25 अक्टूबर को अलीगढ़ में अपने अभिनंदन समारोह में केपी सिंह ने मंच से कहा- मुझे सांसारिक आडंबरों में विश्वास नहीं : जनवादी लेखक संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, ‘वर्तमान साहित्य’ पत्रिका के संपादक, सुप्रसिद्ध कहानीकार डा. नमिता सिंह के पति, मार्क्सवादी साहित्य समीक्षा के महत्वपूर्ण लेखों के संकलनकर्ता और हिंदी शिक्षा जगत में शिष्यों और अनुगामियों के एक बड़े समूह के सहृदय अभिभावक डा. कुंवरपाल सिंह उर्फ डा. के.पी सिंह हमारे बीच नहीं रहे। 8 नवंबर को अपरान्ह 4 बजे लंबे अर्से की बीमारी के बाद अलीगढ़ स्थित अपने निवास पर उनका देहांत हुआ। अंतिम दिनों में उन्हें नाना प्रकार के स्नायु रोगों ने ग्रस लिया था।
कुंवरपाल जी का जन्म 6 जून सन् 1937 को हाथरस जिले के सासनी के निकट कैलोरा गांव में गजाधर सिंह के घर में हुआ। हाथरस के बागला कालेज और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के ही हिंदी विभाग में अध्यापन का कार्य किया। उन्हें एएमयू के एनआरएससी हाल का प्रोवोस्ट, आर्ट फेकेल्टी का डीन, हिन्दी विभाग का चेयरमैन बनाया गया। यह सिलसिला और आगे बढ़ा तो वह एएमयू एग्जीक्युटिव कौंसिल एवं एएमयू कोर्ट के सदस्य चुने गए। वह सुविख्यात साहित्यकार राही मासूम रजा एवं शहरयार के जिगरी दोस्तों में थे। राही मासूम रजा ने तो अपनी साहित्यिक कृतियों तक में उनका जिक्र किया है। शहर से बाहर गए शहरयार को जब इसकी जानकारी मिली तो उन्होंने फोन करके जागरण से कहा कि केपी उनके पचास साल पुराने दोस्त थे। उनका जाना मेरा व्यक्तिगत नुकसान है।
उल्लेखनीय है कि गत 25 अक्टूबर को अलीगढ़ में प्रो. केपी सिंह का नागरिक अभिनंदन किया गया था। इस अभिनंदन समारोह में उन्होंने खुले मंच से यह कहा था कि वह सांसारिक आडम्बरों पर विश्वास नहीं रखते। वह चाहते हैं कि मृत्योपरांत उनका पार्थिव शरीर शोध के लिये मेडिकल कालेज को दान स्वरूप दे दिया जाए। यही कारण है कि प्रो. केपी के पारिजनों ने उनकी इस इच्छा का सम्मान करते हुए उनका अंतिम संस्कार न करने का निर्णय लिया है।
प्रो. केपी की हिंदी की लघु पत्रिकाओं में अपने नियमित लेखन के जरिये एक जनवादी समीक्षक के रूप में पहचान बनी। ‘प्रेमचंद और जनवादी साहित्य की परंपरा’, ‘साहित्य और राजनीति’ तथा ‘साहित्य समीक्षा और मार्क्सवाद’ की तरह के साहित्य के बारे में मार्क्सवादी दृष्टिकोण को पेश करने वाले महत्वपूर्ण लेखों के संकलन उन्होंने तैयार किये थे। उनके अपने लेखों के संकलन के तौर पर ‘हिन्दी उपन्यास : सामाजिक चेतना’, ‘मार्क्सवादी सौन्दर्यशास्त्र और हिन्दी कथा-साहित्य’ पुस्तकों का स्मरण किया जा सकता है।
जनवादी लेखक संघ के गठन के समय से ही वे उसके कोषाध्यक्ष रहे। पटना में हुए पांचवे राष्ट्रीय सम्मेलन में उन्हें संगठन का उपाध्यक्ष बनाया गया। कुंवरपाल जी देश के कोने-कोने में कालेजों और विश्वविद्यालयों के हिंदी विभागों में फैले हुए अपने अध्यापकीय शिष्यों से निरंतर संपर्क रखते थे और प्रगतिशील तथा जनतांत्रिक विचारों के प्रचार-प्रसार के कामों में पूरी शिद्दत से लगे रहते थे। अपने अंतिम वर्षों में बहुचर्चित साहित्यिक पत्रिका ‘वर्तमान साहित्य’ का दायित्व संभाला। लेखकों को व्यापक मंच प्रदान किया। अलीगढ़ में वे वामपंथी और जनवादी आंदोलन के एक प्रमुख व्यक्ति माने जाते थे।
प्रो. केपी के निधन की सूचना से पूरा साहित्य जगत शोक में डूब गया है। प्रो. केपी इधर काफी समय से बीमार चल रहे थे। वह सांस और मधुमेह की बीमारी से पीडि़त थे। रविवार को उनकी हालत अचानक ज्यादा खराब हुई और सायं लगभग साढ़े चार बजे वह इस दुनिया को अलविदा कह गए। उनके निधन की सूचना पा कर एएमयू के कुलपति प्रो. पीके अब्दुल अजीज, रजिस्ट्रार प्रो. वीके अब्दुल जलील, डा. प्रदीप सक्सेना, डा. रमेश रावत समेत शिक्षा और साहित्य से जुड़े तमाम लोग उनके निवास पर पहुंच गए। सभी ने उनकी पत्नी डा. नमिता सिंह को ढांढस बंधाया।