डेनिश कार्टूनिस्ट द्वारा बनाए गए कार्टूनों को वर्ष 2006 में अपने संपादकत्व वाली पत्रिका में प्रकाशित करने वाले आलोक तोमर के खिलाफ दर्ज मामले में दिल्ली पुलिस अब चेहरा बचाती फिर रही है। तभी तो पटियाला हाउस अदालत में चौथी तारीख पर भी दिल्ली पुलिस की तरफ से कोई अधिकारी नहीं पहुंचा। पुलिस ने कोर्ट से चार्जशीट के संतोषजनक न होने की बात कही थी पर अब जब कोर्ट की तरफ से पुलिस को बुलाया जा रहा है कि वे बताएं कि आलोक तोमर पर क्या मामला बनता है तो पुलिस का कोई प्रतिनिधि नहीं आ रहा है।
कोर्ट ने अगली तारीख 10 दिसंबर तय की है। फरवरी 2006 में जब यह कार्टून पत्रिका में छपे थे तो पुलिस ने आरोप लगाया कि ये कार्टून किसी खास धार्मिक समुदाय की भावनाओं को भड़काते हैं।
पुलिस को आलोक तोमर से बदला चुकाने का मौका मिला या सचमुच आरोप इतने संगीन थे, इसे आज तक नहीं कोई समझ पाया है। आलोक तोमर को किसी अदालत में प्रस्तुत होने और अपनी बात का मौका दिए बिना सीधे तिहाड़ जेल ले जाया गया। अदालत से झूठ बोला गया कि पटियाला हाउस कोर्ट में दंगा हो रहा है। इस बात को बाद में खुद डीसीपी ने गलत बताया।
आलोक तोमर को उच्च सुरक्षा वाले इलाके में रखने का निर्देश हुआ। उन्हें वहां रखा गया जहां कश्मीरी आतंकियों को रखा जाता है। बिना बात 12 दिन तिहाड़ जेल में रखा गया। जमानत के बाद जद्दोजहद शुरू हुई कि कब चार्जशीट दाखिल होगी ताकि मुकदमें की प्रक्रिया शुरू हो सके और आलोक अपना पक्ष अदालत के सामने रख सकें। यह होने में कोई सवा दो साल लग गये।
इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार आलोक तोमर ने भड़ास4मीडिया को बताया कि खुद जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए मजिस्ट्रेट ने पुलिस के आरोपों की धज्जियां उड़ा दी थीं। लेकिन दिल्ली पुलिस जो सदैव आम आदमी के साथ रहने की दावा करती है, आलोक तोमर के खिलाफ ही खड़ी रही। किसी भी तर्क, चीख-पुकार, प्रमाण का दिल्ली पुलिस पर कोई खास असर नहीं पड़ रहा था। दो साल के दौरान 17 जांच अधिकारी बदले गये। तीन थानेदार और तीन डीसीपी बदल गये। फिर भी न चार्जशीट प्रस्तुत होना था, न हुई।
आलोक तोमर ने बताया कि उन्होंने हार कर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया कि या तो दिल्ली पुलिस मुकदमा चलाने के लिए चार्जशीट दायर करे या फिर एफआईआर ही खारिज करे। हाईकोर्ट के संज्ञान लेने के बाद आखिर पांच जून को पुलिस ने चार्जशीट तैयार कर दी। अब मुकदमें की तैयारी है। मगर चार्जशीट तो दाखिल हो। अदालत उसे मंज़ूर तो करे।
आलोक तोमर ने बताया कि केके पाल जब तक रहे, जितना बिगाड़ सकते थे, उतना बिगाड़ा और परेशान किया। शासन-प्रशासन के किसी शीर्ष व्यक्ति में निजी कुण्ठा और द्वेष जब कुण्डली मारकर बैठ जाता है तो कानून व कानून रक्षक इकाइयों का कैसे दुरूपयोग करता है, कम से कम मुझे तो इसका पूरा सबक मिल गया। उन्होंने जैसे चाहा वैसे दिल्ली पुलिस को मेरे खिलाफ उपयोग किया। पर इस मामले में मैं अंत तक चुप नहीं बैठूंगा और मुझे फंसाने की साजिश करने वालों को सजा दिलाने के लिए आखिरी दम तक लड़ूंगा।