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कहानी बंदर, ठग और पत्रकारों की

आप सोच रहे होंगे कि ठग और पत्रकार बिरादरी के बीच में बेचारा बंदर कहां से आ गया। लेकिन इस कहानी के मूल में बंदर, उसकी धमाचौकड़ी और परिणामत: उसकी मृत्यु ही है। खबर गोरखपुर के एक प्रमुख हिंदी दैनिक से जुड़ी हुई है। विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के तफ्सीलात आपके सामने हैं। गोरखपुर जिले के बड़हलगंज थानाक्षेत्र निवासी एक सज्जन गांव में सक्रिय एक उत्पाती बंदर से काफी परेशान थे। सहज धैर्य का परित्याग करते हुए उन्होंने बंदर की जान ही ले ली। अब यहीं से कहानी में ट्विस्ट आ गया। ट्विस्ट तो आना ही था क्योंकि मौत एक बंदर की हुई थी।

आप सोच रहे होंगे कि ठग और पत्रकार बिरादरी के बीच में बेचारा बंदर कहां से आ गया। लेकिन इस कहानी के मूल में बंदर, उसकी धमाचौकड़ी और परिणामत: उसकी मृत्यु ही है। खबर गोरखपुर के एक प्रमुख हिंदी दैनिक से जुड़ी हुई है। विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के तफ्सीलात आपके सामने हैं। गोरखपुर जिले के बड़हलगंज थानाक्षेत्र निवासी एक सज्जन गांव में सक्रिय एक उत्पाती बंदर से काफी परेशान थे। सहज धैर्य का परित्याग करते हुए उन्होंने बंदर की जान ही ले ली। अब यहीं से कहानी में ट्विस्ट आ गया। ट्विस्ट तो आना ही था क्योंकि मौत एक बंदर की हुई थी।

बताया जाता है कि अवसर को भांपते हुए चार सौ बीस किस्म के एक व्यक्ति ने बंदर के कातिल उन सज्जन को फोन पर धमकाना शुरू कर दिया। पत्रकारिता को उसने धमकी का औजार बनाया। कारण कि जिले के नामी-गिरामी पत्रकारों से उसकी दोस्ती थी। वह उन्हें अपनी पहुंच के अनुसार नियमित लाभ पहुंचाता था। ठग ने फोन पर बार-बार अपने को गोरखपुर के एक बड़े हिंदी अखबार का पत्रकार बताया और पैसे की मांग की। डील न हो पाने की दशा में उसने अखबार में तान कर खबर छाप देने की धमकी दी। बंदर के कातिल परेशान हो उठे। लगे जुगाड़ खोजने। तभी उन्हें आशा की एक किरण दिखाई दी। उनके एक रिश्तेदार इसी हिंदी अखबार में डेस्क पर कार्यरत हैं। सारी घटना से उन्हें अवगत कराया गया। इसके बाद उन्होंने छानबीन शुरू की तो पता चला कि धमकी के लिए जिसके नाम का सहारा लिया जा रहा है, उन्हें इस बात की कतई जानकारी नहीं है। इसके बाद पीड़त पक्ष आक्रामक मुद्रा में आ गया और फोन करने वाले को उल्टे धमकाना शुरू कर दिया। लेकिन ठग किसी की धमकी से कहां डरने वाला था। प्रशासन में पैठ रखने वाले पत्रकारों से उसकी छनती जो थी।

खैर, इसी बीच एक दिन लाल परी उसके दिमाग में अठखेलियां करने लगी तो ठग से रहा नहीं गया और वह जा पहुंचा उस अखबार के गोरखपुर स्थित दफ्तर। नीचे मौजूद गार्ड को धकियाते हुए वह ऊपर दफ्तर में प्रवेश कर गया। यहां उसने कुछ बदतमीजी की तभी उस पत्रकार ने, जिनका नाम लेकर धमकी दी जा रही थी, ठग का नंबर डायल कर दिया। उसके पॉकेट में रखा मोबाइल घनघना उठा और वह पकड़ा गया। इस चीज से ढीठ ठग इतना नाराज हो गया कि गाली-गलौज शुरू कर दिया और देख लेने की धमकी भी देने लगा। बहरहाल, गार्डों और पत्रकारों की फौज ने उसे पकड़े रखा और पुलिस को बुला भेजा। लेकिन तब तक ठग की जान-पहचान वाली लाबी सक्रिय हो गई और उसे अभयदान दिलवाने का प्रयास करने लगी। बताया जाता है कि इस लाबी में प्रशासनिक हनक रखने वाले एक वरिष्ठ पत्रकार भी शामिल थे। इन लोगों का स्वार्थ मात्र इतना था कि ठग उन्हें सेना के कैंटीन से हर माह कंसेशन रेट पर गृहोपयोगी वस्तुएं मुहैया करवाता था।

अब राजफाश हुआ कि ठग स्थानीय एनसीसी (नेशनल कैडेट कोर) की बटालियन में क्लर्क है। स्वयं सुरा प्रेमी होने के साथ-साथ वह पहली तारीख को महफिल भी सजाता था। सेनावाली इस सुरा महफिल में स्थानीय पत्रकार भी शामिल होते थे। ऐसी स्थिति में प्रगाढ़ता तो होनी ही थी। अब विषयान्तर से विषय की ओर लौटते हैं। अखबार के दफ्तर में पुलिस आई और ठग को पकड़ कर ले गई और सारे मामले का राजफाश हुआ। उधर, हनक वाले पत्रकार ने भी ठग को छुड़ाने का पुरजोर प्रयास किया लेकिन गुस्साए पत्रकारों की एकजुटता के चलते उनका यह प्रयास कामयाब नहीं हुआ। बताया जाता है कि यहां के सम्पादकीय प्रभारी बेहद नेक और शरीफ किस्म के इन्सान हैं। चांडाल चौकड़ी की कारगुजारियों और दांव-पेंच में वे रत्ती भर हिस्सेदारी नहीं करते।

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