जेट एयरवेज के 1900 कर्मचारियों को निकाले जाने के बाद मीडिया की तरफ से तूफान खड़ा कर दिया जाता है और जेट एयरवेज के चीफ नरेश गोयल को सभी कर्मचारियों को वापस लेने की घोषणा करनी पड़ती है। पर मीडिया में काम करने वाले सैकड़ों लोग जब बाहर किए जाते हैं तो फिर यही मीडिया वाले चुप्पी क्यों साध लेते हैं? मीडिया से निकाले गए कर्मचारियों को फिर से रखवाने के लिए न तो नेता आंदोलन करते हैं और न मीडिया का कोई हिस्सा सामने आता है। दैनिक जागरण समूह और टीवी 18 की तरफ से संयुक्त रूप से जो बिजनेस अखबार गुजरात से निकालने की योजना बनाई गई थी, उसके लिए दर्जनों पत्रकारों को भर्ती कर लिया गया। बाद में एक दिन इस अखबार को निकालने से पहले ही बंद करने की घोषणा कर दी जाती है। एक झटके में दर्जनों पत्रकार सड़क पर आ गए।
बिजनेस स्टैंडर्ड अपना राजकोट एडीशन चुपचाप बंद कर देता है। उसमें कार्यरत ढेर सार मीडियाकर्मी बेरोजगार हो जाते हैं। कभी ई-24 तो कभी इंडिया न्यूज तो कभी वायस आफ इंडिया सैकड़ों लोगों को निकाल बाहर करता है लेकिन उन बेरोजगारों की आंसुओं की कोई परवाह नहीं करता। हिंदुस्तान से एक जमाने में निकाले गए सैकड़ों लोग अब भी झंडा डंडा लेकर आंदोलन रत हैं पर उन्हें कोई पूछ नहीं रहा। अन्य मीडिया हाउसों में भी कभी इकट्ठे तो कभी फुटकर, कर्मचारी निकाले जाते रहे हैं और अब भी निकाले जा रहे हैं। लेकिन देश-दुनिया को नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाली मीडिया के पास खुद के घर के मामले में अपने परम अनैतिक रवैये को लेकर कोई सफाई, तर्क या समझ नहीं है।
मीडिया के इस दोगले चरित्र के बारे में क्या कहीं बहस शुरू हो सकती है?
भड़ास4मीडिया इस पर बहस के लिए पहल करना चाहता है। अगर आप मीडिया में कार्यरत हैं या बेरोजगार हैं, चाहें तो अपनी पहचान छुपाते हुए, इस बारे में अपने अनुभव, विचार लिखकर भड़ास4मीडिया तक पहुंचा सकते हैं। दूसरों के लिए घड़ियाली आंसू बहाने वाली मीडिया की पोल खोलने के लिए आगे आइए। आपके विचारों को हम प्रकाशित करेंगे।
विषय है- जेट एयरवेज से निकाल गए कर्मियों के लिए घड़ियाली आंसू बहाने वाली मीडिया अपने कर्मियों के प्रति कितनी संवेदनशील है?
आप अपने विचार [email protected] पर भेज सकते हैं।
आपका
-यशवंत सिंह
संपादक, भड़ास4मीडिया : हिंदी मीडिया की खबरों का सबसे बड़ा पोर्टल