संगरूर (पंजाब) क्षेत्र के कस्बा सुनाम में एक प्राइवेट हास्पिटल के स्टॉफ ने सुसाइड मामले की कवरेज करने पहुंचे दो पत्रकारों और कैमरामैन को कमरे में बंद कर जूतों-चप्पलों से पीटा। आरोप लगाया गया कि वे तीनों हास्पिटल में भर्ती पीड़ित के तीमारदारों को ब्लैकमेल करने व विज्ञापन के लिए हास्पिटल स्टॉफ पर दबाव बनाने आए थे। घटनाक्रम के अनुसार पत्रकार राजेश कुमार, कीर्तिपाल और कैमरामैन रंजित कुमार पिछले दिनो सुनाम सिटी थानाक्षेत्र के विश्वास हास्पिटल एक सुसाइड मामले की कवरेज करने पहुंचे। हास्पिटल स्टॉफ को उन्होंने बताया कि उन्हें एक सुसाइड मामले की जानकारी करनी है। उन्हें स्थानीय पुलिस से पता चला है कि किसी संपन्न परिवार के युवक ने घरेलू कारणों से जहर खाकर आत्महत्या की कोशिश की है।
इस मामले की रिपोर्ट भी दर्ज हुई है। हमें जानना है कि ऐसे मामले में युवक को सरकारी अस्पताल की बजाय यहां प्राइवेट में क्यों भर्ती कराया गया है? हास्पिटल स्टॉफ ने तीनों को रोकने की कोशिश करते हुए उनसे कहा कि इस समय डॉक्टर कहीं बाहर गए हैं, आप लोग बिना उनकी इजाजत के अभी कवरेज करने अंदर नहीं जा सकते। हास्पिटल स्टॉफ के अनुसार मना करने पर तीनों पत्रकार होने का रोब दिखाकर तकरार पर आमादा हो गए। आरोप है कि उनका इरादा इसी बहाने स्टॉफ को दबाव में लेकर पीड़ित के तीमारदारों से धन उगाही का था। तीनों जोर-जोर से चिल्लाने लगे कि हम पत्रकार हैं, कहीं भी जा सकते हैं, हमे कवरेज करने से कोई नहीं रोक सकता। इस बीच बात बढ़ती गई। लाख मनाही के बावजूद जब कैमरामैन वहांकीफोटो खींचने की कोशिश करने लगा, स्टॉफ व मौके पर मौजूद लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। बताया जाता है कि तीनो को एक कमरे में बंद कर उनके साथ मारपीट की गई। उनका कैमरा और दो मोबाइल फोन छीन लिए गए।
इसके बाद पूरा मामला पहुंच गया स्थानीय पुलिस के पास। दोनों पक्षों में समझौता कराने के इरादे से कस्बे के गणमान्य लोगों को हस्तक्षेप करना पड़ा, क्योंकि जहर खाने वाला युवक संपन्न परिवार से था और परिजनों की मंशा भी घटना उजागर नहीं होने देने की थी। पुलिस के सामने ही लिखित तौर पर माफी मांगने के बाद दोनों पत्रकारों और कैमरामैन को मुक्त किया जा सका। कीर्तिपाल ने भड़ास4मीडिया को बताया कि सुसाइड मामले को छिपाने के उद्देश्य से युवक को प्राइवेट हास्पिटल में भर्ती कराया गया था। उन्होंने कहा कि हमारे साथ मारपीट नहीं हुई, सिर्फ कमरे में बंद कर कैमरा और दो मोबाइल फोन छीन लिए गए। जब हमने हास्पिटल स्टॉफ की जोर-जबरदस्ती की बात पुलिस को बताई तो उसने कोई कार्रवाई करने की बजाय समझौता करा दिया। दूसरे दिन यह पूरा वाकया स्थानीय समाचारपत्रों की भी सुर्खियां बना। दबी जुबान से कुछ लोगों का यह भी कहना था कि दोनों रिपोर्टरों की असली मंशा पीड़ित के परिजनों को ब्लैकमेल करने के साथ ही उनके चैनल को विज्ञापन देने के लिए हास्पिटल पर दबाव बनाना था।