प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक महिला पत्रकार के बैग में से सामान गायब हो गया। दो पत्रकारों ने एक दम्पति के बेडरूम की वीडियो से संबंधित खबर बनाकर टीवी पर चला दी। अब तीसरी बात हम बतातें हैं। राजस्थान के श्रीगंगानगर के अनूपगढ़ कस्बे में एक पत्रकार के कारण हंगामा मच गया है। इस पत्रकार ने चिकित्सा विभाग को शिकायत की कि एक डॉक्टर ने लैब संचालक से मिलकर छः बच्चों को एचआईवी वाला रक्त चढ़ा दिया। शिकायत ही ऐसी थी। हंगामा मचना था। मगर तुरंत हुई जाँच में पता लगा कि किसी को ना तो एचआईवी वाला रक्त चढ़ाया गया और ना ही किसी एचआईवी बीमारी वाले आदमी ने रक्त दिया।
जाँच से पहले ही न्यूज़ चैनल वालों ने इसको लपक लिया। पता नहीं, किस-किस हेडिंग से ख़बर को चलाया गया। हमने चिकित्सा विभाग से जुड़े अधिकारियों से बात की। सभी ने कहा कि एचआईवी रक्त चढ़ाने वाला मामला है ही नहीं। लेकिन अब क्या हो सकता था। पत्रकार अपना काम कर चुका था। टीवी न्यूज़ चैनल जबरदस्त तरीके से ख़बर दिखा और बता रहे थे। पुलिस ने लैब संचालक को हिरासत में ले लिया। डॉक्टर फरार हो गया। और वह करता भी क्या। जिस कस्बे की यह घटना है वहां ब्लड बैंक नहीं है। बतातें हैं कि जिस पत्रकार ने यह शिकायत की, उसके पीछे कुछ नेता भी हैं। मामला कुछ और है और इसको बना कुछ और दिया गया है। अब डॉक्टर के पक्ष में कस्बे के लोगों ने आवाज बुलंद की है। करते रहो, बेचारा डॉक्टर तो कहीं का नहीं रहा।
चलो, जो कागज चला है, उसका पेट तो भरना ही होगा। मगर अब यह बहस तो होनी ही चाहिए कि किसी मरीज की जान बचाने के लिए उस वक्त मौके पर डॉक्टर को क्या करना चाहिए थे और उसने वह किया या नहीं। अगर उसने वह नहीं किया जो करना चाहिए था तो वह कसूरवार है। अगर किया तो फ़िर किस जुल्म की सजा। अगर डॉक्टर मरते मरीज को खून नहीं चढाता तो हल्ला मचता। रोगी के परिजन उसका हॉस्पिटल तोड़ देते। डॉक्टर अपनी जान बचाने के लिए रोगी को बड़े शहर के लिए रेफर कर देता तब भी ऐसा ही होना था। क्योंकि तब तक देर हो चुकी होती। डॉक्टर के लिए तो इधर कुआं उधार खाईं होती। यहाँ बात किसी का पक्ष करने की नहीं। न्याय की है। न्याय भी किसी एक को नहीं, सभी पक्षों को। एक सवाल यहाँ आप सभी से पूछना पड़ रहा है।
सवाल– एक मौके पर ऐसा हुआ कि पचास व्यक्तियों की जान बचाने के लिए एक आदमी को मरना/या मारना पड़ रहा था। आप बताओ, अब कोई क्या करेगा? जवाब का इंतजार रहेगा।