यशवंत जी, इंडियन आयल के जयपुर डिपो में लगी आग की खबर में एक बार फिर इलेक्ट्रानिक मीडिया ने हड़बड़ी का प्रदर्शन कर सबके सामने स्पष्ट कर दिया कि देश की राजधानी में बैठे मठाधीश भी कितना कम कामन सेंस रखते हैं। पेट्रोल टैंकों में आग की खबर मिलते ही सारे के सारे चैनलों ने अपने-अपने रिपोर्टर मौके पर भेज दिए, जल्दी से जल्दी फुटेज मंगवाए गए और शुरू हो गई उल्टा सीधा बोलते रहने की प्रतियोगिया। मुझे आश्चर्य हुआ कि आग लगने के करीब 5 घंटे बाद तक किसी भी इलेक्ट्रानिक चैनल पर इंडियन आयल के किसी अधिकारी या ऐसे विशेषज्ञ की कोई राय नहीं दिखाई जा रही थी जो यह बता सके कि आखिर ऐसे मामलों में किया क्या जाना चाहिए। बस एक होड़ लगी हुई थी, राजस्थान सरकार और प्रशासन को छाती पीट-पीटकर कोसने की। चैनलों पर लगातार कहा जा रहा था कि प्रशासन हाथ पर हाथ धरे बैठा है, आग पर काबू नहीं किया जा सका है, आग फैलती ही जा रही है। आश्चर्य तो तब हुआ जब अगले दिन सुबह पेट्रोलियम मंत्री से चैनलों ने पूछ डाला कि आप मौके पर क्यों नहीं जा रहे।
समझ नहीं आ रहा कि आखिर चैनलों के संपादक चाहते क्या थे, पेट्रोलियम मंत्री या प्रशासन के अधिकारी सन्नी देओल की तरह गुस्से से भरभराते हुए डिपो के अंदर घुस जाएं और जोर से चिल्लाते हुए फायर बिग्रेड से पानी फैंककर आग बुझा दें, या क्रिश के रितिक रोशन की तरह उड़कर डिपो के अंदर पहुंचे और अंदर फंसे हुए लोगों को बाहर निकाल लाएं। कृपया उन्हें बताइए, आग पेट्रोल टैंकों में लगी थी, पानी डालने से नहीं बुझती। वह तभी बुझेगी जब पेट्रोल पूरी तरह जलकर खत्म हो जाएगा। सन्नी देओल और रितिक रोशन भी ऐसे मामलों में कुछ नहीं कर सकते और श्री देवड़ा पेट्रोलियम मंत्री हैं, फायर ब्रिगेड मिनिस्टर नहीं जो हीरो की तरह मौके पर पहुंचे। जयपुर प्रशासन ने इतनी बड़ी घटना को कितना नियंत्रित किया, यह उन लोगों से पूछिए जो इस विषय में यह जानते हैं कि आखिर हो क्या सकता था। पांच पेट्रोल टैंक और 3 किलोमीटर का प्रभावित क्षेत्र, बावजूद इसके कोई बड़ी जनहानि नहीं, केवल डिपो बर्बाद हुआ। यह बड़ी सफलता है। टीआरपी के लिए उल्टा सीधा कुछ भी चीखना अच्छी बात नहीं हैं, अब भी वक्त है, जो थोड़ी बहुत मर्यादा बची है, कृपया बचाए रखें।
-उपदेश अवस्थी
भोपाल