अब तो हर रोज शर्म आती है खुद के पत्रकार होने पर : नमस्कार यशवंत जी, मैं एक न्यूज चैनल का पत्रकार हूं. कुछ दिनों पहले एक रीजनल टीवी चैनल को छोड़ दिया. उस चैनल में मैंने 10 महीने तक काम किया. माना लिया कि मंदी के दौर में मीडिया का बुरा हाल है. पर एक पत्रकार से विज्ञापन के लिए दबाव बनाना और विज्ञापन की राशि निर्धारित कर देना कहां तक उचित है. विसंगतियों की वजह से मुझे चैनल छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा. लेकिन चैनल छोड़ते वक्त मुझे जरा भी दुख नहीं था. वैसे भी, प्रिंट और इलेक्ट्रानिक सहित मेरे पास 4 साल का पत्रकारिता का अनुभव तो था ही. लेकिन जब मैंने टीवी चैनलों में जॉब तलाशना शुरू किया तो मुझे कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा. उसी समय एक रीजनल चैनल जनसंदेश में इंटरव्यू देने गया.
वहां इंटरव्यू लेने वाले एक वरिष्ठ अधिकारी ने कई सवाल पूछे और काम करने को हां कर दी. जब उत्तर प्रदेश के हम सभी जिलों के रिपोर्टर एग्रीमेंट करने नोएडा ऑफिस पहुंचे तो वहा एग्रीमेंट में रिपोर्टर की जगह लिखा था बिज़नस रिप्रजेंटेटिव. इसे देख कर हर रिपोर्टर को अपने उपर शर्म आने लगी. मेरा मूड खराव हो गया. मगर मरता क्या न करता, इसके लिए भी तैयार हो गया. चैनल की शुरुआत हुई. लोक सभा चुनाव नजदीक था तो एक रीजनल राजनैतिक पार्टी की ही खबरें भेजने को कहा गया. मेरा माथा ठनक गया. क्या एक पत्रकार एक राजनैतिक पार्टी के नेताओं के पीछे-पीछे दुम हिलाएगा और उनसे पूछेगा की खबर क्या भेजूं, आज आप क्या करेंगे, मुझे डे-प्लान में नोट करवाना है. चैनल में उस पार्टी की छोटी-छोटी जन सभाएं भी लाइव होने लगीं. आज मुझे हर रोज अपने पत्रकार होने पर शर्म आ रही है. मुझे लग रहा है कि पत्रकारिता में भविष्य बनाना मेरे जीवन की सबसे बड़ी भूल बन गई है. 10 महीने में आज तक पेमेंट नही मिला. शर्म नही आती डेस्क पर बैठे उन लोगों को जो पत्रकारिता को दलाली का माध्यम बना रहे हैं. मैं समझता हूं कि हमसे तो अच्छे वो झोलाछाप पत्रकार हैं. हमारी तो पढा़ई और डिग्रियां सब वेकार हो गईं.
मेरी इस व्यथा को आप अपनी वेबसाइट पर जरूर जगह दें ताकि कुकुरमुत्तों की तरह पैदा हो रहे ये न्यूज़ चैनल किसी पत्रकार का अपमान न कर सकें. उसे पत्रकार होने पर शर्मिंदा न होना पड़े.
धन्यवाद सहित
विकास शर्मा
झांसी