मुंबई में हुई घटना को पढ़ा और साथ में प्रकाशित हुआ पत्र भी पढ़ा. महिला पत्रकार ने जो आरोप फोकस टीवी के मुंबई ब्यूरो चीफ हरिगोविंद विश्वकर्मा पर लगाये हैं, वो कितने सत्य हैं और कितने असत्य, ये कहना मुश्किल है लेकिन एक बात जरूर है कि मीडिया के इतिहास में ये पहला मामला नहीं है जब किसी महिला पत्रकार ने इस तरह के आरोप अपने सीनियर या किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति के नाम पर लगायें हों. कई ऐसे कई आरोप सामने आए हैं और इन आरोपों के पीछे छिपी दुर्भावना भी सामने आई है. यहां भी हरिगोविंद विश्वकर्मा किसी दुर्भावना का शिकार लग रहे हैं. हो सकता है उन पर लगे आरोप सही भी हों लेकिन बात ये भी सोचने की है कि जब महिला पत्रकार को काफी दिनों से परेशान किया जा रहा था तो उन्होंने उस समय इस तरह का कोई एक्शन क्यों नहीं लिया? और जब उन्होंने अपने हेड ऑफिस को इस बात की शिकायत की और कोई कार्यवाही नहीं हुई तो उन्होंने इसी चैनल को दुबारा ज्वाइन करने का फैसला क्यों लिया?
कोई भी लड़की या महिला ऐसी जगह काम नहीं करना चाहेगी जहां उसके साथ बदसलूकी की जाती हो या मानसिक तौर पर परेशान किया जाता हो. और जिन हरिगोविंद विश्वकर्मा पर इस तरह के आरोप लगाए गए हैं, उनके पिछले रिकॉर्ड को जानकर ऐसा नहीं लगता कि जिस व्यक्ति को 20-22 साल का मीडिया का तजुर्बा है, वो इस तरह की हरकत का परिणाम नहीं जानता होगा और इस तरह की हरकत को अंजाम दे रहा होगा. कई वरिष्ट पत्रकार जो हरिगोविंद विश्वकर्मा को कई सालों से जानते हैं और खुद विश्वकर्मा के स्टाफ के अन्य कर्मियों को जब उनसे कोई परेशानी नहीं थी तो क्या विश्वकर्मा सिर्फ उसी महिला पत्रकार के साथ कोई पर्सनल दुश्मनी निकालने के लियें अपना करियर दांव पर लगायेंगे? अजीब लगता है सुनकर. अब महिला पत्रकार ने वास्तव में परेशान होकर ये आरोप लगाए हैं या फिर किसी दुर्भावना के तहत ये साजिश रची गयी है, ये तो वही महिला पत्रकार जानती है लेकिन इस घटना से ये बात फिर से सामने आ रही लगती है की नए नवेले लोग अपने करियर के लिए किसी सीधे साधे व्यक्ति का करियर जरूर खराब कर देते हैं. वास्तव में मीडिया के सीधे-साधे लोगों का सतर्क रहना बहुत जरुरी हो गया है.
नितिन शर्मा
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