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दुख-दर्द

जनकवि गिरीश तिवारी उर्फ गिरदा नहीं रहे

[caption id="attachment_17935" align="alignleft" width="127"]गिरदागिरदा[/caption]: गिरदा की आवाज में सुनें फैज की एक रचना : उत्तराखंड से एक बुरी खबर आ रही है. रंगकर्मी, सोशल एक्टिविस्ट और जनकवि गिरीश चंद्र तिवारी उर्फ गिरदा का आज 68 साल की उम्र निधन हो गया. पेट में अल्सर की वजह से उन्हें तीन दिन पहले हल्द्वानी के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. अल्सर फट जाने और इनफेक्शन की वजह से उन्हें बचाया नहीं जा सका. हालांकि डाक्टरों ने आपरेशन कर उन्हें बचाने की भरसक कोशिश की थी.

गिरदा

गिरदा

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: गिरदा की आवाज में सुनें फैज की एक रचना : उत्तराखंड से एक बुरी खबर आ रही है. रंगकर्मी, सोशल एक्टिविस्ट और जनकवि गिरीश चंद्र तिवारी उर्फ गिरदा का आज 68 साल की उम्र निधन हो गया. पेट में अल्सर की वजह से उन्हें तीन दिन पहले हल्द्वानी के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. अल्सर फट जाने और इनफेक्शन की वजह से उन्हें बचाया नहीं जा सका. हालांकि डाक्टरों ने आपरेशन कर उन्हें बचाने की भरसक कोशिश की थी.

चिपको आंदोलन, उत्तराखंड अलग राज्य आंदोलन समेत कई जनांदोलनों में बेहद सक्रिय रहे इस जनकवि ने अपनी कविताओं के माध्यम से लाखों लोगों को जागरूक किया. सामाजिक बुराइयों के खिलाफ अभियान चलाने में वे सदा आगे रहे. गिरदा के परिवार में उनका एक बेटा व पत्नी हैं. निधन आज सुबह दस बजे हल्द्वानी के निजी अस्पताल में हुआ.

गिरदा ने युवावस्था से ही उत्तराखंड की पीड़ा को अपनी कविताओं में उकेरना प्रारंभ कर दिया था. 1974 का वन बचाओ आंदोलन हो या 1984 का नशा नहीं रोजगार दो आंदोलन या 1994 का निर्णायक उत्तराखंड राज्य प्राप्ति आंदोलन, सभी में गिरदा ने अपनी कविताओं के जरिए जनजागरण किया. गिरदा अपनी कविताओं से जनसमस्याओं के समाधान के लिए बने शासन-प्रशासन के तंत्र पर तीखे तंज भी कसते रहे हैं. उत्तराखंड की कोई भी समस्या हो, कोई भी आंदोलन हो, कोई भी पीड़ा हो, गिरदा अपनी कविता के माध्यम से सब जगह उपस्थित रहे. उम्र अधिक हो जाने के बावजूद भी उनकी कलम नहीं रुकी.

गिरीश चंद्र तिवारी गिरदा का जन्म 1945 में ज्योली हवालबाग में श्री हंसादत्त तिवाडी तथा श्रीमती जीवन्ती तिवाडी के घर पर हुआ. छठें दशक में पीलीभीत में पीडब्ल्यूडी में नौकरी के दौरान गिरदा का संपर्क कवि सम्मेलनों के माध्यम से अनेक हस्तियों से हुआ. 28 नवंबर 1967 को वह गीत एवं नाट्य प्रभाग से जुड़े. 1977 में भारतेंदु हरिश्चंद्र का ‘अंधायुग’ नाटक निर्देशित किया. गिरदा द्वारा लिखित नाटक ‘नगाड़े खामोश हैं’ काफी चर्चित है.

1978 में गिरदा की सामाजिक कविताओं का संकलन ‘हमारी कविता के आंखर’ नाम से प्रकाशित हुआ. 1999 में दुर्गेश पंत के साथ गिरदा ने शिखरों के स्वर नामक कविता संग्रह संपादित किया. प्रसिद्ध वीरगाथा गायक झुसिया दमाई पर गिरदा ने 400 पेज का एक शोध तैयार किया. इसमें बताया गया कि तीजन बाई की पण्डवानी और झुसिया दमाई की वीरगाथाओं में काफी समानताएं हैं. गिरदा को उत्तराखंडी प्रवासियों के संगठन यूएएनए द्वारा अमेरिका बुलाकर सम्मानित किया गया.

