अपराधियों के बढ़े हौसले के शिकार अब यहां पत्रकार भी होने लगे हैं। पुलिस का खौफ भी इन अपराधियों को नहीं है। पिछले एक महीने में करीब छह पत्रकार धमकाए, मारे या लूटे जा चुके हैं। अगर दबाव पड़ता है तो आधी अधूरी कार्यवाही हो जाती है नहीं तो पुलिस को इसकी चिंता नहीं। एक ब्लाक में ब्लाक प्रमुख ने अपने इलाके के पत्रकार उमेश शुक्ला को घर पर ही मारा पीटा। इतना ही नहीं, पुलिस में शिकायत करने पर जान से मार डालने की धमकी भी दी। तमाम गैर कानूनी गतिविधियों से जुड़े एक दबंग ने लालगंज के पत्रकार अनुराग द्विवेदी को उनके दफ्तर के सामने ही पीटा और जेब में पड़े रुपए भी निकाल लिए। द्विवेदी के अन्य कार्यालयी सहयोगियों के बचाव में आने पर कई गाड़ियों में भर कर बदमाश बुला लिए गए।
एक अन्य पत्रकार महेश पर भी अराजक तत्वों ने जानलेवा हमला किया। उन पर की गई गोलीबारी में वे बाल-बाल बचे। इसी तरह दवा माफिया के खिलाफ खबर भेजने से नाराज दबंगों ने ईटीवी के संवाददाता श्रीपाल तेवतिया को कई बार फोन पर जान से मारने की धमकी दी है। ये वह मामले हैं जो पुलिस रिकार्ड में दर्ज हो चुके हैं। इन सब में पुलिस का रवैया संतोषजनक नहीं रहा। अनुराग द्विवेदी के मामले में आरोपियों पर धारा 323, 504, 506, 392 में मुकदमा दर्ज हुआ। पहले तो पुलिस ने आरोपी को हाथ लगाना मुनासिब नहीं समझा। बाद में मामले के तल पकड़ने की संभावना खत्म करने के लिए आरोपी पर धारा 151 में चालान कर दिया। हैरानी की बात यह है कि जब आरोपी पकड़ में आ गया था तब ही उस पर दूसरे मुकदमे की धाराएं क्यों नहीं लगाई गई। इसी तरह आरोपी ब्लाक प्रमुख तब तक खुला घूमता रहा जब तक प्रेस क्लब और उपजा जैसे संगठन सक्रिय नहीं हुए। दबाव बढ़ने पर ब्लाक प्रमुख ने न्यायालय में समर्पण करके जमानत करा ली। बाकी मामलों के आरोपी छुट्टे घूम रहे हैं। पत्रकार श्रीपाल तेवतिया का कहना है कि मेरे साथी कभी भी कोई घटना हो सकती है। क्योंकि पुलिस सब कुछ जानते हुए भी मौन है। (जनसत्ता में वीथिका की रिपोर्ट)