क्या महिला पत्रकारों के साथ काम करना इतना खतरनाक है? उस दिन रात 10 बजे जैसे ही मेरे एक पत्रकार मित्र ने मुझे एसएमएस कर बताया कि फोकस टीवी के मुबंई व्यूरो चीफ हरगोविंद विश्वकर्मा को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है, मैंने तुरंत हरगोविंद के मोबाईल पर कॉल किया पर उनके दोनों मोबाइल बंद मिले. सोचा मामला दर्ज हुआ होगा. पर गलत आरोप पर इतनी जल्द गिरफ्तरी थोड़े होगी. पर थोड़ी ही देर बाद सूचना मिली की हरगोविंद जी को वर्सोवा पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. सुन कर दुख के साथ आश्चर्य भी हुआ कि उन्होंने इस बात की सूचना क्यों नहीं दी.
रात को अपने कुछ पत्रकार मित्रों के साथ वर्सोवा पुलिस स्टेशन पहुंचा. वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक से मुलाकात कर मामले के बारे में पूरी जानकारी ली. शिकायतकर्ता (अक्षमा शर्मा) का नाम जानकर और भी आश्चर्य हुआ. मैंने कभी अक्षमा को देखा नहीं था. पर इतना जानता था कि फोकस टीवी में आने के पहले यह लड़की जिस चैनल में काम करती थी. उसका शटर डाउन होने के बाद हरगोविंदजी ने ही उसे फोकस टीवी में नौकरी दिलाई थी. अब तक पुलिस वाले भी समझ चुके थे कि हमारी गिरफ्त में आया दुबला-पतला आदमी एक शरीफ इंसान है और उस पर लगाए गए आरोप निराधार हैं. पर उनके खिलाफ शिकायत थी. इसलिए उनकी गिरफ्तारी होनी ही थी, हुई. दूसरे दिन कोर्ट में हरगोविंद के समर्थन में कई पत्रकार व फोकस टीवी में काम करने वाली कई महिला पत्रकार मौजूद थीं. सभी हरगोविंद के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने वाली अक्षमा शर्मा को कभी न क्षमा करने की बात कह रहीं थीं. वहां पहुंच कर पता चला कि हरगोविंद को वर्सोवा पुलिस करीब 12.30 बजे तक कोर्ट लेकर पहुंचेगी.
इस बीच मैंने फोकस टीवी चैनल में हरगोविंद के साथ काम कर रहीं महिला पत्रकारों से सच्चाई जाननी चाही तो फोकस टीवी में रिपोर्टर पायल ने बताया कि पूरा स्टॉफ अक्षमा के खिलाफ था, क्योंकि उसका व्यवहार सभी के साथ खराब रहता था. करीब 15 दिनों पहले हम लोगों ने दिल्ली ऑफिस को एक पत्र लिख कर कहा था कि अक्षमा शर्मा के खराब व्यवहार की वजह से हम तंग आ गए हैं. इसलिए उसके साथ काम नहीं कर सकते. इस पत्र पर हरगोविंद जी को छोड़कर सभी लोगों ने हस्ताक्षर किए थे. इस पत्र पर कारवाई करते हुए चैनल प्रबंधन ने अक्षमा शर्मा को हटाने का फैसला किया. इस पर हरगोविंद जी अक्षमा को कई दिनों तक समझाते रहे कि कंपनी आप को बर्खास्त करे, उससे पहले इस्तीफा दे दो. इससे तुम्हारा कैरियर खराब नहीं होगा. पर शायद हरगोविंद जी को पता नहीं था कि वे जिसके कैरियर की चिंता कर रहे हैं, वह उन्हीं के कैरियर को खराब करने के बारे में सोच रही है. इस घटना के बाद मैं अब सोचने लगा हूं कि क्या लड़कियों के साथ काम करना इस कदर खतरों से भरा है. पर यह भी सच है कि सभी ऐसी नहीं होतीं.
-विजय सिंह कौशिक
स्टाफ रिपोर्टर
नवभारत, मुंबई
विश्वकर्मा जी कभी छिछले या घटिया नहीं दिखे
विश्वकर्माजी पर लगे आरोपों को पढ़ कर मैं स्तब्ध रह गया. मैं उनको निजी तौर पर जनता हूं. विश्वकर्माजी ऐसा कर सकते हैं, मैं सपने में भी नहीं सोच सकता ! 1998 में कुबेर टाइम्स, मुंबई के बंद होने के बाद वे दिल्ली ऑफिस आ गए थे. मै भी उन दिनों IIMC से प्रशिक्षण लेने के बाद कुबेर टाइम्स के दिल्ली ऑफिस में बतौर उप-संपादक कम कर रहा था. मिलनसार स्वभाव की वजह से विश्वकर्माजी से हम लोगों की खूब बनती थी और अंतत: करीब साल भर तक वे हमारे घर पर ही रहे. इस दौरान मुझे उनके कई मित्रों से भी मिलने का मौका मिला. लेकिन कभी भी उनके घटिया होने या छिछलेपन वाली बात नहीं दिखी. मुझसे रहा नहीं गया, सो यह पत्र लिख रहा हूं.
-नलिनी रंजन
सहायक प्रोफेसर
पत्रकारिता
कस्तूरी राम कॉलेज, नरेला, दिल्ली