मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने वरिष्ठ कवि अशोक चक्रधर को हिंदी अकादमी, दिल्ली का उपाध्यक्ष क्या बनाया, साहित्यिक मठों को विरोध का एक जोरदार मुद्दा मिल गया है। यह जंग अब अखबारी सुर्खियां बनने लगी हैं। समर्थक-विरोधी दोनों पक्ष अब मीडिया की ओट से तीरंदाजी कर रहे हैं। मामला इतना बड़ा नहीं, जितनी कांव-कांव मची हुई है। चक्रधर की ताजपोशी के खिलाफ अकादमी के सचिव ज्योतिष जोशी और संचालन समिति की सदस्य डा. अर्चना वर्मा, डा. नित्यानंद तिवारी आदि ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने इनके इस्तीफे मंजूर भी कर लिए। दिल्ली सरकार ने ज्योतिष जोशी की जगह मैथिली-भोजपुरी अकादमी के सचिव रवींद्रनाथ श्रीवास्तव को हिंदी अकादमी के सचिव का अतिरिक्त कार्यभार सौंप दिया है। इस बीच, कवि पंकज सिंह ने अकादमी के कार्यक्रम में काव्यपाठ करने से इनकार कर दिया।
पंकज सिंह का कहना है कि जिस तरह की परिस्थितियां अकादमी में पैदा कर दी गई हैं, उसमें किसी भी रचनाकार का हिंदी अकादमी के कार्यक्रमों में भाग लेना उचित नहीं होगा। हिंदी अकादमी के सचिव पद से इस्तीफा देने वाले ज्योतिष जोशी ने इस्तीफे के कारणों के बारे में बिना अशोक चक्रधर का नाम लिए बताया कि हिंदी अकादमी के नए ‘निजाम’ को लेकर लेखक समाज में खासा रोष है। हमें भविष्य में ऐसी आशंकाएं साफ नजर आ रही है कि हिंदी अकादमी के आयोजनों से वरिष्ठ एवं गंभीर साहित्यकारों की उपस्थिति कम हो जाएगी। साहित्य समाज के वरिष्ठ साहित्यकारों की मौजूदगी में हास्य कवि को हिंदी साहित्य का उपाध्यक्ष बनाया जाना संचालन समिति को भी मंजूर नहीं है।
संचालन समिति की सदस्य अर्चना वर्मा ने अकादमी अध्यक्ष, मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को एक लंबी चिट्ठी के साथ इस्तीफा पेश कर के नए उपाध्यक्ष के अधीन काम करने की असमर्थता प्रकट कर दी है। उनके मुताबिक बहाल हुई परिस्थियों में अकादमी की कार्यशैली जिस रूप में परिवर्तित हो रही है उसके अधीन काम करना संचालन समिति के किसी भी सदस्य के लिए सहज नहीं होगा। उधर, सूत्रों का कहना है कि ज्योतिष जोशी अकादमी उपाध्यक्ष पद पर अशोक चक्रधर की नियुक्ति पर अनावश्यक सक्रियता दिखा रहे थे, इसीलिए उनसे इस्तीफे की पेशकश की गई थी और उनके इस्तीफा देने के तुरंत बाद इसे स्वीकार कर लिया गया। नए सचिव की नियुक्ति होने तक रवींद्रनाथ श्रीवास्तव को कामधाम देखने को कह दिया गया है।
सूत्रों का कहना है कि एक दिग्गज साहित्यकार और हिंदी की एक चर्चित साहित्यिक पत्रिका के संपादक के घर अशोक चक्रधर के खिलाफ मुहिम चलाने को लेकर बैठक हुई और उसी बैठक में इस्तीफों की राजनीति-रणनीति तैयार की गई। इसी के बाद शुरू हुआ इस्तीफों का दौर व चक्रधर विरोधी हस्ताक्षर अभियान। अशोक चक्रधर विरोधियों का आरोप है कि चक्रधर अगंभीर रचनाकार हैं, मंचीय कवि हैं। चक्रधर समर्थकों का कहना है कि वह एक केंद्रीय विश्वविद्यालय में तीस साल से प्रोफेसर हैं, उनके व्यंग्य की शरद जोशी भी सराहना कर चुके हैं। चक्रधर को ‘मुक्तिबोध की काव्य प्रक्रिया’ पर पीएचडी की उपाधि प्राप्त है। हिंदी के लोकप्रिय कवि के रूप में देश-विदेश में प्रसिद्ध चक्रधर ने वर्षों तक जामिया मिलिया इस्लामिया के हिंदी विभाग में अध्यापन कार्य भी किया है। उन्होंने प्रौढ़ एवं नवसाक्षरों के लिए विपुल लेखन, नाटक, अनुवाद, कई चर्चित धारावाहिकों, वृत्त चित्रों का लेखन निर्देशन करने के अलावा कंप्यूटर में हिंदी के प्रयोग को लेकर भी महत्वपूर्ण काम किया है। फिर वे ‘असाहित्यिक और अगंभीर’ कैसे हुए?
वरिष्ठ पत्रकार अरविंद कुमार सिंह कहते हैं कि यह तो बेमतलब किसी का हुक्का पानी बंद कर देना हुआ। हिंदी अकादमी कोई वैचारिक मठ तो है नहीं!
भड़ास4मीडिया ने जब अशोक चक्रधर से संपर्क किया तो उनका कहना है कि इस विवाद पर मैं क्या बताऊं! मेरा काम ही मेरा जवाब होगा। इसलिए विवाद में पड़ना नहीं चाहता। मैंने कभी गैर रचनात्मक हो-हल्लों की चिंता नहीं की है। मीडिया में जो मुझे जानते-पहचानते हैं उनका आभारी हूं, जो नहीं जानते, मेरी रचनाओं से पहचान सकते हैं।