सीएनईबी न्यूज चैनल के इलाहाबाद के रिपोर्टर पंकज चौधरी पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रनेता रजनीश राय ने पिछले दिनों हमला कर दिया और बदतमीजी की। इस मामले की एफआईआर दर्ज कराई जा चुकी है लेकिन पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठे है। पंकज चौधरी ने भड़ास4मीडिया को बताया कि वे इसी माह की पांच तारीख को सिविल लाइंस इलाके में फोन पर बात करते हुए जा रहे थे तो सामने से आ रहे छात्रनेता रजनीश राय के कंधे से उनका कंधा टकरा गया। इस पर रजनीश राय ने कहा- कस बे देख के नहीं चलता। इसके जवाब में पंकज ने कहा कि अगर आपको दिख रहा था तो आपही किनारे हो गए होते। इतना सुनते ही छात्र नेता का पारा गरम हो गया और पीटने लगा। छात्र नेता ने अपने पास से लाइसेंसी रिवाल्वर निकाल कर कनपटी पर लगाकर भेजा उड़ाने की धमकी दी।
काफी देर तक अभद्रता और मारपीट करने के बाद रजनीश राय धमकाते हुए चला गया। परेशान पंकज ने इलाहाबाद प्रेस क्लब के पदाधिकारियों को फोन कर मामले की जानकारी दी। देखते ही देखते इलेक्ट्रानिक मीडिया और प्रेस क्लब से जुड़े दर्जनों पत्रकार सिविल लाइंस पहुंचे और पंकज को लेकर थाने की तरफ रवाना हुए। थाने में छात्रनेता के खिलाफ सेक्शन 506 और 323 में मुकदमा दर्ज कराया। शाम को जब छात्रनेता को मुकदमा दर्ज होने की जानकारी मिली तो वो भी थाने पहुंचा और क्रास एफआईआर दर्ज कराने में कामयाब हो गया। कार्रवाई न होते देख पत्रकारों ने इलाहाबाद के आईजी से मुलाकात की तो आईजी ने जांच सीओ सिविल लाइंस को सौंप दी। जांच में क्या हुआ, यह अभी तक किसी को नहीं पता लेकिन छात्रनेता अब भी आजाद घूम रहा है।
पंकज का कहना है कि कुछ पत्रकार साथी छात्रनेता रजनीश राय से मिल गए हैं और मुकदमा वापस लेने के लिए दबाव बनाने में लगे हैं। पंकज का कहना है कि मामले को तूल पकड़ते देख रजनीश राय ने फोन कर माफी मांगी और मिल बैठकर प्रकरण खत्म करने की सलाह दी। पंकज ने अभी तक एफआईआर वापस नहीं लिया है लेकिन पुलिस व साथी पत्रकारों के रवैए को देखते हुए अपने मामले की पैरवी करना छोड़ चुके हैं। पंकज का कहना है कि अगर खुद के मामले की पैरवी करता रहा तो चैनल के लिए काम कौन करेगा। पंकज के मुताबिक उन्हें कई पत्रकारों ने सलाह दी है कि छात्रनेता रजनीश राय बेहद खतरनाक आदमी है इसलिए पंगा लेने की बजाय एफआईआर वापस लेने में ही भलाई है।
पंकज फिलहाल तय नहीं कर पा रहे हैं कि वे एफआईआर वापस लें या फिर छात्रनेता के हाथों हुए अपमान के खिलाफ कानूनी तरीके से लड़ाई लड़ें। साथी पत्रकारों का रवैया, आरोपी का दबंग होना, पुलिस का निष्क्रिय होना और चैनल के लिए काम का दायित्व- ये चारों चीजें मिला दें तो कहा जा सकता है कि लोकतंत्र के चौथे खंभे का एक प्रतिनिधि अपनी लड़ाई हारने के लिए मजबूर है।