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हिंसक आंदोलन वैधता खो चुके : डा. रामजी सिंह

अपनी बात रखते प्रो. रामजी सिंह और मंचासीन गणमान्य जन.

भारत नीति प्रतिष्ठान की ओर से ‘वर्तमान परिप्रेक्ष्य में हिन्द स्वराज विषय’ पर एक विमर्श का आयोजन किया गया। मुख्य वक्ता प्रसिद्ध गांधीवादी चिंतक और पूर्व सांसद डॉ. रामजी सिंह ने वर्तमान परिप्रेक्ष्य में ‘हिन्द स्वराज’ की प्रासांगिकता पर जोर देते हुए कहा कि हिंसा का एकमात्र विकल्प हिन्द स्वराज है। उन्होंने कहा कि हिन्द स्वराज नई सभ्यता का घोषणा-पत्र है। डॉ. सिंह ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी हिंसक आंदोलन अपनी वैधता खो चुके हैं और भविष्य की राजनीति एटम बम के जोर पर नहीं बल्कि शांतिपूर्ण संवाद के माध्यम से तय होगी। उन्होंने कहा कि ‘हिन्द स्वराज’ के लेखक गांधी एक व्यक्ति नहीं विचारधारा हैं। गांधी को विश्व परिप्रेक्ष्य में देखने की जरूरत है। डॉ. सिंह ने कहा कि ‘हिन्द स्वराज’ के अध्ययन से ऐसा लगता है कि गांधी यंत्रों के विरोधी थे, लेकिन ऐसा नहीं है, गांधी यंत्रवाद के विरोधी थे।

अपनी बात रखते प्रो. रामजी सिंह और मंचासीन गणमान्य जन.

अपनी बात रखते प्रो. रामजी सिंह और मंचासीन गणमान्य जन.

भारत नीति प्रतिष्ठान की ओर से ‘वर्तमान परिप्रेक्ष्य में हिन्द स्वराज विषय’ पर एक विमर्श का आयोजन किया गया। मुख्य वक्ता प्रसिद्ध गांधीवादी चिंतक और पूर्व सांसद डॉ. रामजी सिंह ने वर्तमान परिप्रेक्ष्य में ‘हिन्द स्वराज’ की प्रासांगिकता पर जोर देते हुए कहा कि हिंसा का एकमात्र विकल्प हिन्द स्वराज है। उन्होंने कहा कि हिन्द स्वराज नई सभ्यता का घोषणा-पत्र है। डॉ. सिंह ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी हिंसक आंदोलन अपनी वैधता खो चुके हैं और भविष्य की राजनीति एटम बम के जोर पर नहीं बल्कि शांतिपूर्ण संवाद के माध्यम से तय होगी। उन्होंने कहा कि ‘हिन्द स्वराज’ के लेखक गांधी एक व्यक्ति नहीं विचारधारा हैं। गांधी को विश्व परिप्रेक्ष्य में देखने की जरूरत है। डॉ. सिंह ने कहा कि ‘हिन्द स्वराज’ के अध्ययन से ऐसा लगता है कि गांधी यंत्रों के विरोधी थे, लेकिन ऐसा नहीं है, गांधी यंत्रवाद के विरोधी थे।

उन्होंने इस बात पर दु:ख जताया कि भारत जैसे कृषि प्रधान देश में अब तक पौने दो लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं और देश की पूंजी तीन-चार प्रतिशत व्यक्तियों के नियंत्रण में है। दिनकर की एक पंक्ति का उद्धरण देते हुए उन्होंने कहा कि साधन रॉकेट हो या फिर बैलगाड़ी, यह हमें तय करना होगा कि हमें जाना कहां है।

जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अमित शर्मा ने कहा कि भारत की सनातन परंपरा को समझे बगैर हिन्द स्वराज को समझ नहीं सकते। पाश्चात्य दर्शन मनुष्य को ब्रहमांड के केंद्र में रखता है और यह जगत उसके भोग का उपकरण मात्र है। परंतु सनातन परंपरा के अनुसार मनुष्य असंख्य जीवों में से एक जीव है और यह जगत उसकी कर्मभूमि है। हमारे कुछ राष्ट्रीय नेता जैसे बालगंगाधर तिलक और श्री अरविंद शास्त्र-धर्म के प्रगाढ़ ज्ञानी थे परंतु गांधी लोकधर्म के अद्वितीय ज्ञानी थे।

इस विमर्श की अध्यक्षता करते हुए पांचजन्य के संपादक बलदेव भाई शर्मा ने कहा कि गांधी का जीवन प्रयोगधर्मी था। प्रयोगधर्मी व्यक्ति कभी मरता नहीं। उन्होंने कहा कि हिन्द स्वराज की कई बातें आज भले ही प्रासंगिक न हो लेकिन वे शाश्वत मूल्य आज प्रासंगिक हैं जिनके लिए उन्होंने जीवनभर संघर्ष किया।

इस मौके पर आईबीएन7 के प्रबंध संपादक आशुतोष ने कहा कि गांधी का आकलन महज एक पुस्तक के आधार पर नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि गांधी का आकलन हिन्द स्वराज के बजाय उनके कार्य के आधार पर किया जाना चाहिए। आशुतोष ने कहा कि गांधी साध्य और साधन दोनों की पवित्रता पर जोर देते थे।

इस अवसर पर भारत नीति प्रतिष्ठान के मानद निदेशक राकेश सिन्हा ने कहा कि हिन्द स्वराज किसी न किसी रूप में हमेशा प्रासंगिक बना रहेगा। इस अवसर पर नेता केदारनाथ साहनी, आचार्य गिरिराज किशोर और डॉ. हर्षवर्द्धन समेत कई गणमान्य लोग मौजूद थे।

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