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जागरण व हिंदुस्तान को विज्ञापन न देंगे खफा नीतीश

पटना से खबर है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बाढ़ की त्रासदी से निपटने में राज्य सरकार की विफलता को उजागर करने वाले अखबारों दैनिक जागरण और दैनिक हिंदुस्तान से नाराज होकर इनको राज्य सरकार के विज्ञापन रोक देने के मौखिक आदेश दे दिए हैं। बाढ़ के शिकार लोगों की दशा-दुर्दशा और सरकार के कागजी राहत कार्य को लेकर इन अखबारों ने कई रपटें प्रकाशित की थीं। इससे नीतीश चिढ़ गए। उन्होंने मौखिक फरमान देकर इनके विज्ञापन रुकवा दिए हैं। इससे पहले नीतीश सरकार राष्ट्रीय सहारा के विज्ञापन बंद कर चुकी है। सहारा के मामले में सरकार का तर्क प्रसार संख्या को लेकर था। वैसे बिहार में अखबारों का विज्ञापन बंद करने का वहां की सरकारों का पुराना हथकंडा रहा है। जिन अखबारों ने सरकार की कमियों को उजागर किया, उनका विज्ञापन बंद कर दिया जाता रहा है।

<p align="justify"><strong>पटना</strong> से खबर है कि बिहार के मुख्यमंत्री <strong>नीतीश कुमार</strong> ने बाढ़ की त्रासदी से निपटने में राज्य सरकार की विफलता को उजागर करने वाले अखबारों <strong>दैनिक जागरण </strong>और <strong>दैनिक हिंदुस्तान</strong> से नाराज होकर इनको राज्य सरकार के विज्ञापन रोक देने के मौखिक आदेश दे दिए हैं। बाढ़ के शिकार लोगों की दशा-दुर्दशा और सरकार के कागजी राहत कार्य को लेकर इन अखबारों ने कई रपटें प्रकाशित की थीं। इससे नीतीश चिढ़ गए। उन्होंने मौखिक फरमान देकर इनके विज्ञापन रुकवा दिए हैं। इससे पहले नीतीश सरकार राष्ट्रीय सहारा के विज्ञापन बंद कर चुकी है। सहारा के मामले में सरकार का तर्क प्रसार संख्या को लेकर था। वैसे बिहार में अखबारों का विज्ञापन बंद करने का वहां की सरकारों का पुराना हथकंडा रहा है। जिन अखबारों ने सरकार की कमियों को उजागर किया, उनका विज्ञापन बंद कर दिया जाता रहा है। </p>

पटना से खबर है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बाढ़ की त्रासदी से निपटने में राज्य सरकार की विफलता को उजागर करने वाले अखबारों दैनिक जागरण और दैनिक हिंदुस्तान से नाराज होकर इनको राज्य सरकार के विज्ञापन रोक देने के मौखिक आदेश दे दिए हैं। बाढ़ के शिकार लोगों की दशा-दुर्दशा और सरकार के कागजी राहत कार्य को लेकर इन अखबारों ने कई रपटें प्रकाशित की थीं। इससे नीतीश चिढ़ गए। उन्होंने मौखिक फरमान देकर इनके विज्ञापन रुकवा दिए हैं। इससे पहले नीतीश सरकार राष्ट्रीय सहारा के विज्ञापन बंद कर चुकी है। सहारा के मामले में सरकार का तर्क प्रसार संख्या को लेकर था। वैसे बिहार में अखबारों का विज्ञापन बंद करने का वहां की सरकारों का पुराना हथकंडा रहा है। जिन अखबारों ने सरकार की कमियों को उजागर किया, उनका विज्ञापन बंद कर दिया जाता रहा है।

अपने शासनकाल में डा. जगन्नाथ मिश्रा भी ऐसा करके आर्यावर्त जैसे अखबार को बंद करा चुके हैं। हालांकि बिहार में प्रतिपक्ष और केंद्र में पक्ष राजद भी इसमें पीछे नहीं है। पिछले दिनों प्रभात खबर में छपी खबर जब लालू प्रसाद को पसंद नहीं आई तो उनके इशारे पर रेल मंत्रालय ने इस अखबार के विज्ञापन बंद कर दिए।

इससे पहले नीतीश कुमार ने पत्रकारों के लिए आवास का कोटा निर्धारित करा के मीडिया फ्रेंडली होने का प्रदर्शन किया था पर ताजे कृत्य के चलते उनका मीडिया विरोधी रवैया उजागर होता है।


इस खबर पर आप अपनी बात भड़ास4मीडिया तक [email protected] पर मेल करके पहुंचा सकते हैं।

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