एनआरएससी और एमआरयूसी का विलय होगा : एक नई बाडी करेगी हर तरह के शोध व सर्वे : पत्र-पत्रिकाओं की प्रसार और पाठक संख्या तय करने वाली दो संस्थाएं अब एक साथ काम करने के लिए तैयार हो गई हैं। इनका आपस में विलय करने की कवायद शुरू कर दी गई है। सूत्रों के अनुसार एनआरएस (नेशनल रीडरशिप सर्वे) के आंकड़े मुहैया कराने वाली संस्था नेशनल रीडरशिप स्टडीज काउंसिल (एनआरएससी) और आईआरएस (इंडियन रीडरशिप सर्वे) का हिसाब-किताब तैयार करने वाली मीडिया रिसर्च यूजर्स काउंसिल (एमआरयूसी) के कर्ताधर्ताओं के बीच कई दौर की बैठक हुई।
इसमें प्रिंट मीडिया के लिए अलग-अलग रिसर्च करने की जगह एक साझा बाडी बनाकर काम करने का फैसला लिया गया। इन दोनों रिसर्च संस्थाओं ने अपनी-अपनी बैठकों में इस बाबत फैसला पारित कर दिया है। अब ये दोनों एक सर्वे करेंगी। सूत्र कहते हैं कि विलय की प्रक्रिया पूरी होने पर एनआरएससी को भंग कर दिया जाएगा और एमआरयूसी व एनआरएससी के बराबर की संख्या में प्रतिनिधियों को लेकर एक नई बाडी गठित की जाएगी। उसका नया नाम होगा और वह रिसर्च एजेंसी के साथ-साथ रीडरशिप सर्वे के काम को भी करेगी। एनआरएससी की गवर्निंग काउंसिल के अध्यक्ष सैम बलसारा और सदस्य आशीष बग्गा को अधिकृत किया गया है कि वे एमआरयूसी के गर्वनर बोर्ड अध्यक्ष जी. कृष्णन और सदस्य भरत कपाड़िया से विलय, काम करने के तौर-तरीके, नियम-शर्तों पर बातचीत कर इसे अंतिम रूप प्रदान करें। ज्ञात हो कि एमआरयूसी एक ऐसी बाडी है जिसे विज्ञापनदाता, विज्ञापन एजेंसी और मीडिया हाउसों के लोग मिलकर संचालित करते हैं।
इसी तरह एनआरएससी को एडवरटाइजिंग एजेंसीज एसोसिएशन आफ इंडिया (एएएआई), इंडियन सोसाइटी आफ एडवरटाइजर्स (आईएसए) और इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी (आईएनएस) के लोग मिलकर संचालित करते हैं। इस विलय के निर्णय का मीडिया इंडस्ट्री में स्वागत किया जा रहा है। कहा जा रहा है कि इससे ज्यादा सटीक, विविधतापूर्ण, सर्वस्वीकार्य सर्वे नतीजे आएंगे। सर्वे पर मतभेद की गुंजाइश नहीं रहेंगे। हर पक्ष के लोग एक साथ बैठकर सहमति से नतीजे जारी करेंगे। संसाधनों भी कम लगेंगे क्योंकि अलग-अलग एजेंसियों के अलग-अलग काम करने से हर लिहाज से ज्यादा खर्चीला काम होता था। विलय हो जाने पर मार्केट सर्वे व शोध का सैंपल साइज भी बड़ा हो जाएगा जिससे शोध-सर्वे की विश्वसनीयता और ज्यादा बढ़ जाएगी।