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‘मेरी लड़ाई बुरे व्यक्ति से है, पत्रकारिता से नहीं’

सबसे पहले तो भड़ास4मीडिया को धन्यवाद देती हूं कि कमसे कम मेरी बात रख कर मुझे एहसास दिलाया की अच्छे लोग पत्रिकारिता में अब भी सच का साथ देने की हिम्मत रखते हैं. लेकिन साथ ही कुछ निकृष्ट मानसिकता को शरण देने वाले समझौतावादी बुद्धिजीवी अब भी हरिगोविन्द जैसों की काली करतूतों पर झूठ का पर्दा डालकर न सिर्फ पत्रकारिता को कलंकित कर रहे हैं, बल्कि “पत्रकारिता की निष्पक्षता” की छवि पर भी लीपापोती करना चाह रहे हैं. ये जानकर मेरी जैसी मेहनती, खुद्दार व आत्मसम्मान से समझौता न करने वाली पत्रकार की आंखें आंसुओं से भर गयी.

सबसे पहले तो भड़ास4मीडिया को धन्यवाद देती हूं कि कमसे कम मेरी बात रख कर मुझे एहसास दिलाया की अच्छे लोग पत्रिकारिता में अब भी सच का साथ देने की हिम्मत रखते हैं. लेकिन साथ ही कुछ निकृष्ट मानसिकता को शरण देने वाले समझौतावादी बुद्धिजीवी अब भी हरिगोविन्द जैसों की काली करतूतों पर झूठ का पर्दा डालकर न सिर्फ पत्रकारिता को कलंकित कर रहे हैं, बल्कि “पत्रकारिता की निष्पक्षता” की छवि पर भी लीपापोती करना चाह रहे हैं. ये जानकर मेरी जैसी मेहनती, खुद्दार व आत्मसम्मान से समझौता न करने वाली पत्रकार की आंखें आंसुओं से भर गयी.

जो लोग मुझे पत्रकारिता के क्षेत्र में नौसिखिया समझते हैं, मैं उन्हें बताना चाहूंगी कि मुख्यमंत्री से लेकर उप प्रधानमंत्री तक के इंटरव्यू लेने वाली अक्षमा शर्मा एनसीसी की सम्मानित कैडेट रही है, जो गणतंत्र दिवस के मौके पर राज्यपाल द्वारा “सी” सर्टिफिकेट के साथ ही “बेस्ट कैडेट” का सम्मान पा चुकी है. पत्रकारिता के माध्यम से मैंने न जाने कितनी महिलाओं के दर्द को दुनिया के सामने रख कर उनकी इन्साफ की लड़ाई में उनका साथ दिया है. और आज अगर मैं खुद एक महिला पत्रकार होते हुए भी अपने ऊपर हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज़ नहीं उठा सकती हूं तो मैं आम महिला के लिए कैसे लडूंगी?

मैं दूध पीती बच्ची नहीं कि कोई वकील बहला-फुसला कर मुझे एफआईआर दर्ज कराने को प्रेरित करे. जब पानी सर से गुजर गया तब मैंने ये कदम उठाया है. जो लोग हरिगोविन्द विश्वकर्मा का समर्थन सिर्फ इसलिए कर रहे हैं कि वो भी मीडियाकर्मी हैं, तो मुझे उनकी पत्रकारिता पर संदेह होता है. क्या हरिगोविन्द जैसे मीडियाकर्मी को अपनी सीनियारिटी और पद की वजह से मुझे बेइज्जत करने का लाइसेन्स मिल जाता है? मुझे डराया जाता है कि अगर मैंने कुछ कहा तो मुझे कहीं नौकरी नहीं मिल पायेगी. तो मैं आप सभी से कहती हूं कि आज़ादी के दीवानों की तरह ही मुझे मेरा आत्मसम्मान नौकरी से ज्यादा प्यारा है.

जो लोग हरिगोविन्द की कालिख पोछ कर मेरे मुंह पर मलना चाहते हैं उनका, मैं पत्रकार अक्षमा शर्मा अपनी कलम और न्याय व्यवस्था के जरिए मुंहतोड़ जवाब देने में कभी भी, कहीं भी, किसी भी कीमत पर नहीं झुकूंगी. मेरी लड़ाई व्यक्ति से है, पत्रकारिता से नहीं है. जो लोग सत्य को धुंधला करना चाहते हैं, वे जान लें कि वे सत्य पर कुछ देर तक परदा डाल सकते हैं, सत्य को हमेशा के लिए मिटा नहीं पाएंगे. जो लोग सत्य की लडाई में मेरे साथ हैं, वो सभी पत्रकार भाई-बहनें मेरा साथ दें.

अक्षमा शर्मा

पत्रकार, मुंबई

संपर्क : [email protected]

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