भड़ास4मीडिया में रोज किसी न किसी पत्रकार या मीडिया से जुड़े हुए शख्स के बारे मे एक-दो खबर मिलती है कि उसने या तो मीडिया को गुडबाय कह दिया या फिर कहीं नई जगह ज्वाइन करके नई पारी शुरू कर दी. लेकिन उन युवाओं के बारे में मीडिया क्या सोचता है, जो कफ़न बांधकर पत्रकारिता के इस चक्रव्यूह में आंख बंद कर कूद गए हैं. जिनका न कोई पथ प्रदर्शक है, न कोई आका. ये विसंगतिया हैं जिन्हें सुधारने की जरूरत है और ये उन लोगों की जिम्मेदारी है जो मीडिया में प्रभाष जोशी जैसी शख्सियत या आदर्श पत्रकारिता का उदय चाहते हैं. अमूमन रोज ही पढ़ने को मिलता है कि तनख्वाह कम होने से एक और साथी ने मीडिया छोड़ा… तो क्या ज्वाइन करने के पहले खुद से पूछा था कि तनख्वाह नहीं बढ़ी तो क्या करोगे….
मेरी राय में मीडिया को गुडबाय कहने वाले ऐसे सभी लोगों को भगोड़ा घोषित कर देना चाहिए जो सच के साथ खड़े होकर झूठों से लड़ने की बजया महज नौकरी में पदोन्नति या तनख्वाह का रोना रोकर नए क्षेत्र में चले जाते हैं. वे हम युवा साथियों की हौसलाअफजाई करने के बजाय हमें इस बनियागीरी के भवंर में छोड़कर जा रहे हैं. आज सभी बात कर रहे हैं आदर्श पत्रकारिता की, जो दूर तक दिखाई नहीं देती. अगर पत्रकारिता में कुछ बचा है तो वह है बिजनेस. लेकिन ये आया कहां से? ये भी उन चंद अवसरवादी लोगों की देन है जो तरक्की चाहते थे. तब एक या दो रहे होंगे, जिनका दमन प्रभाष जोशी काल में ही हो जाना चाहिए था. अब तो कुकुरमुत्तो की तरह फैले इन बनियों को बाहर करने की बजाय खुद अच्छे लोगों को बाहर हो जाने को सही कहने वालों को अपना जमीर तलाश करने हिमालय पर चले जाना चाहिए.
-लोकेन्द्र शर्मा