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दुख-दर्द

पंजाब के पत्रकार अश्विनी मल्होत्रा जेल में क्यों हैं?

आदित्य चौधरीक्या आप पत्रकार हैं? क्या आप किसी बडे आदमी से पंगा लेने जा रहे? क्या आपके पास कोई ऐसी खबर है जिसे वो बड़ा आदमी बाहर नहीं आने देना चाहता? फिर भी आप खबर करने पर अडे हैं? तो फिर सोच लीजिये। कहीं ऐसा न हो, इस ‘जुर्म’ में आपको जेल जाना पड़े। आप सोच रहे होंगे कि आज जब अखबारों, चैनलों, पत्रिकाओं, साइटों, ब्लागों की भीड़ है और मीडिया को बहुत ताकतवर माना जा रहा है तो भला लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के प्रतिनिधि के साथ ऐसा कैसे हो सकता है?

आदित्य चौधरी

आदित्य चौधरीक्या आप पत्रकार हैं? क्या आप किसी बडे आदमी से पंगा लेने जा रहे? क्या आपके पास कोई ऐसी खबर है जिसे वो बड़ा आदमी बाहर नहीं आने देना चाहता? फिर भी आप खबर करने पर अडे हैं? तो फिर सोच लीजिये। कहीं ऐसा न हो, इस ‘जुर्म’ में आपको जेल जाना पड़े। आप सोच रहे होंगे कि आज जब अखबारों, चैनलों, पत्रिकाओं, साइटों, ब्लागों की भीड़ है और मीडिया को बहुत ताकतवर माना जा रहा है तो भला लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के प्रतिनिधि के साथ ऐसा कैसे हो सकता है?

मैं बात कर रहा हूं पंजाब के जालंधर के एक पत्रकार अश्विनी मल्होत्रा की। देश के एक प्रतिष्ठित समाचार चैनल में बतौर स्टिंगर काम करने वाले मल्होत्रा आजकल जेल में हैं। जालंधर के एक निजी विश्वविद्यालय के मालिकों की ‘कृपादृष्टि’ से मल्होत्रा के खिलाफ आधा दर्जन से भी ज्यादा धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है। हैरानी की बात ये कि उनके खिलाफ शिकायत मिलते ही पुलिस ने हद से ज्यादा तेजी दिखाई। रात को ही घर से इस तरह उठा लिया जैसे वो कोई चोर, डाकू या कातिल हों। उनके घर वालों को उनकी पुलिस हिरासत के बारे में अगले दिन दोपहर बाद पता चला।

अश्विनी मल्होत्रा के पक्ष में पूरे पंजाब के पत्रकार पिछले कई दिन से संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन शासन और प्रशासन के कानों पर जूं नही रेंग रही है। पंजाब में लगातार ऐसे मामले सामने आते हैं जब नेता या पैसे वाले लोग पत्रकारों को परेशान करने के लिए झूठे आरोप लगाकर उन्हें सबक सिखाते हैं। इंडियन एक्सप्रेस के गौतम धीर के मामले को यहां के पत्रकार अब तक नही भूल पाए हैं। ताजा मामला अश्विनी का है।

इसमे कोई शक नही है कि पत्रकार या मीडिया से जुड़े लोग भी आम इन्सान होते हैं और ऐसा भी नही है कि वो दूध के धुले होते हैं या वो कभी कोई गुनाह नहीं कर सकते। लेकिन जब भी किसी पत्रकार के खिलाफ कोई मामला पुलिस के सामने आता है तो वो इतनी तेजी और जल्दबाजी से काम करती है कि उसका यही काम करना सवालों के घेरे में आ जाता है। सभी इस बात से वाकिफ हैं कि अगर कहीं कत्ल हो जाए तब पुलिस सौ बातें सोच कर ही केस दर्ज करती है। इसमें समय भी लगता है और आरोपी की गिरफ्तारी कैसे होती है, यह भी सबको पता है। लेकिन पत्रकार के खिलाफ हमेशा ही पुलिस की कार्रवाई अप्रत्याशित रूप से तेज होती है।

