कोई भी किताब पढ़ना शुरू करने से पहले मैं प्रायः रखरखाव की दृष्टि से उस पर रैपर चढ़ा लिया करता हूं, जो तत्काल हाथ की पहुंच में आ गए किसी पुराने अनुपयोगी अखबार या पत्रिका का होता है। स्वीडिश लेखक यान मिर्डल की विचारोत्तेजक पुस्तक ‘कन्फेशंस ऑफ ए डिस्लॉयल यूरोपियन’ को पढ़ना शुरू करने के पहले उस पर भी रैपर चढ़ा लिया। रैपर एक पाक्षिक साहित्यिक अखबार का है। इस पर डेटलाइन 1 से 15 अगस्त की है। इस पर दिल्ली सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की स्मृति में जारी रंगीन विज्ञापन छपा है। इस पर नजर पहले भी पड़ी होगी, क्योंकि दिल्ली सरकार की इस सीरीज के विज्ञापन अनेक पत्र-पत्रिकाओं के अंतिम आवरण पर छपते हैं। किंतु उसकी विषयवस्तु पर गौर करने का सुयोग तब जुटा जब वह रैपर के रूप में किताब पर चढ़ा।
इस विज्ञापन में राष्ट्रकवि के चित्र के साथ ‘उनकी’ दो काव्य पंक्तियां भी दी गई हैं। गौर करें यहां ‘उनकी’ को उद्धरण चिह्नों में दिया गया है, जिसकी गंभीर वजहें हैं। पहली यह कि ये काव्य पंक्तियां गुप्त जी की नहीं हैं, और दूसरी यह कि इनका पाठ (text) भ्रष्ट है। गुप्त जी के नाम से विज्ञापन में दी गईं काव्य पंक्तियां वस्तुतः उनकी न होकर उनके काव्य गुरु और सरस्वती पत्रिका के संपादक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की हैं, जो 1913 में उन्होंने गणेश शंकर विद्यार्थी के अनुरोध पर उनके पत्र ‘प्रताप’ की मोटो लाइन के रूप में लिखी थीं, और लगभग 60 वर्ष तक, जब तक प्रताप निकला, उसके प्रत्येक अंक में प्रकाशित होती रहीं। यह एक ऐतिहासिक तथ्य है जिसकी पुष्टि स्वयं गुप्त जी ने अपने एक संस्मरण में की है। द्विवेदी जी रचित प्रताप की मोटो लाइन का पाठ यूं है- ‘जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है, वह नर नहीं नरपशु निरा है और मृतक समान है।’ इन पंक्तियों का विज्ञापन में छपा भ्रष्ट पाठ यूं है- ‘जिसको नहीं गौरव तथा निज देश का अभिमान है, वह नर नहीं नरपशु निरा है और मृतक समान है।’
देश के ऐतिहासिक गौरव, साहित्य और संस्कृति के साथ जो सुलूक 1990 के बाद के ग्लोबल दौर में हो रहा है और जिनमें विभिन्न सरकारी एजेंसियों के साथ-साथ हिंदी पत्रकारिता योगदान कर रही है, वह किसी संवेदनशील व्यक्ति को उदास ही कर सकता है। इतिहास विरोधी इतिहास, संस्कृति विरोधी संस्कृति हमारे जातीय वर्तमान की सबसे गंभीर बौद्धिक ट्रेजिडी है।
सलिल उपनाम धारी सुरेश सलिल ब्लागिंग में भी आ चुके हैं। उनके ब्लाग से यह लेख साभार लिया गया है। उनके ब्लाग का पता www.susaviksha.blogspot.com है। सुरेश सलिल का जन्म उत्तर प्रदेश के उन्नाव जनपद के गांव गंगादासपुर में हुआ। सलिल पूर्णकालिक लेखक और वरिष्ठ पत्रकार हैं। आप ‘युवक धारा’ पत्रिका के सम्पादक भी रह चुके हैं। सलिल की पुस्तक ‘रोशनी की खिड़कियां’ काफी लोकप्रिय हुई। गणेश शंकर विद्यार्थी की जेल डायरी का सम्पादन कर सलिल ने पत्रकारिता की दृष्टि से प्रशंसनीय कार्य किया है। सम्प्रति विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए लेखन।