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राजस्थान पत्रिका पर मुंबई में मुकदमा

मामला राजस्थान पत्रिका समूह से जुड़ा हुआ है। इस अखबार के लिए मुंबई में कार्यरत हैं अजय कुमार बिहारी। अजय अपना पद ब्यूरो चीफ का बताते हैं। उन्होंने मुंबई के औद्योगिक न्यायालय में एक मुकदमा दायर किया है। यह मुकदमा मुंबई से बाड़मेर तबादला किए जाने और वेज बोर्ड के अनुरूप वेतन न दिए जाने से संबंधित है। मुकदमा न्यायाधीश आरएस मुले की अदालत में है। सूत्रों के मुताबिक अजय कुमार बिहारी को पत्रिका ने 15 अक्टूबर 2003 से मुंबई में नियुक्त किया। तब उनसे कहा गया कि देर-सबेर उन्हें वेज बोर्ड के अनुरूप वेतन मिलने लगेगा। पर समय बीतने के साथ इस मसले पर पत्रिका प्रबंधन ने कुछ नहीं किया। बताया जाता है कि 18 मई को पत्रिका प्रबंधन ने मंदी का हवाला देते हुए अजय की छंटनी की तैयारी कर ली और उन्हें मौखिक तौर पर कह दिया कि वे आफिस न आएं। गुस्साए अजय ने तुरंत वकील से सलाह-मशविरा कर पत्रिका प्रबंधन को नोटिस भेज दिया। इस पर प्रबंधन ने उन्हें फिर काम पर वापस ले लिया। प्रबंधन ने अजय से कांट्रैक्ट पर काम करने से संबंधित एक मसौदे पर हस्ताक्षर करने के लिए दबाव डाला।

मामला राजस्थान पत्रिका समूह से जुड़ा हुआ है। इस अखबार के लिए मुंबई में कार्यरत हैं अजय कुमार बिहारी। अजय अपना पद ब्यूरो चीफ का बताते हैं। उन्होंने मुंबई के औद्योगिक न्यायालय में एक मुकदमा दायर किया है। यह मुकदमा मुंबई से बाड़मेर तबादला किए जाने और वेज बोर्ड के अनुरूप वेतन न दिए जाने से संबंधित है। मुकदमा न्यायाधीश आरएस मुले की अदालत में है। सूत्रों के मुताबिक अजय कुमार बिहारी को पत्रिका ने 15 अक्टूबर 2003 से मुंबई में नियुक्त किया। तब उनसे कहा गया कि देर-सबेर उन्हें वेज बोर्ड के अनुरूप वेतन मिलने लगेगा। पर समय बीतने के साथ इस मसले पर पत्रिका प्रबंधन ने कुछ नहीं किया। बताया जाता है कि 18 मई को पत्रिका प्रबंधन ने मंदी का हवाला देते हुए अजय की छंटनी की तैयारी कर ली और उन्हें मौखिक तौर पर कह दिया कि वे आफिस न आएं। गुस्साए अजय ने तुरंत वकील से सलाह-मशविरा कर पत्रिका प्रबंधन को नोटिस भेज दिया। इस पर प्रबंधन ने उन्हें फिर काम पर वापस ले लिया। प्रबंधन ने अजय से कांट्रैक्ट पर काम करने से संबंधित एक मसौदे पर हस्ताक्षर करने के लिए दबाव डाला।

जब अजय नहीं माने तो उनका तबादला बाड़मेर कर दिया गया। बताया जा रहा है कि महाराष्ट्र के श्रमिक कानून के तहत पत्रिका प्रबंधन का यह कदम अवैध है। अजय कुमार बिहारी के मसले पर पत्रिका प्रबंधन से जुड़े लोगों का कहना है कि अजय को अंशकालिक संवाददाता के बतौर नियुक्त किया गया था। वे कभी ब्यूरो चीफ नहीं रहे। वे स्ट्रिंगर के रूप में खबरें भेजते थे। वे कंप्यूटर पर काम नहीं कर पाते और नान-ग्रेजुएट हैं। वे खबरें फैक्स के जरिए भेजा करते थे। जब वे स्टाफर बनाए जाने के लिए पीछे पड़े तो प्रबंधन ने उनसे कंप्यूटर सीखने के लिए कहा क्योंकि इसके बिना किसी को स्टाफर नहीं बनाया जा सकता। पर उन्होंने कंप्यूटर नहीं सीखा। साथ ही, ग्रेजुएट न होने के कारण उन्हें स्टाफर बनाने में दिक्कत थी। इस कारण उन्हें कांट्रैक्ट पर रखने के लिए प्रस्ताव भेजा गया जिसे उन्होंने ठुकरा दिया। आखिरकार उनका तबादला करना पड़ा।

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