अश्विनी मल्होत्रा के मामले में भी यही दिखाई पड़ता है। एक शिकायत मिलते ही पुलिस ने उन्हें उठा लिया। ये तो नहीं कहा जा सकता कि जो शिकायत पुलिस को मिली थी वो पूरी तरह से गलत ही होगी लेकिन ऐसा लगता ही नहीं कि पुलिस ने इस शिकायत की कोई जांच परख करके कार्रवाई की। मानो पुलिस शिकायत मिलने के इंतजार में ही बैठी थी। मिलते ही कार्रवाई हो गई। मल्होत्रा पर आरोप है कि वो एक निजी विश्वविद्यालय के मालिक को ब्लैकमेल कर रहे थे, पैसे मांग रहे थे। मुझे लगता है कि किसी भी पत्रकार को फंसाने का इससे बढ़िया तरीका कोई दूसरा नहीं हो सकता। ऐसा ही हमेशा होता रहा है। जितने भी पत्रकारों पर केस होते हैं, ज्यादातर पर यही आरोप होता है।

अश्विनी मल्होत्रा के मुद्दे पर पंजाब और चंडीगढ़ के पत्रकार आन्दोलन कर रहे हैं। इसकी अगुवाई वरिष्ठ पत्रकार रीतेश लखी कर रहे हैं। लखी पंजाब और चंडीगढ़ इलेक्ट्रानिक मीडिया संघ के अध्यक्ष भी हैं। इस मामले में पुलिस की भूमिका को सवालों के घेरे में रखते हुए पंजाब के मुख्यमंत्री से लेकर पुलिस मुखिया के दफ्तर तक जाकर पत्रकार अपनी बात रख चुके हैं लेकिन कुछ होता नहीं दिख रहा। शनिवार को तो पंजाब के कई शहरों से आए पत्रकारों ने चंडीगढ़ के पत्रकारों के साथ मिलकर सेक्टर 17 के प्लाजा में धरना देकर नारेबाजी भी की। लेकिन इस मुद्दे पर पत्रकार दो धड़ों में बंटते दिख रहे हैं। एक प्रिंट, दूसरा इलेक्ट्रोनिक मीडिया। यह गलत है क्योंकि इससे पहले जब भी किसी पत्रकार पर मुसीबत आई है तो सभी ने मिल कर उसका मुकाबला किया। वैसे भी पत्रकार तो पत्रकार ही होता है। फर्क बस इतना है कि कुछ के हाथों में कलम है तो कुछ के हाथों में माइक है। अश्विनी मल्होत्रा के मामले पर पुलिस प्रमुख ने निष्पक्ष जांच की बात करते हुए एक एसआईटी भी बना दी है।

सबसे बड़ी बात ये है कि अगर जांच के बाद वो निर्दोष मिलते हैं तो उनकी उस रेपुटेशन को कौन वापस दिलाएगा जो उन्होंने कई वर्षों में बनाई थी। उनके परिवार को जो इतनी मानसिक परेशानी झेलनी पड़ रही है, उसके लिए किसे जिम्मेदार माना जाएगा। आरोप तो ये भी है की पुलिस ने उनके साथ हिरासत में मारपीट की। तो क्या, उनके निर्दोष होने पर इसके लिए किसी को सजा मिल पायेगी? मुझे लगता है कि इस मुद्दे पर पत्रकारों को एकजुटता दिखानी चाहिए। उन्हें उन दूसरे संगठनों की तरह संगठित आंदोलन करना चाहिए जिनके आंदोलनों से डरकर कोई उनसे पंगा ही नहीं लेता।


लेखक आदित्य चौधरी चंडीगढ़ में जी न्यूज के संवाददाता हैं। उनसे [email protected] के जरिए संपर्क किया जा सकता है।

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