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लगता है, मां दुर्गा भी मीडिया से नाराज हैं!

यशवंत जी, पहले तो आपको धन्यवाद. आज भडास4मीडिया न केवल पत्रकारों तक मीडिया की खबरों को पहुंचाता है, बल्कि उन छात्रों के लिए भी उपयोगी साबित हो रहा है जो इस धंधे… अरे रे रे…. माफ कीजिए… मेरा मतलब पत्रकारिता में…. आना चाहते हैं.  चलिए, अब मुद्दे की ओर बढते है. वेबसाइट पर ‘कात्यायनी’ के बारे में पढा. बहुत अफसोस हुआ. अभी हाल ही में एक नामी चैनल से बेरोजगार हुए लगभग 650 मीडियाकर्मियों के हालात सुधरे भी नहीं थें, एक और नई दुखखबरी. कात्यायनी के बंद होने की बातें होने लगीं. दीवाली जैसा त्योहार आने को है, एमसीडी (मोस्ट करप्ट डिपार्टमेंट) के लोग दोहरे वेतन को लेकर खासे उत्सुक हैं, वही चौथे स्तम्भ कहे जाने वाले पत्रकारिता के लोगों का दर्द थमने का नाम ही नही ले रहा. यूं तो हमारा देश अपनी सभ्यता-संस्कृति के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है. लेकिन जैसे–जैसे ढोंगी बाबाओं का चलन बढ़ता गया, लोगों का धर्म में विश्वास बढ़ने की बजाय और घटता जा रहा है. कमोवेश ठीक यही हालत मीडिया की हो रही है. जब हमने टीआरपी बढा़ने के सारे फंडे आजमा लिए, तब आयी भगवान की बारी.

<p align="justify">यशवंत जी, पहले तो आपको धन्यवाद. आज भडास4मीडिया न केवल पत्रकारों तक मीडिया की खबरों को पहुंचाता है, बल्कि उन छात्रों के लिए भी उपयोगी साबित हो रहा है जो इस धंधे... अरे रे रे.... माफ कीजिए... मेरा मतलब पत्रकारिता में.... आना चाहते हैं.  चलिए, अब मुद्दे की ओर बढते है. वेबसाइट पर 'कात्यायनी' के बारे में पढा. बहुत अफसोस हुआ. अभी हाल ही में एक नामी चैनल से बेरोजगार हुए लगभग 650 मीडियाकर्मियों के हालात सुधरे भी नहीं थें, एक और नई दुखखबरी. कात्यायनी के बंद होने की बातें होने लगीं. दीवाली जैसा त्योहार आने को है, एमसीडी (मोस्ट करप्ट डिपार्टमेंट) के लोग दोहरे वेतन को लेकर खासे उत्सुक हैं, वही चौथे स्तम्भ कहे जाने वाले पत्रकारिता के लोगों का दर्द थमने का नाम ही नही ले रहा. यूं तो हमारा देश अपनी सभ्यता-संस्कृति के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है. लेकिन जैसे–जैसे ढोंगी बाबाओं का चलन बढ़ता गया, लोगों का धर्म में विश्वास बढ़ने की बजाय और घटता जा रहा है. कमोवेश ठीक यही हालत मीडिया की हो रही है. जब हमने टीआरपी बढा़ने के सारे फंडे आजमा लिए, तब आयी भगवान की बारी. </p>

यशवंत जी, पहले तो आपको धन्यवाद. आज भडास4मीडिया न केवल पत्रकारों तक मीडिया की खबरों को पहुंचाता है, बल्कि उन छात्रों के लिए भी उपयोगी साबित हो रहा है जो इस धंधे… अरे रे रे…. माफ कीजिए… मेरा मतलब पत्रकारिता में…. आना चाहते हैं.  चलिए, अब मुद्दे की ओर बढते है. वेबसाइट पर ‘कात्यायनी’ के बारे में पढा. बहुत अफसोस हुआ. अभी हाल ही में एक नामी चैनल से बेरोजगार हुए लगभग 650 मीडियाकर्मियों के हालात सुधरे भी नहीं थें, एक और नई दुखखबरी. कात्यायनी के बंद होने की बातें होने लगीं. दीवाली जैसा त्योहार आने को है, एमसीडी (मोस्ट करप्ट डिपार्टमेंट) के लोग दोहरे वेतन को लेकर खासे उत्सुक हैं, वही चौथे स्तम्भ कहे जाने वाले पत्रकारिता के लोगों का दर्द थमने का नाम ही नही ले रहा. यूं तो हमारा देश अपनी सभ्यता-संस्कृति के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है. लेकिन जैसे–जैसे ढोंगी बाबाओं का चलन बढ़ता गया, लोगों का धर्म में विश्वास बढ़ने की बजाय और घटता जा रहा है. कमोवेश ठीक यही हालत मीडिया की हो रही है. जब हमने टीआरपी बढा़ने के सारे फंडे आजमा लिए, तब आयी भगवान की बारी.

हमने सोचा कि जब एक बाबा खद्दर पहन कर करोडो़ कमा सकता है तो हम क्यों नहीं. लेकिन भइया ये पब्लिक है, और किस्मत तो देखिये इस पब्लिक की, कि रिमोट भी उसी के हाथों में है. अरे माना कि अमेरिका में 700 चैनल है, और सब फल फूल रहें हैं. लेकिन वो अमेरिका है, वहां लोगो को 9 महीने में नोबेल पुरस्कार तक मिल जाता है.

भगवान के नाम पे कमाना कोई बुरी बात नही है. शायद इसी वजह से आज धार्मिक चैनलों की कमी नहीं है. लेकिन नवरात्रों में चैनल का शुरू होना और दीवाली आते–आते बंद होने की खबर. लगता है मां दुर्गा भी मीडिया से नाराज हैं. कल की बात है. मैं एक महाशय का बाइट लेकर निकल ही रहा था कि मुझे पीछे से एक लड़के ने आवाज दी. वो मीडिया में इंटरनशिप तलाश रहा था. मैंने उसे एक नंबर दिया और बोला कि इस चैनल में बात कर लेना. चैनल का नाम सुनते ही उसके चेहरे का भाव ऐसे बदल गया, मानो मैने क्या कह दिया हो. उसने बोला, नहीं भइया मुझे अखबार या मैग्जीन में काम करना है. मैं दंग रह गया. उसे तो मैने कुछ नही बोला. लेकिन मन ही मन सोचा कि आज सच में चैनलों कि स्थिति ऐसी हो गयी है कि एक बच्चा इंटरनशिप के लिए भी मना कर रहा है?

मनीष रंजन

पत्रकार

दिल्ली

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