जिस देश में प्रिंट पत्रकारिता की कुल उम्र ही 230 साल की हो, उस देश में किसी अखबार के 75 साल खासे मायने रखते हैं। 12 अप्रैल, 1936 को जब यह अखबार छपना शुरू हुआ, तब देश गुलाम था। कांग्रेस का लखनऊ अधिवेशन चल रहा था। देश को एक ऐसे अखबार की जरूरत शिद्दत के साथ महसूस हो रही थी, जो राष्ट्रवादी सोच का हो और जो आजादी की जंग में आगे बढ़कर साथ निभा सके। साथ ही जो पेशेवर ईमानदारी और निष्पक्षता के पत्रकारीय मूल्यों का भी वाहक हो। अंग्रेजी में हिन्दुस्तान टाइम्स पहले से ही यह काम कर रहा था।
जरूरत जनभाषा में देश की चाहतों को आवाज देने की थी। ‘हिन्दुस्तान’ के संस्थापक संपादक सत्यदेव विद्यालंकार ने अपने पहले संपादकीय में लिखा था, ‘किसी खास व्यक्ति, जाति, संप्रदाय, समूह या दल के लिए ‘हिन्दुस्तान’ जन्म नहीं ले रहा है। जिस संस्था की ओर से यह निकाला जा रहा है, उसकी स्थापना पूज्य मालवीय जी ने सार्वजनिक हित की भावना से की थी। पत्रकार के सिर पर सदा कानून की तलवार लटकती रहती है। सर्वथा विपरीत परिस्थितियों में उसे जीवन की लड़ाई लड़नी पड़ती है। लेकिन हमें उज्जवल भविष्य की एक स्पष्ट रेखा चमकती दीख पड़ती है। ‘हिन्दुस्तान’ ऊंचे और काल्पनिक संसार में न उड़कर मनुष्य जीवन के इस लोक में ही रहना चाहता है। पत्रकार को सबसे बड़ा सहारा है जनता की सहानुभूति का।’ कहना न होगा कि ‘हिन्दुस्तान’ पिछले 75 साल में इस कसौटी पर खरा उतरा है। हमने इस बीच ‘हिन्दुस्तान’ के शुरुआती अंक टटोले और पाया कि किस तरह यह अखबार अपने समय की श्रेष्ठतम मेधा को साथ लेकर चलता रहा है। गांधीजी के सुपुत्र देवदास गांधी तो इसके प्रबंध संपादक थे ही, स्वयं गांधीजी के लेख और उनकी प्रार्थना सभा के प्रवचन भी नियमित रूप से छपा करते थे। अखबार ने महात्मा गांधी और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बीच हुए पत्र व्यवहार को अविकल छापा। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान छह महीने तक अखबार का प्रकाशन बंद हो गया। एक अग्रलेख को लेकर पत्र से 6,000 रुपये की जमानत मांगी गई। तब जाकर 1943 में इसका पुन: प्रकाशन शुरू हुआ। 15 अगस्त, 1947 का अखबार अपने आप में अद्भुत था। पहले ही पेज पर एक तरफ जवाहरलाल नेहरू का लेख, तो दूसरी तरफ सरदार पटेल का। और बीच में राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की कविता, जो स्वतंत्रता के नवविहान पर ही लिखी गई थी।
आजादी के बाद भी ‘हिन्दुस्तान’ ने निरंतर खुद को देश की जनता से जोड़े रखा। 1947 में इस अखबार की प्रसार संख्या 20 हजार थी, जो तब के हिसाब से कम नहीं थी। लेकिन आज इसकी पाठक संख्या तीन करोड़ 52 लाख के पार जा चुकी है। इतनी लंबी छलांग ऐसे ही नहीं संभव हुई। सैकड़ों पत्रकारों, लेखकों, विज्ञापनदाताओं और असंख्य हिंदी प्रेमियों का स्नेह इसे मिलता रहा है। आजादी से पहले अदम्य मिशनरी भाव और आजादी के बाद राष्ट्र-निर्माण और जनसेवा के अद्भुत जज्बे ने इसे हमेशा प्रासंगिक बनाए रखा। निश्चय ही आज का दौर आजादी के दौर जैसा नहीं है। इसलिए पत्रकारिता का स्वरूप भी बदल गया है। आज की चुनौतियां कहीं बड़ी हैं। विश्व भर के रुझान बताते हैं कि प्रिंट मीडिया ठहराव की ओर बढ़ रहा है, लेकिन आपके ‘हिन्दुस्तान’ की ग्रोथ निरंतर आगे ही आगे बढ़ रही है। इसलिए 76वें साल में कदम रखते हुए हम आपको भरोसा दिलाते हैं कि हम और भी उत्साह के साथ आपके साथ खड़े होंगे। हमारी आपसे यही अपेक्षा है कि आप हमें हमारे हर गलत कदम पर टोकें। साभार : हिंदुस्तान
Rajesh
April 12, 2011 at 8:25 am
76 saal vastav me khash hote hain. magar shashi shekar aur unke gundenuma pstrkar is uplabdhi ko jaldi hi dhul me mil denge. aap intjar kijaye.