मध्य प्रदेश के चुनाव की ओर बहुत ज्यादा ध्यान राष्ट्रीय मीडिया का नहीं है। बात चुनाव की ही नहीं है। नेशनल मीडिया के लिए मध्य प्रदेश कभी आकर्षण का केंद्र नहीं रहा। बेचारा एमपी…..। टीआरपी के पैमाने में कहीं टिकता ही नहीं। चैनलों को जो चाहिए वो यहां उस मात्रा में नहीं है, यही है एमपी का ‘अपराध’। मीडिया की मौजूदा खुराख की बात करें तो उसे चाहिए अपराध। मध्य प्रदेश इसमें फिसड्डी है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की तरह यहां अपराध नहीं होते। छिछोरों और उठाईगीरों को यदि छोड़ दें तो यहां अपराधी ही नहीं हैं।
कुछ सिमी वाले हैं लेकिन जो हैं वो तो फटेहाल हैं। बावजूद इसके, उनका दर्जा लादेन के बराबर करना लोकल मीडिया की मजबूरी है। यदि ऐसा नहीं करे तो उनकी खबर बिकती ही नहीं है।
सिमी का खजांची जब पकड़ा गया तो कुछ उत्साही पत्रकारों ने डेस्क में बैठे अपने नियंताओं को लिखवाया “सिमी का फाइनेंसर पकड़ा गया”। सुनने वालों को लगा होगा कि करोड़-दो करोड़ का आसामी तो बेशक होगा लेकिन उसके खाते से मिले कुछ हजार रूपये। भाव ये है कि अपराधी भी यहां कोई नहीं हैं जिनके पास टीआरपी की समझ हो। मुए…. रहेंगे न आखिर देहाती अपराधी। हम लोगों की दुकान कुछ थोड़े बहुत बाबा और पंडा लोग खींचतान कर चलवा देते हैं लेकिन उनके भक्त इतने लो प्रोफाइल होते हैं की अगले बुलेटिन में ही खबर गिर जाती है। मेरा विनम्र अनुरोध है टीआरपी की समझ रखने वाले सभी अपराधी भाई-बहनों से कि “पधारो म्हारे मध्य प्रदेश”।
अब आते हैं राजनीति और नेताओं पर। यहां न मोदी हैं, न मायावती हैं, न लालू हैं। हैं शिवराज भैया। इनकी ख्याति पांव पांव वाले भैया की है। भला बतायें कि पांव पांव वाले की कितनी टीआरपी हो सकती है? मोदी का इंटरव्यू लाने वाला रिपोर्टर चैनल के ऑफिस में तारीफ पाता है और शिवराज के इंटरव्यू को तरजीह ही नहीं देते। यहां चैनल की जरूरत के मुताबिक सिर्फ एक नेत्री हैं। वो हैं उमा भारती। इनकी खबरों के बाजार में मांग बेशक सभी दलों के नेताओं से कहीं अधिक है। अब तक आप समझ गए होंगे कि यहां के राजनेताओं को भी टीआरपी की कितनी समझ है। दोष मीडिया का नहीं है। दोष है उन लगभग 40 हजार लोगों का जिन्हें एमपी के नेताओं को देखना ही नहीं हैं। (शायद आपको न पता हो कि जो लोग टीवी की टीआरपी यानि हर सप्ताह चैनलो को अंकसूची देते हैं, देश भर में उनकी संख्या महज 40 हजार ही है। देश कि आबादी भले ही डेढ़ अरब हो रही हो लेकिन मुट्ठी भर लोग ही तय करते हैं कि कौन सा चैनल आगे और कौन सा पीछे। इस पर बहस फिर कभी!) लब्बोलुआब ये है कि नेताओ की क्षमता भी इतनी नहीं की खबरों में बने रह सकें।
अब बात सेलिब्रिटी की। न एमपी में कोई नामचीन क्रिकेटर, न ही उनका परिवार, फिल्मी दुनिया का भी कोई यहां नहीं रहता। जो बेचारे तथाकथित सेलिब्रिटी हैं उनके सामने शहर से बाहर जाने पर ही पहचान का संकट पैदा हो जाता है तो भला वे कैसे दिल्ली में बैठे मीडिया वालों का ध्यान खींच सकते हैं।
ले दे कर बच जाता है धर्म और अंधविश्वास। इसकी हमारे यहां पैदावार बेहद उम्दा है। उसी दम पर हमारे पत्रकारों की रोजी-रोटी चल जाती है।
पत्रकार जान्हवी दुबे से संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है।