क्यूंकि मेरे बायोडाटा में एक्सक्लूजिव कुछ नहीं…
मुझे नौकरी के लिए फिर ‘ना’ सुनने को मिली है,
उन चारों अखबारों से, जहां मैने पिछले हफ्ते अपने बायोडाटा भेजे थे।
पूछा था उन्होंने बायोडाटा देखने के बाद भी कि…
आखिर ‘किया ही क्या है मैनें !’
मैनें फिर लिख भेजा
…कि अपने साप्ताहिक कॉलम ‘रोशनी की तलाश’ से
28 अनाथ-बेसहारा बच्चों को
संपन्न घरों में पहुंचाकर रोशनी दिलवा सका हूं
…कि आदिवासी बहुल जंगलों में भटककर
लिखी हैं वहां के कड़वे जीवन की खट्टी-मीठी स्टोरीज
…कि लिखा है महज शहर बंद,
हुडदंग, ज्ञापन और धरने में
अपनी राजनीतिक जमीन तलाशते
कथित कर्मठ, जुझारू और युवा ह्दय सम्राट
बन बैठे नेताओं के खिलाफ भी…
…लिखी हैं बिजली कटौती वाले घुप्प अंधेरे गांवों से
निकले सफल इंजीनियर बेटों की सक्सेस स्टोरीज…
…और गांवों में खांसी का सायरप न मिलने,
मगर कोल्ड्रिंक्स के सारे फ्लेवर मिल जाने की विडंबना भी
…कि देहात में फैले काले बुखार से मरने और
भ्रष्ट अधिकारियों द्वारा राहत राशि डकारने की खबरें भीं
बीती रात मुझसे फिर अखबार वालों ने
सवालिया लहजे में पूछा है…
कभी कुछ ‘एक्सक्लूजिव’ भी किया है या
फिर ये सब ‘रुटीन’ ही
अब मैं ठगा-सा हूं
क्यूं मैंने इस कथित रुटीन में ‘बिकाऊ मसाला’ नहीं डाला…
वरना, फिर मुझसे कोई अखबार वाला नहीं पूछता…
तुम्हारे बायोडाटा में ‘एक्सक्लूजिव’ क्या हैं…!
-ईश्वर शर्मा
न्यूज एडिटर
राज एक्सप्रेस
भोपाल