किस मुंह से कहें कि हम पत्रकार हैं : मैंने पिछले लेख में लिखा था कि ललितपुर जिले में अपराधी पत्रकार का लबादा ओढ़ कर घूमने लगे हैं. अब धीरे-धीरे हकीकत से पर्दा उठ रहा है. पहले साथ में लगे फोटो को गौर से देखिये. फोटो में ललितपुर के पुलिस अधीक्षक दिख रहे है. उनके हाथों में सील बंद पैकेट है. उनके पीछे हथकड़ी में बंधा मुंह झुकाए एक शख्स नज़र आ रहा है. इस व्यक्ति का नाम अशोक तिवारी है. यह अमर उजाला का रिपोर्टर है. पुलिस अधीक्षक के हाथों में सील बंद पैकेट में जाली नोट है. यह अशोक तिवारी के पास से बरामद हुआ है.
चौंक गये न. पत्रकारिता की आड़ में यह जाली नोटों का अंतरराज्यीय गिरोह चलता था. गिरोह के वाकी सदस्यों की पुलिस सरगर्मी से तलाश कर रही है. पत्रकारिता को शर्मसार करने वाले व शेर की खाल पहने ये भेड़िये पूरे समाज को बदनाम कर रहे है. पर सवाल यह उठता है कि रिपोर्टर बनाने के लिए अख़बारों और न्यूज़ चैनलों का कोई मापदंड क्यों नहीं है. क्या पैसा ही सब कुछ है? अगर ऐसे ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं, जब खुद को पत्रकार कहने में शर्म महसूस होगी और कवरेज के लिए हमें बुर्के का सहारा लेना होगा.
ललितपुर से पत्रकार मनीष चतुर्वेदी की रिपोर्ट