प्रिय यशवंत जी, मैं आपके पोर्टल को मीडिया के गुणदोष के आकलन का बेहतर मंच मानता हूं और इसी वजह से इसका नियमित अवलोकन करता हूं। हाल के दिनों में आपने मंदी से निपटने के कुछ मीडिया हाउसों के नये प्रयोगों को जिस नकारात्मक तरीके से इकतरफा प्रस्तुत किया है, उससे मुझे बेहद निराशा हुई है। बाजार में नई संभावनाएं तलाशती मीडिया को एक बड़ा मंच होने के नाते आपको राह दिखाने के लिए जो रोल अदा करना चाहिए था, वह आप नहीं कर रहे हैं। बल्कि, आपके कई आलेखों में मैने देखा है कि मीडिया में कैरियर देख रहे युवाओं को आप डराने का प्रयास कर रहे हैं। मीडिया को अपने को जन-जन तक पहुंचाने के लिए बाजार से सहयोग लेना पड़ता है। यह कोई नई बात नहीं है। आप भी अपने पोर्टल के लिए विज्ञापन तलाशते हैं। परंतु, बाजार के साथ मीडिया की सामाजिक जिम्मेदारियां भी हैं। लोकतंत्र में हम चौथा खंभा हैं। पहले तीन खंभों की स्थिति पर नजर डाल लें।
इनमें आयी नैतिक गिरावट से हम अलग हैं। यही वजह है कि बाकी तीनों खंभों के नुमाइंदों के पास धन व सत्ता का बल रहते हुए भी, केवल आम आदमी को मिलने वाले अधिकारों के बूते हम इनसे आंख में आंख मिला कर बात करने और इनके गुण दोषों को उजागर करने की स्थिति में हैं। नि:संदेह, मीडिया में नये प्रयोग इससे जुड़े लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भी है। अब वो जमाना गया जब, कंधे पर थैला लटकाये पत्रकार समाज की कुरीतियां उजागर करते थे। वह जमाना भी गया, जब अखबार केवल बड़े शहरों की नुमाइंदगी करता था। आज पत्रकारिता में मिशन के साथ कैरियर शब्द भी जुड़ गया है। जाहिर है, नई तकनीक, कर्मियों की बेहतरी और संस्थान के नियमित विकास के लिए पैसा चाहिये। एक दो रुपये प्रति अखबार के कलेक्शन से ये जरूरतें कभी पूरी नहीं हो सकती। जो बेहतर है वही बिकता है। खुद को बेहतर बनाने के लिए मीडिया बाजार से सहयोग ले रही है तो उसमें बुराई क्या है? हाल में दो बड़े अखबारों ने चुनाव कवरेज की जो नीति बनाई, उसकी आपके पोर्टल पर खूब आलोचना हुई। इस नीति को पत्रकारिता पर परमाणु हमला बताने से पहले आप हमें बतायें कि कौन ऐसा सांसद है जो जनता के पैसे पर ऐश नहीं कर रहा हो। आम जनता के पैसे से इन्हें जो सहूलियतें व सुविधाएं मिलती हैं, देश की गरीब जनता के लिए वह सपने जैसा है। वे चुनाव जीतने के लिए कैसे पानी की तरह पैसे बहाते हैं, वह किसी से छिपा नहीं है। खबर वाले विज्ञापन पर आपके पोर्टल पर खूब हंगामा मचा। परंतु, एक मोडम इंचार्ज होने के नाते मैं आपको बताऊं कि इसमें खबर रोकने जैसी कोई बात नहीं थी। प्रत्येक प्रत्याशी के नामांकन की खबर छापी गयी। उनके खास कार्यक्रमों को कवरेज दिया गया। उनकी हर ऐसी रैलियों अथवा बयानों का कवरेज दिया गया, जो मतदाताओं व पाठकों के लिए महत्वपूर्ण थे। इसके लिए तो कोई पैसे नहीं लिये गये। अब उनके रोजाना के चिल्लमपों व जनसंपर्कों से आम लोगों का क्या वास्ता।
यशवंत जी, मैंने मीडिया में टेलीफोन आपरेटर से कैरियर की शुरुआत की और मूल्यों के साथ पत्रकारिता में कदम रखा। हम और हम जैसे हजारों पत्रकार बाजार और पत्रकारिता के मूल्यों में समन्वय स्थापित करना जानते हैं। आप विश्वास रखें, पत्रकारिता में सामाजिक नजरिया आज भी सुरक्षित है और आगे भी रहेगा। अभी की परिस्थितियां हवा के झोंकों की तरह हैं, जो कभी कभार आती हैं। आपसे गुजारिश है कि ऐसे क्षणिक मौकों का उदाहरण न दें, युवा पत्रकारों को उनके पथ से भटकाने अथवा डराने का प्रयास न करें।
आपका मित्र
सोनू कंचन
संपर्क : [email protected]