गिरदा की आवाज में फैज की रचना ”हम मेहनतकश जगवालों से जब अपना हिस्सा मांगेंगे, एक खेत नहीं एक देश नहीं हम सारी दुनिया मांगेंगे…” को सुनने के लिए क्लिक करें… काकेश की कतरनें

गिरीश तिवारी गिरदा के क्रांतिकारी संबोधन, विचारों व कुछ गीतों को आप इन वीडियो पर क्लिक करके देख सुन सकते हैं…

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0 Comments

  1. sanjay

    August 22, 2010 at 12:09 pm

    Bhagwan Girda ji ki Aatma ko Shanti de..
    Hari Om

  2. ravishankar vedoriya 9685229651

    August 22, 2010 at 12:42 pm

    nam ankho se unhe bhavbini sradanjali arpit bagban unki atma ko shanti pradan kare

  3. विजय वर्धन उप्रेती

    August 22, 2010 at 1:34 pm

    उत्तराखण्ड के लोकगायक और जनसंघर्षों को अपने गीतों में पिरौने वाले गिरीश चन्द्र तिवारी गिर्दा हमेशा हमेसा के लिए हमे छोड़ कर चले गये। ताउम्र अपने गीतों से जनसंघर्षों को आगे बढ़ाने वाले गिर्दा लोकगायक कलाकार होने के साथ ही एक लेखक भी थे। उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन में गिर्दा के गीतों ने आंदोलन की अलख जगाये रखी। एक कलाकार होने के साथ ही गिर्दा उस व्यवस्था के विरोधी भी थे। जिसमें शासक वर्ग जनता का खून चूसते रहते है। इस महान लोकगायक ने कई दफा अपने गीतों से सत्ता के खूनी और पूंजीवादी चरित्र का भी पर्दाफाश किया। गिर्दा एक जनकवि होने के साथ ही सामाजिक कार्यकर्ता भी थे। जिन्दगी भर उन्होनें समाज के कमजोर तबके की बेहतरी के लिए संघर्ष किया। जिस सपने को गिर्दा ने जिन्दगी भर देखा और उसका पूरा होना भले ही अभी शेष है। लेकिन गिर्दा का समाज के लिए खुद को मिटा देने का जज्बा ही है कि उनकी मौत की खबर सुनते ही उनके चाहने वाले सदमें में हैं। गिर्दा ने पर्वतीय समाज के दुख.तकलीफों को इतनी बखूबी से गीतों में पिरोया किए सुनने वालों को उनके गीतों में खुद की पीढ़ा नजर आने लगी। गिर्दा की गणना उन कलाकारों में होती है। जो कला के जरिये समाज को बेहतर बनाने में लगे रहते है। शायद इसिलिए गिरीश तिवारी गिर्दा जैसे लोगों को सिर्फ एक कलाकार के खांचें में फिट करना सही भी नही है।

    विजय वर्धन उप्रेती

    अध्यक्षए हिमालयन जर्नलिस्ट एसोसिएशनए पिथौरागढए उत्तराखण्ड

  4. arun sharma

    August 22, 2010 at 6:40 pm

    jaise hi din me khabar lagi ki girda nahi rahe , viswas nahi hua, jan jan me chetna jagane wala khud so gaya, uttrakhand andolan ke dauran aur uske baad bhi kai maukon par unko suna , ab vah nirbheek aawaj sant ho gayi hai. girda ke saath narendra singh negi ki jugalbandi sahityapremion ko jhakjhor deti thee.tum kahin nahi gaye ho girda, hamesha hamare beech rahoge apne geeton ke madhyam se.

