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आई-नेक्स्ट को ढूंढे नहीं मिल रहे ‘सूटेबल एडिटर’

आई-नेक्स्ट का संपादक बनना टेढ़ी खीर है. इस हिंग्लिश टैबलायड के लिए जिस मापदंड व योग्यता के संपादक तलाशे जा रहे हैं, वे बाजार में मिल नहीं रहे हैं. नतीजा यह हो रहा है कि आई-नेक्स्ट की कई यूनिटें संपादक विहीन हैं. आई-नेक्स्ट, मेरठ में सिटी चीफ के रूप में कार्यरत मृदुल त्यागी को उस समय प्रमोट कर संपादकीय प्रभारी बना दिया गया जब कुछ वर्ष पहले प्रभात सिंह इस्तीफा देकर भास्कर चले गए थे. 

आई-नेक्स्ट का संपादक बनना टेढ़ी खीर है. इस हिंग्लिश टैबलायड के लिए जिस मापदंड व योग्यता के संपादक तलाशे जा रहे हैं, वे बाजार में मिल नहीं रहे हैं. नतीजा यह हो रहा है कि आई-नेक्स्ट की कई यूनिटें संपादक विहीन हैं. आई-नेक्स्ट, मेरठ में सिटी चीफ के रूप में कार्यरत मृदुल त्यागी को उस समय प्रमोट कर संपादकीय प्रभारी बना दिया गया जब कुछ वर्ष पहले प्रभात सिंह इस्तीफा देकर भास्कर चले गए थे. 

मृदुल का पद बाद में चीफ सब एडिटर से बढ़ाकर डीएनई का कर दिया गया. आई-नेक्स्ट, देहरादून के संपादक पद से मिथिलेश सिंह के इस्तीफा देने के बाद आई-नेक्स्ट, मेरठ के जनरल डेस्क इंचार्ज मुकेश सिंह को देहरादून संपादक बनाकर भेजा गया पर मुकेश को आई-नेक्स्ट की संपादकी रास न आई. उन्होंने आई-नेक्स्ट में काम करने में अपनी रुचि न होने की बात कहते हुए प्रबंधन से तबादले का अनुरोध कर दिया. बाद में मुकेश को दैनिक जागरण, अलीगढ़ भेज दिया गया. उसके बाद आई-नेक्स्ट, देहरादून के लिए संपादकीय प्रभारी की तलाश शुरू की गई लेकिन जब कोई न मिला तो मेरठ के संपादकीय प्रभारी मृदुल के ही कंधों पर देहरादून यूनिट के संपादकीय प्रभारी का दायित्व सौप दिया गया. ऐसा बहुत कम होता है कि कोई एक संपादकीय प्रभारी एक जगह बैठकर कई सौ किमी दूर की यूनिट के संपादक का भी दायित्व निभा रहा हो.

आई-नेक्स्ट, आगरा के संपादक रवि प्रकाश दैनिक भास्कर जा रहे हैं. उन्होंने इस्तीफे से संबंधित नोटिस प्रबंधन को भेज दिया. एकाध हफ्ते में वे आगरा से रुखसत हो जाएंगे पर उनकी जगह अभी तक किसी नए संपादकीय प्रभारी को नहीं भेजा गया. आगरा में तो कोई चीफ सब एडिटर भी नहीं है जो नंबर दो की हैसियत में हो और रवि प्रकाश के जाने के बाद काम संभाल सके. संजय त्रिपाठी, जो सिटी चीफ के रूप में कार्यरत थे, पहले ही अमर उजाला, कानपुर का दामन थाम चुके हैं. इस कारण पिछले दिनों मेरठ से मृदुल त्यागी आगरा आए व कुछ दिन रहकर लौट गए. कानपुर से महेश शुक्ला आगरा पहुंचे और कुछ दिन रहकर लौट गए. अभी तक तय नहीं हो सका है कि आगरा में रवि प्रकाश का स्थान कौन लेगा.

