मीडिया चरित्र (3) : देश के प्रमुख खबरिया चैनलों ने आईएएस परीक्षा में लड़कियों की शानदार कामयाबी को उतना महत्व नहीं दिया, जितना देना चाहिए। इस सकारात्मक खबर पर कई चैनलों ने चलताऊ ढंग से सूचना देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। महिलाओं के कवरेज के मामलों में आम तौर पर यह देखा जाता है कि ये खबरिया चैनल महिलाओं से जुड़ी कम महत्व की नकारात्मक खबरों को खूब बढ़ा-चढ़ा कर पेश करते हैं। ब्यॉय फ्रेंड को राखी सावंत द्वारा थप्पड़ मारने, एश्वर्य राय की शादी, प्रियंका गांधी की साड़ी और पत्नी द्वार प्रेमिका की पिटाई, शराबी महिलाओं की लड़ाई, गुलाबी चड्ढी भेजो अभियान जैसे मुद्दों को घंटों समय देने वाले न्यूज चैनल महिला विकास एवं सशक्तीकरण से जुड़े वाजिब मुद्दों को सेकेंडों का समय देते हैं। ऐसा तब है जब चैनलों में महिलाओं एवं लड़कियों की संख्या तेजी से बढ़ी है और कई चैनलों में महिलाएं उंचे पदों पर विराजमान है।
मीडिया अध्ययन केन्द्र (सीएमएस) की ओर से किये गये एक अध्ययन से पता चला है कि चार मई की जिस शाम को सिविल सर्विसेज परीक्षा परिणाम की घोषणा हुयी, उस दिन शाम सात बजे से लेकर रात 11 बजे तक देश के छह प्रमुख खबरिया चैनलों ने महिलाओं की इस महत्वपूर्ण उपलब्धि को कुल मिलाकर दस मिनट का समय दिया। सीएमएस मीडिया लैब की ओर से किये गये इस अध्ययन के अनुसार चार मई को प्राइम टाइम के दौरान आज तक, एनडीटीवी 24×7 और सीएनएन-आईबीएन ने इस खबर को कोई समय नहीं दिया जबकि स्टार न्यूज ने 30 सेकेंड, डीडी न्यूज ने एक मिनट 25 सेंकेड और जी न्यूज ने आठ मिनट का समय दिया। मीडिया लैब के प्रमुख प्रभाकर ने बताया कि यह अध्ययन चार मई से लेकर छह मई तक किया गया और यह पाया गया कि इन चैनलों में से केवल जी न्यूज ने ही प्राइम टाम पर इस मुद्दे पर सबसे अधिक आठ मिनट का समय दिया। इस चैनल ने न केवल शीर्ष स्थान पाने वाली लड़कियों का बल्कि चौथे स्थान पर आने वाले विकलांग युवक का भी इंटरव्यू दिखाया।
गौरतलब है कि सिविल सर्विसेज परीक्षा के इतिहास में तकरीबन 25 सालों बाद ऐसा हुआ है कि पहले तीन पायदानों पर लड़कियों ने कब्जा किया। शीर्ष स्थान इंदिरापुरम् की शुभ्रा सक्सेना ने प्राप्त किया जबकि पहले 25 स्थानों में से दस स्थानों पर लड़कियों ने ही कब्जा जमाया। यही नहीं, एक विकलांग युवक ने भी इस परीक्षा में इतिहास रचा। अपनी शारीरिक विकलांगता के बावजूद पुरूषों में पहली स्थान और अखिल भारतीय रैंक में चौथा स्थान हासिल किया लेकिन मीडिया ने खास तौर पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने इसे खास तवज्जो देना जरूरी नहीं समझा।
सीएमएस अध्ययन के अनुसार स्टार न्यूज ने तीन दिनों के दौरान अपने प्राइम टाइम पर केवल साढ़े चार मिनट का समय दिया- चार मई को मात्र 30 सेकेड तथा छह मई को चार मिनट। एनडीटीवी 24×7 ने चार मई को प्राइम टाइम पर इस पर कोई समय नहीं दिया। उसने छह मई को इस विषय पर पौने चार मिनट का समय दिया। हालांकि एनडीटीवी इंडिया ने इस मसले पर एक परिचर्चा का आयोजन कर सिविल सर्विसेज में महिलाओं की सफलता पर काफी कुछ दिखाया और बताया। सीएनएन-आईबीएन ने तो इन तीनों दिनों में प्राइम टाइम पर इस कोई समय नहीं दिया। आज तक ने केवल पांच मई को एक मिनट का समय दिया।
श्री प्रभाकर कहते हैं, ”आम तौर पर देखा गया है कि खबरिया चैनल बलात्कार, रहस्यमय हत्या और छेड़छाड़ जैसी महिलाओं से जुड़ी नकारात्मक खबरों को बहुत अधिक और बढ़ा-चढ़ा कर पेश करते हैं जबकि महिलाओं के विकास से जुड़ी सकारात्मक खबरों को या तो दरकिनार करते हैं या बहुत कम महत्व देते हैं।”
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इस रिपोर्ट के लेखक विनोद विप्लव पत्रकार, कहानीकार और ब्लागर हैं। वे इन दिनों न्यूज एजेंसी ‘यूनीवार्ता’ में विशेष संवाददाता के तौर पर कार्यरत हैं। उनसे [email protected] या 9868793203 के जरिए संपर्क किया जा सकता है।