप न सिर्फ चुपचाप बैठे हैं बल्कि बड़े अखबारों के पक्ष में ही आवाज उठा रहे हैं। क्या मैं पूछ सकता हूं कि यह सब करने के लिए दैनिक जागरण ने आपको कितने पैसे दिए?
अगर आपको ज्यादा कुछ कहना-जानना है तो बनारस में अफलातून जी ([email protected]) रहते हैं जो आजकल बड़े अखबारों की गंदी हरकत के खिलाफ अपने ब्लाग पर लगातार लिख रहे हैं और प्रेस क्लब में शिकायत भी की है, उनसे संपर्क करिएगा। यहां बता दूं, अफलातून जी खुद चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। वे बीएचयू के छात्र नेता रहे हैं और अब एक सचेत व्यक्तित्व के रूप में देश-समाज के उन मुद्दों पर लड़ रहे हैं, जिस पर लोगों ने मुंह खोलना बंद कर दिया है, डर के मारे या लालच में।
आभार के साथ
यशवंत सिंह