निजीकरण के करीब एक दशक बाद भी एफएम रेडियो कारोबार कमाई लिहाज से काफी पिछड़ रहा है। उद्योग जगत के मुताबिक, दिसंबर 2009 तक एफएम रेडियो उद्योग की आय 800 करोड़ रुपये हुई, जबकि घाटा 2,400 करोड़ रुपये का हुआ। स्थिति में सुधार के लिए हाल ही में रेडियो ऑपरेटरों ने रेडियो इन्वेस्टर फोरम का गठन किया है। फोरम के सदस्य पिछले दिनों सूचना एवं प्रसारण मंत्री से मुलाकात कर एफएम रेडियो में व्यावहार्यता की कमी का मुद्दा उठाया। फोरम में मिड-डे मल्टीमीडिया, रेडियो मिर्ची, टाइम्स ग्रुप ब्रांड, भास्कर ग्रुप और जागरण ग्रुप शामिल हैं।
फोरम में शामिल इन कंपनियों के अलावा, सन ग्रुप, रिलायंस एडीएजी और अन्य कंपनियों के देशभर में करीब 284 निजी एफएम चैनलों का प्रसारण किया जा रहा है। फोरम ने मंत्रालय से मांग की है कि लाइसेंस की अवधि को 10 साल से बढ़ाकर 15 साल कर दिया जाए। इसके साथ ही मंत्रालय से आग्रह किया गया है कि म्यूजिक रॉयल्टी मसले का निपटारा किया जाए। फोरम ने कहा कि हमने सरकार को सुझाव दिया है कि नए चरण की शुरुआत से पहले उद्योग की व्यवहार्यता का स्वतंत्र और पारदर्शी मूल्यांकन किया जाना चाहिए। फोरम ने बताया कि मंत्रालय ने उनके सुझाव को गंभीरता से लिया और अपने सचिवालय को इस दिशा में त्वरित कार्रवाई करने का निर्देश भी दिया। निजीकरण के तीसरे चरण में करीब 800 एफएम स्टेशन प्रसारित होने का अनुमान है। उद्योग जगत के जानकारों का कहना है कि इस बारे में नीति और रूपरेखा पहले से ही तैयार है। हालांकि तीसरे चरण के तहत ज्यादातर एफएम कंपनियां निवेश करने को इच्छुक नहीं हैं।
श्री पूर्ण मल्टीमीडिया के निदेशक राहुल गुप्ता ने बताया कि दूसरे चरण का मसला अब तक लंबित है। ऐसे में हम कैसे बोली लगा सकते हैं। 268 रेडियो स्टेशनों में से ज्यादातर 2006 में आया था। ऐसे में उनके पास निवेश से मुनाफा कमाने के लिए 6 साल ही बचा है। मिड-डे मल्टीमीडिया के प्रबंध निदेशक तारिक अंसारी ने बताया कि आंकड़ों से पता चलता है कि रेडियो के श्रोताओं की संख्या काफी ज्यादा है और यह संचार का अच्छा माध्यम है, लेकिन कमाई के लिहाज से यह पिछड़ता जा रहा है। केवल रेडियो मिर्ची ही कुछ कमाई करने में सफल हो पा रही है। उन्होंने बताया कि रेडियो उद्योग निवेश का रिटर्न भी हासिल करने में सफल नहीं हो पा रहा है। रेडियो मिर्ची के सीईओ प्रशांत पांडे ने बताया कि दूसरे चरण की शुरुआत से पहले ही हमने रॉयल्टी के बारे में मंत्रालय से बात की थी। हमें आश्वासन मिला था कि इस मसले का हल निकाल लिया जाएगा।
यही वजह रही कि हमने दूसरे चरण के तहत छोटे शहरों के लिए बोली लगाई। उन्होंने बताया कि परिचालन लागत में रॉयल्टी का बड़ा हिस्सा होता है। रॉयल्टी की गणना संगीत-गीत प्रसारण के हर घंटे के आधार पर की जाती है। ऐसे में छोटे शहरों के स्टेशनों में रॉयल्टी के हिस्से 40 से 60 फीसदी आय चली जाती है। चेन्नई व दिल्ली जैसे बड़े शहरों में उतने ही गीत प्रसारित करने पर आय का 7 फीसदी ही रॉयल्टी मद में जाता है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि रेडियो विज्ञापनों की आय इन शहरों में 100 करोड़ से ज्यादा होती है। ऐसे में बड़े शहरों में परिचालन फायदे का सौदा है। साभार : बिजनेस स्टैंडर्ड