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समलैंगिकता के पीछे क्या है?

समलैंगिकता के पीछे है विश्व सेक्स माफिया। समलैंगिकता के पीछे है खरबों डालर की सेक्स इंडस्ट्री। समलैंगिकता के पीछे है भारत को सेक्स हब बनाने की साजिश। यह कहना है प्रख्यात पत्रकार संतोष भारतीय का। चौथी दुनिया के ताजे अंक में प्रधान संपादक संतोष भारतीय ने डेढ़ पेज की जो कवर स्टोरी लिखी है, उसमें समलैंगिकता प्रकरण के पीछे के वीभत्स सच का खुलासा किया है। समलैंगिकता से संबंधित धारा 377 को हटाने के दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के पीछे किनके मकसद काम कर रहे हैं?

समलैंगिकता के पीछे है विश्व सेक्स माफिया। समलैंगिकता के पीछे है खरबों डालर की सेक्स इंडस्ट्री। समलैंगिकता के पीछे है भारत को सेक्स हब बनाने की साजिश। यह कहना है प्रख्यात पत्रकार संतोष भारतीय का। चौथी दुनिया के ताजे अंक में प्रधान संपादक संतोष भारतीय ने डेढ़ पेज की जो कवर स्टोरी लिखी है, उसमें समलैंगिकता प्रकरण के पीछे के वीभत्स सच का खुलासा किया है। समलैंगिकता से संबंधित धारा 377 को हटाने के दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के पीछे किनके मकसद काम कर रहे हैं?

इरादे कितने खतरनाक हैं? क्या उस फैसले से भारत में विश्व सेक्स माफिया का रास्ता आसान होने जा रहा है? सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप नहीं किया तो क्या हमारा देश मैक्सिको और थाईलैंड से भी बड़ा गर्म गोश्त का हब बना जाएगा? ऐसे ढेर सारे सवालों से पर्दा उठाया है संतोष भारतीय ने। मीडिया की ओर से संभवतः पहली बार इतनी तल्खी से यह पूरा मामला उठाया गया है। बताया गया है कि भारत की संसद, देश के सर्वोच्च न्यायालय और राजनीतिक दलों को तत्काल सावधान हो जाना चाहिए क्योंकि इस धारा को हटाने के लिए मचाए जा रहे हाय-तौबा की असली कहानी कुछ और है। इस पूरे खेल के पीछे है अंतरराष्ट्रीय सेक्स माफिया की भयावह साज़िश।

चौंकाने वाली बात यह है कि पिछले दिनो धारा 377 हटाए जाने के फैसले का स्वागत कुछ इस तरह किया गया, जैसे पूरा हिंदुस्तान होमो-सेक्सुअल या गे मानसिकता का है और इसे अब खुलकर संबंध बनाने की आजादी मिल गई है। इस नाजायज उल्लास को पश्चिमी विश्व ने हैरतअंगेज तरीके से लिया और बड़े अखबारों, टीवी चैनलों ने इसे भारत की ओर से भी समर्थन मिल जाना करार दिया। समर्थन इस आजादी को, कि अब आपसी सहमति से मैन टु मैन संबंध बनाने में कोई अड़चन शेष नहीं रही, कानूनी बांध तोड़ दिया गया है। जबकि आज भी भारत की जमीनी हकीकत ये है कि समलैंगिकता को सामाजिक मान्यता तो दूर, ऐसे कृत्य को बड़ी ही घृणा की निगाह से देखा जाता है।

दूसरी ओर दुनिया की तीसरी सबसे ताकतवर तीन ट्रिलियन डालर की सेक्स इंडस्ट्री की गिद्ध निगाहें 1985 के दशक से ही भारत पर टिकी हुई हैं। उनके रास्ते में सबसे बड़ी बाधा धारा 377 रही है। यह रोड़ा हटाने के लिए एनजीओ के माध्यम से लगातार निशाने साधे जाते रहे हैं। उन्हें कामयाबी मिल चुकी है तो तय जानिए कि अब दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई-बेंगलुरु में भी गे-क्लब और गे-पार्लर खुलने वाले हैं। और अगली हाय-तौबा वेश्यावृत्ति को कानूनी दर्जा दिलाने की हो सकती है। धारा 377 से मुक्ति पाने के पीछे और क्या-क्या इरादे हैं….. पूरी सच्चाई जानने के लिए पढ़िए चौथी दुनिया का ताजा अंक।

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