डरावना है पत्रकारिता के सच का सामना : भड़ास4मीडिया पर प्रकाशित की गई मेरी रिपोर्ट “ललितपुर में अपराधी बनाने लगे पत्रकार” पर मिली ढेरों प्रतिक्रियाओं से मैं बेहद उत्साहित हुआ हूं. अपने दस साल के करिअर में अखबारों और चैनलों पर मेरी खबरों पर भी शायद मुझे इतनी प्रतिक्रिया नहीं मिली. अपराधी से पत्रकार बने लोग दबी जुबान से इस रिपोर्ट को पोर्टल से हटाने के लिए गिड़गिड़ा रहे थे. हद तो तब हुई जब अपने आकाओं से मुझे फ़ोन कराने के साथ मेरे मित्रों पर दबाव बनाने की कोशिश करने लगे. मुझे शर्म आती है लखनऊ, झाँसी और ग्वालियर में बैठे तथाकथित बड़े पत्रकारों पर, जो अपराधियों को बढावा दे रहे है.
मुझे नहीं पता, पर शायद यशवंत जी को भी फ़ोन जरूर किए होंगे, ऐसे तथाकथित बड़े पत्रकारों ने. पर इससे एक बात तो साबित हो गई कि दाल में काला नहीं, पूरी दाल ही काली है. मीडिया में राजनीति के अपराधीकरण पर बड़ी चर्चा होती थी. अब आवश्यकता है मीडिया को अपराधियों से दूर रखने की. मुझे ख़ुशी तब मिलेगी जब अख़बार और चैनल वाले अपने रिपोर्टर के चरित्र पर भी विचार करें, सिर्फ धनबल ही न देखें. ऐसा हुआ तो मीडिया में अपराधियों को रोकने में ज्यादा परेशानी नहीं आएगी, क्योकि सच का सामना कराने वाले खुद सच का सामना करने से बहुत डरते हैं.
मनीष चतुर्वेदी
पत्रकार
ललितपुर
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