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‘ललितपुर में अपराधी बनने लगे हैं पत्रकार’

यह उन लोगों के लिए खुशखबरी है, जो पुलिस से परेशान हैं या आर्थिक तंगी के शिकार हैं. आपकी पुलिस हिस्ट्रीशीट भी है तो चलेगा. तुरंत उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले में आ जाइए, पत्रकार का चोला पहन कर. बस, फिर क्या, आपके दिन फिर जायेंगे. जो पुलिस कल तक आपके पीछे थी, वह आपकी आवभगत में जुट जायेगी. यही हाल है ललितपुर का. मुझे सही-सही नहीं पता,  देश की राजधानी दिल्ली में कुल कितने पत्रकार हैं, पर ललितपुर में तो 500 से ज्यादा पत्रकार हैं.

<p align="justify">यह उन लोगों के लिए खुशखबरी है, जो पुलिस से परेशान हैं या आर्थिक तंगी के शिकार हैं. आपकी पुलिस हिस्ट्रीशीट भी है तो चलेगा. तुरंत उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले में आ जाइए, पत्रकार का चोला पहन कर. बस, फिर क्या, आपके दिन फिर जायेंगे. जो पुलिस कल तक आपके पीछे थी, वह आपकी आवभगत में जुट जायेगी. यही हाल है ललितपुर का. मुझे सही-सही नहीं पता,  देश की राजधानी दिल्ली में कुल कितने पत्रकार हैं, पर ललितपुर में तो 500 से ज्यादा पत्रकार हैं. </p>

यह उन लोगों के लिए खुशखबरी है, जो पुलिस से परेशान हैं या आर्थिक तंगी के शिकार हैं. आपकी पुलिस हिस्ट्रीशीट भी है तो चलेगा. तुरंत उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले में आ जाइए, पत्रकार का चोला पहन कर. बस, फिर क्या, आपके दिन फिर जायेंगे. जो पुलिस कल तक आपके पीछे थी, वह आपकी आवभगत में जुट जायेगी. यही हाल है ललितपुर का. मुझे सही-सही नहीं पता,  देश की राजधानी दिल्ली में कुल कितने पत्रकार हैं, पर ललितपुर में तो 500 से ज्यादा पत्रकार हैं.

सही पत्रकारों को यहां कोई घास नहीं डालता है. झांसी और ग्वालियर में बहुत से अखबार है, जो सिर्फ पैसा देखते हैं, चरित्र नहीं. बड़ा बैनर देख कर डरने की भी जरुरत नहीं है. जेब में पैसा रख कर इनके आफिस में घुस जाना बेधड़क. यहां वनमैन शो चलता है. 50 हजार से एक लाख रुपया दो. इलाके में 500 कापी बेचो या रद्दी में बेचो. कुछ विज्ञापन के पैसे भी समय-समय पर भेजो. बस पत्रकारिता जिन्दा रहेगी. गैंगस्टर, गुंडा एक्ट, हत्या के आरोपी लोग पत्रकार बनकर मजे से पुलिस वालों पर रौब ग़ालिब करते हैं.

तो देर मत कीजिए. यदि आप कभी जेल जा चुके हैं या इलाके में आपका आतंक है, पुलिस से परेशान हैं, तो स्वागत है ललितपुर नगरी में. वादा है कि एक बार बसने के बाद ललितपुर छोड़ने का दिल नहीं करेगा. यूं ही कहावत नहीं है “झाँसी गले की फांसी, दतिया गले का हार, ललितपुर तब तक न छोड्यो जब तक मिले उधार”।

मनीष चतुर्वेदी

पत्रकार

ललितपुर

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