डीडी पुरोहित के निधन पर ‘नईदुनिया’ के सीईओ विनय छजलानी ने एक विशेष टिप्पणी लिखकर जो श्रद्धांजलि दी है, वह इस प्रकार है…
जो उनसे मिले हैं, कभी नहीं भूलेंगे
भीष्म पितामह, हां उन्हें यही कहना सही होगा। श्री दामोदरदासजी पुरोहित ‘नईदुनिया’ के कई पाठकों के लिए एक अनजान नाम है मगर आज उनका सबसे परिचय कराना उनके प्रति सबसे बड़ी श्रद्धांजलि होगी। ‘नईदुनिया’ से व्यावहारिक या व्यक्तिगत रूप से जुड़ा हर एक उन्हें बड़े आदर के साथ याद रखता है। वे ‘नईदुनिया’ से करीब छह दशक से जुड़े हुए थे। कल, 86 वर्ष की आयु में भी यदि उनके दिलो-दिमाग में कोई विचार थे तो निश्चित ही उनमें सबसे ऊपर ‘नईदुनिया’ ही था।
दामोदरदासजी पुरोहित ने ‘नईदुनिया’ के तीनों पुरोधाओं स्व. बाबूजी (लाभचंदजी छजलानी), स्व. भैयाजी (बसंतीलालजी सेठिया) और स्व. तिवारीजी (नरेन्द्र तिवारी) के साथ भी उसी लगन और निष्ठा के साथ काम किया, जिस समर्पण के साथ उन्होंने अभयजी और महेन्द्रजी के साथ काम किया। इससे आगे जाकर उन्होंने चार साल पहले ‘नईदुनिया’ के प्रबंधन में हुए परिवर्तन को और प्रोफेशनल मैनेजमेंट को भी उतनी ही सहजता के साथ अपनाया। उन्होंने भागीदारी के जमाने में भी स्वंय को उतना ही चुस्त और कर्मशील बनाए रखा जितना नए जमाने के प्रबंधन के साथ।
‘नईदुनिया’ का एजेंट हो, संवाददाता हो या फिर कोई भी सप्लायर, हर एक व्यक्ति इंदौर आने पर उनसे मिलने को आतुर रहता था। वे सभी की बातों को ध्यान से सुनकर उनके यथोचित समाधान का प्रयास भी करते थे। सही बात को प्रबंधन के सामने रखने में वे कभी भी नहीं हिचकिचाए। हमेशा श्वेत वस्त्रों में रहने वाले पुरोहितजी के पहनावे से उनका धवल मन, संकल्प की दृढ़ता, नेकनीयत, चैतन्य और ऊर्जावान मस्तिष्क और हृदय की पवित्रता साफ झलकती थी।
मेरे दादाजी ने उन पर पूरा भरोसा किया और मेरे पिताजी के लिए भी वे सबसे विश्वसनीय थे। नए प्रबंधन के लिए भी वे किसी डिग्रीधारी मैनेजर से ज्यादा कुशल प्रबंधक थे।…जैसा कि मैंने शुरू में कहा, वे नईदुनिया के भीष्म पितामह थे। उनको मेरी और पूरे ‘नईदुनिया’ परिवार की ओर से शत-शत नमन।
-विनय छजलानी