तीन स्पेशल करेस्पांडेंट्स को प्रबंधन ने नोटिस थमाया : बुरी खबर है। जिस मुंबइया अखबार हमारा महानगर का दिल्ली संस्करण पिछले दिनों जोरशोर से शुरू किया गया था, वहां इन दिनों मातम-सा माहौल है। प्रबंधन अपनी औकात में आ गया है। पत्रकारों का इस्तेमाल करने के बाद अब उनकी छंटनी की तैयारी हो चुकी है। जानकारी के अनुसार हमारा महानगर का प्रबंधन अपने दिल्ली ब्यूरो को ही भंग करने का निर्णय ले चुका है। इस ब्यूरो में सुरेंद्र पवार, सिंधु झा, अंचल सिन्हा, अजेश कुमार आदि हैं। सुरेंद्र पवार, सिंधु झा और अंचल सिन्हा स्पेशल करेस्पांडेंट पद पर कार्यरत हैं। अजेश कुमार एनसीआर एडिटर हैं। सूत्रों का कहना है कि इन सभी वरिष्ठ पत्रकारों को एक महीने का नोटिस प्रबंधन ने दे दिया है।
नोटिस में कहा गया है कि महीने भर बाद उनकी सेवाओं की इस संस्थान को जरूरत नहीं होगी। यही नहीं, कहा तो यहां तक जा रहा है कि पोलिटिकल एडिटर राजीव रंजन नाग और मेट्रो एडिटर संदीप ठाकुर को भी प्रबंधन हटा सकता है। हालांकि अभी तक इन लोगों से कुछ कहा नहीं गया है लेकिन सूत्र बताते हैं कि जिस तरह हमारा महानगर प्रबंधन दिल्ली में लायजनिंग और सरकारी विज्ञापनों के लिए सिर्फ टोकेन प्रजेन्स की मानसिकता रखता है, उसमें उसे किसी सीनियर की जरूरत नहीं दिख रही। हालांकि तब भी उसे दिल्ली के जानकार एक-दो वरिष्ठ तो चाहिए ही, ऐसे में यह भी कहा जा रहा है कि संभव है कि राजीव रंजन नाग और संदीप ठाकुर से कोई छेड़छाड़ न की जाए। हमारा महानगर के डेस्क वालों से कह दिया गया है कि वे रिपोर्टिंग भी करें और डेस्क का काम भी देखें। एक तरह से रिपोर्टर ही अब हमारा महानगर, दिल्ली को चलाएंगे।
Anil Kumar Singh
January 17, 2010 at 3:07 pm
हमारा महानगर जैसी स्थिति ज्यादातर प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में है। पत्रकारों को बिना कारण बताये दूध की मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिया जा रहा है। अब इस स्थिति में पत्रकार बेचारा क्या करे किसी को समझ में नहीं आ रहा है। कई साल की सेवा का सिला नौकरी छीन कर दिया जा रहा है। सबके शोषण के ख़िलाफ़ लिखने वाला पत्रकार इतना कमज़ोर है कि अपने ही शोषण के ख़िलाफ़ लिखने की उसकी हिम्मत नहीं होती है। इससे आसानी से समझा जा सकता है कि पत्राकारिता कितना जोख़िम भरा काम हो गया है। एक तो जीवन जीने लायक सेलरी नहीं मिलती दूसरे मैनेजमेंट का जब मन करता है पत्रकार को पेट और पीठ पर लात मार कर भगा देता है। अब समझ में नहीं आता पत्रकार लोग क्या करें। अब इस बाज़ार में वही टिक पायेगा जो या तो चमचागिरी करेगा या किसी बड़े पोस्ट वाले का रिश्तेदार होगा।
अनिल कुमार सिंह
rohit singh
October 12, 2010 at 7:37 pm
पत्रकारिता की चमक धमक में फंसा कर नए, जो कम अनुभव वाले युवा प्रत्रकार होते हैं अकसर ही ऐसा विषम परिस्थितियों का सामना करते रहते हैं,कारण उन्हे अपनी जमीन तलाशनी होती है और जिस वजह से वे ऐसे संथानों के द्वारा उपेक्षित होते रहते है, ये कहानी सिर्फ एक ही मीडिया संस्थान की नही है। आए दिन सुनने में आता है कि वर्षों की मेहनत का नतीजा अंतिम में उस संस्थान के द्वारा उसे उपेक्षित करके दिया जाता है। हानांकि पहले की पत्रकारिता और अभी की पत्रकारिता में अंतर भी बहुत आ गया है पहले ऊंगली दिखा कर पत्रकारिता होती थी अब हाथ मिलाकर पत्रकारिता होती है।अभी भी पुराने सिद्दांतों पर चलने वाले पत्रकारों की कमी नही हैं बस उनसे अपील है कि वो आगे आकर इस पत्रकारिता के भ्रष्टाचार को खत्म करें
रोहित सिंह
एक मौके की तलाश में