इसी बीच आई-नेक्स्ट प्रबंधन ने बरेली, जमशेदपुर और गोरखपुर में आई-नेक्स्ट अखबार शुरू करने की घोषणा कर दी है. इन तीनों जगहों पर अखबार लांच करने के बाद एमपी, पंजाब और राजस्थान में भी आई-नेक्स्ट का प्रकाशन शुरू किया जाएगा. बरेली में 18 मार्च तक अखबार लाने की योजना है. बरेली के लिए कल पूरे दिन इंटरव्यू भी बरेली स्थित दैनिक जागरण आफिस में चला. पर अभी किसी संपादकीय प्रभारी का नाम फाइनल नहीं किया जा सका है. दो-तीन नामों पर विचार चल रहा है.

सूत्रों के मुताबिक बेहद कम स्टाफ व कम बजट में संचालित हो रहे आई-नेक्स्ट में भर्ती का पैमाना काफी लंबा-चौड़ा व तगड़ा है. कई दौर में इंटरव्यू होते हैं. रुटीन स्टोरी करने वालों और रुटीन का अखबार निकालने वाले लोगों को यहां इंटरव्यू के पहले ही राउंड में छांट दिया जाता है. जिनकी उम्र ज्यादा हो गई है, मतलब जो 40 पार के हो चुके हैं, उनके लिए भी आई-नेक्स्ट में नो इंट्री का बोर्ड लगा मिलता है. जिन्हें अंग्रेजी नहीं आती, उनका भी आई-नेक्स्ट में गुजारा नहीं. जो किसी अखबार में बहुत ज्यादा सेलरी पाते हैं तो उन्हें भी आई-नेक्स्ट में नहीं रखा जाता.

मतलब, कम सेलरी में बेहद प्रतिभावान व आलराउंडर टाइप हिंदी पत्रकार आई-नेक्स्ट को चाहिए होते हैं. सूत्रों के मुताबिक आई-नेक्स्ट प्रबंधन की कोशिश है कि चीफ सब लेवल के लोगों को ही संपादकीय प्रभारी का दायित्व सौंपा जाए और उन पर कानपुर व लखनऊ से नियंत्रण रखा जाए. इससे दो फायदे हैं. एक तो कम उम्र में बड़ी जिम्मेदारी मिलने से पत्रकार निष्ठावान होकर काम करेगा दूसरे कम बजट में पूरी यूनिट का संचालन किया जा सकेगा. आई-नेक्स्ट में फर्स्ट व स्थानीय पेजों को छोड़कर ज्यादातर पेज कानपुर व लखनऊ से सभी यूनिटों को भेज दिए जाते हैं. ऐसे में किसी भी यूनिट के संपादकीय प्रभारी का मुख्य दायित्व स्थानीय खबरों के संयोजन व बेहतर प्रस्तुति का होता है. मतलब एक तेजतर्रार युवा चीफ रिपोर्टर आई-नेक्स्ट में संपादक बनने के लिए बिलकुल उपयुक्त उम्मीदवार है.

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0 Comments

  1. MANISH

    February 27, 2010 at 12:04 am

    i next की ये पहल काफी सराहनीय है, इससे उन लोगों के लिए मीडिया के रास्तेम खुल गए हैं जो आज की यंग जनरेशन के अकॉर्डिंग सोचते हैं। इसका सबसे बडा फायदा फ्रशर्स को मिल रहा है। इस पेपर का सबसे अलग होना ही इसकी पहचान है, और हां जब पेपर नवयुवको का है तो इसमें 40 प्लरस लोगो की जरूरत भी नहीं है क्‍योंकि वे ना तो रीडर्स की जरूरत को समझ पाएंगे और ना ही पेपर को। हालांकि इस पेपर के साथ कुछ ऐसे लोग भी जुडे हुए हैं, जो दिखने में तो 40 के हैं लेकिन उनका दिमाग आज भी नवयुवको की तरह ही है,

  2. deepak gidwani

    February 27, 2010 at 2:23 am

    I-next has brought about a revolution of sorts in the Hindi belt journalism. It’s speaking the language of the ‘aam aadmi’, esp youngsters. Now it’s good to know its opening up new opportunities for young professional journalists who wd otherwise stagnate for years before getting their rightful place in the hierarchy. Kudos to I-next!!!

  3. Deepak

    February 27, 2010 at 9:22 am

    अच्छा article था

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