  5. charu tiwari

    August 22, 2010 at 6:50 pm

    गिर्दा का जाना हम सबके लिये असहनीय है। एक ऐसा व्यक्तित्व जिसने उत्तराखंड की आंदोलन की परंपरा को नये आयाम दिये। आंदोलनों को स्वर देने वाले गिर्दा की आवाज उनके लिये थी जो बोल नहीं सकते। उनकी आवाज हमेशा आम जन के हकों को पाने के लिये प्रतिकार के रूप में हमेशा मेहनतकश और आंदोलनरत जनता के साथ रही। यह आवाज उनकी खामोशी के बाद और सुनी-समझी जायेगी। वर्षों तक, सदियों तक। गिर्दा को अश्रुपूर्ण श्रद्वांजलि। आज दिल्ली में विभिन्न संगठनों ने गढ़वाल भवन में उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को याद किया। बहुत ही गमगीन माहौल में लोगों ने लोगों ने उन गीतों और कविताओं का जिकz किया जिसमें वे नई चेतना का रास्ता दिखाते रहे हैं। गिर्दा आपका अपनत्व, प्यार, स्नेह, हमें तब-तब आपकी याद दिलायेगा जब-जब हम आपके उन बिताये पड़ावों से गुजरेंगे, जिसने हम सबकों चेतना का बड़ा पफलक दिया। आपके स्वर वैसे ही रहेंगे-

    हम ओड, बारूड़ी, कुलि, कबाड़ी,
    जब य दुनि हं हिसाब ल्यूलो,
    एक हांग निं मांगू, पफांग नि मांगू,
    खाता-खतौनी क हिसाब ल्यूलो।

    ……………………………………….

    मेरी हाड~नकि बनि छू य कुर्सी,
    जेमज भैबैर कर छां तुम राज,
    कैकि बाबूकि निहुनि य कुर्सी,
    तुमरि मैवाद छु पांचे साल

    ………………………………………..

    कस होलो उत्तराखंड, कस हमार नेता,
    कस होलो पधान गौंक, कसि हलि व्यवस्था,
    जड़ि-कंजड़ि उखेलि सबुकि, पिफर पफैसाल करूल,
    उत्तराखंड ल्यल, उकड़ि मन कस बनूलो।

  6. narayan pargain

    August 23, 2010 at 8:09 am

    girda ka jana uttarkhand k liya bura hai wo sabhi ko hastay tha aur sochnay par bhi majbur kar detay thay aaj unka antim sankar hua to sabhi ki akhay bhar ayi …..har koi unkay janay par ro raha tha kyo ki unkay dwaraa juti gayi shorat aaj unki shav yatray mai deknay ko mil…..:(

  7. anurag dwary

    August 23, 2010 at 10:44 am

    ये क्या बात हुई गिरदा …
    अभी तो दोस्ती हुई थी …. आपने वायदा किया था … अगली बार आपके साथ घंटों बैठने का वक्त भी दिया था …
    आप ताउम्र किसी से नहीं हारा … फिर अल्सर की क्या बिसात थी …
    क्या लिखूं … लिखते भी नहीं बन रहा …
    बस आपकी लाइनें याद आ रही हैं … फिर आई बरखा ऋतु लाई … नव जीवन जल धार …

  8. v}Sr cgqxq.kk] ikSM|h

    August 26, 2010 at 3:16 pm

    ^^fxnkZ** ——————————–

    psgjs ij uwj] ekFks ij igkM+ dh osnuk dh ydhjsa] vk[kksa esa vkus okys vius dy dh vkl]ljy LoHkko] vkReh;rk ls ljkcksj ckrphr] fn[kus esa fujkV QDdM] igkM ds ljksdkjksa ij eq[kj gksdj cfr;krk ,d vkneh ftldh ckr esa gj igkM+h dks yxk fd Bhd mlds gh eu ckr dks dg jgk gS—- dgrs dgrs chp esa dfork dk NUn vkSj rUe; gks dj ml dfork ds lgkjs gh igkM+ dh lkjh osnuk dks mdsjrs gq, Hkfo”; ds izfr geas tkx:d djrk gqvk ;s dkSu ———–
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  9. Bhaskar Upreti

    August 26, 2010 at 6:37 pm

    BEEMAR wale Girda rukhsat hue hai, VICHAR wale Girda amar rahainge.

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